Sufinama

हकीम सय्यद शाह तक़ी हसन बल्ख़ी

अब्सार बल्ख़ी

हकीम सय्यद शाह तक़ी हसन बल्ख़ी

अब्सार बल्ख़ी

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    हज़रत इब्राहीम बिन अद्हम बल्ख़ी सिल्सिला-ए-सुलूक-ओ-मा’रिफ़त के अ’ज़ीम सूफ़ी बुज़ुर्ग गुज़रे हैं।जिन्हों ने बल्ख़ की बादशाहत और फ़रमा -रवाई छोड़कर नजात-ए-हक़ीक़ी और फ़लाह-ए-उख़्रवी में सुलूक-ओ-मा’रिफ़त की राह इख़्तियार की।हज़रत हकीम सय्यद शाह तक़ी हसन बल्ख़ी उसी सिल्सिला-ए-ख़ानदान की औलाद हैं।हिन्दुस्तान में इब्राहीम बिन अद्हम बल्ख़ी के ख़ानदान का वुरूद हज़रत शम्सुद्दीन बल्ख़ी से हुआ।जब ये आठवीं सदी हिज्री में बल्ख़ से हिज्रत कर के हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाए और हज़रत मख़दूम अहमद चर्म-पोश (बिरादर-ए-ख़ाला-ज़ाद मख़दूम-ए-जहाँ रहि·) से बैअ’त हो गए।हिन्दुस्तान आने के बा’द आप तक़रीबन 330 हिज्री में बिहार आए।आपके साथ आपके तीन बेटे मौलाना मुज़फ़्फ़र बल्ख़ी, मख़दूम मुइ’ज़ बल्ख़ी और मख़दूम क़मरुद्दीन बल्ख़ी भी थे।जिनमें बड़े बेटे मौलाना मुज़फ़्फ़र बल्ख़ी मख़दूम शैख़ शरफ़ुद्दीन यहया मनेरी के हाथ पर बैअ’त हुए और उनके मजाज़-ओ-ख़लीफ़-ए-ख़ास हुए।मँझले भाई मख़दूम मुइ’ज़ बल्ख़ी के बेटे मख़दूम हुसैन नौशा-तौहीद बल्ख़ी भी अपने चचा मौलाना मुज़फ़्फ़र बल्ख़ी की ही रिफ़ाक़त और तर्बीयत में थे।मौलाना मुज़फ़्फ़र बल्ख़ी को कोई औलाद थी। मख़दूम हुसैन नौशा तौहीद बल्ख़ी अपने चचा मौलाना मुज़फ़्फ़र बल्ख़ी के ज़ेर-ए-निगरानी एक बेटे की तरह पले-बढ़े।जवान-ए-सालिह हुए और बा’द में हज़रत मख़दूम-ए-जहाँ रहि· से बैअ’त हो कर उनके ख़लीफ़ा हुए।आपकी गिराँ-क़द्र तसानीफ़ में “ख़ुम्स” है जो अ’रबी में तसव्वुफ़ पर बर्र-ए-सग़ीर हिंद-ओ-पाक में पहली किताब तस्लीम की जाती है।

    उसी दीनी इ’लमी और तारीख़ी में हकीम सय्यद शाह तक़ी हसन बल्ख़ी फ़िरदौसी की पैदाइश 19 मुहर्रम 1319 हिज्री मुताबिक़ 1901 ई’स्वी को रायपूरा, फ़तूहा ज़िला’ पटना में हुई।बचपन ही से आपके अंदर बे-पनाह इ’ल्मी ज़ौक़ और इस्ति’दाद मौजूद थी।इब्तिदाई ता’लीम हासिल करने के बा’द जब शुऊ’र बालीदा हुआ तो अपने वालिद हज़रत सय्यद शाह ग़ुलाम शर्फ़ुद्दीन बल्ख़ी फ़िरदौसी (अल-मुतवफ़्फ़ा)1354 हिज्री से तरीक़ा-ए-सिल्सिला-ए-फ़िरदौसिया में बैअ’त हुए।आप मख़दूम हुसैन नौशा तौहीद बल्ख़ी फ़िरदौसी की बराह-ए-रास्त औलाद हैं।जिन्हें मख़दूम-ए- जहाँ शैख़ शर्फ़ुद्दीन अहमद यहया मनेरी की ख़िलाफ़त हासिल है।हज़रत मख़दूम हुसैन नौशा तौहीद बल्ख़ी तक आपका नसब-नामा इस तरह है।

    हज़रत-ए-सय्यद शाह तक़ी हसन बल्ख़ी इब्न-ए-सय्यद शाह ग़ुलाम शर्फ़ुद्दीन बल्ख़ी इब्न-ए-सय्यद शाह ग़ुलाम मुज़फ़्फ़र बल्ख़ी इब्न-ए-सय्यद शाह अ’लीमुद्दीन बल्ख़ी इब्न-ए-सय्यद शाह मुहम्मद तक़ी बल्ख़ी इब्न-ए-सय्यद शाह ग़ुलाम मुइ’ज़ बल्ख़ी इब्न-ए-सय्यद शाह बुर्हानुद्दीन बल्ख़ी इब्न-ए-सय्यद शाह अ’लीमुद्दीन बल्ख़ी इब्न-ए-सय्यद शाह नूर मुहम्मद बल्ख़ी इब्न-ए-सय्यद शाह दीवान दौलत बल्ख़ी इब्न-ए-सय्यद शाह फ़रीद बल्ख़ी इब्न-ए-सय्यद शाह जीवन बल्ख़ी इब्न-ए-सय्यद शाह हाफ़िज़ बल्ख़ी इब्न-ए-सय्यद शाह इब्राहीम सुल्तान बल्ख़ी इब्न-ए-सय्यद शाह अहमद लंगर दरिया बल्ख़ी इब्न-ए-सय्यद शाह हसन बल्ख़ी इब्न-ए-सय्यद शाह मख़दूम हुसैन नौशा तौहीद बल्ख़ी।

    हज़रत शाह तक़ी हसन बल्ख़ी के वालिद-ए-माजिद हकीम सय्यद शाह ग़ुलाम शर्फ़ुद्दीन बल्ख़ी उ’र्फ़ शाह दरगाही मुमताज़-ए-वक़्त थे।आप अपने ज़माना के मशहूर तबीब हुए।आपकी ग़ैर मा’मूली लियाक़त और ख़िदमात को देखते हुए अंग्रेज़ हुकूमत ने 13 जून 1915 ई’स्वी को शम्सुल-उ’लमा के ख़िताब से नवाज़ा, लेकिन आपने इस ऐ’ज़ाज़ को वापस कर दिया।आपके रवाबित-ओ-तअ’ल्लुक़ात का दाएरा बहुत वसीअ’ था।अपने वालिद से इब्तिदाई ता’लीम हासिल करने के बा’द जब हकीम शाह तक़ी हसन बल्ख़ी को मज़ीद ता’लीम का शौक़ पैदा हुआ तो सूबा-ए-बिहार की मशहूर-ओ-मा’रूफ़ शख़्सियत मलिकुल-उ’लमा मौलाना ज़फ़रुद्दीन बिहारी(ख़लीफ़ा-ए-आ’ला हज़रत इमाम अहमद रज़ा ख़ान रहि·) के शागिर्द हुए।मुख़्तलिफ़ उ’लूम-ओ-फ़ुनून पर मलिकुल-उ’लमा को कामिल उ’बूर था।आज भी उनकी बहुत सी इ’ल्मी काविशें मतबूआ’त के अ’लावा मख़्तूतात की शक्ल में महफ़ूज़ हैं।शाह तक़ी हसन बल्ख़ी उनकी शागिर्दी को अपने लिए एक अ’ज़ीम सरमाया समझते और अक्सर मौक़ा’ पर उसका ज़िक्र करते।उन्हें इस शागिर्दी का शरफ़ मदरसा इस्लामिया शम्सुलहुदा पटना में दाख़िला के बा’द हासिल हुआ।बा’द में मलिकुल-उ’लमा मदरसा शम्सुलहुदा के प्रिंसिपल भी मुक़र्रर हुए और शाह तक़ी हस्न बल्ख़ी ने आ’लिमियत की सनद-ए-फ़राग़त हासिल की। प्रोफ़ेसर मुख़्तारुद्दीन ‘आरज़ू’ ख़लफ़-ए-मलिकुल-उ’लमा हज़रत शाह तक़ी हसन बल्ख़ी का ज़िक्र करते हुए लिखते हैं “शाह तक़ी बल्ख़ी ने ग़ालिबन मदरसा शम्सुलहुदा पटना में ता’लीम हासिल की थी और वालिद साहिब ज़फ़रुद्दीन बिहारी अ’लैहिर्रहमा के शागिर्द थे।उनकी तालिब-इ’ल्मी का ज़माना तो मुझे याद नहीं। उनसे मुलाक़ातें उस वक़्त हुईं जब मैं बिहार में उर्दू नस्र पर काम कर रहा था।” (इद्राक, फ़सीहुद्दीन बल्ख़ी नंबर सफ़्हा 45) आ’लिमियत की तक्मील के बा’द आप फ़ज़ीलत में दाख़िल हुए।उसी दरमियान मुल्क में तर्क-ए-मवालात की तहरीक शुरूअ’ हुई और आप मदरसा शम्सुलहुदा से अ’लाहिदा हो गए जिसका ज़िक्र करते हुए शाह तक़ी हसन बल्ख़ी लिखते हैं कि “मैं एक तवील ज़माना तक मदरसा शम्सुलहुदा (बाँकीपूर, पटना)में ता’लीम हासिल करता रहा, मगर गर्वनमेंट के कब्ज़ा-ए-इक़्तिदार में जाने की वजह से तर्क-ए- मवालात के उसूल पर अ’लाहिदा हो गया और मौलाना मुई’नुद्दीन साहिब अजमेरी (मदरसा मुई’निया उ’स्मानिया, अजमेर शरीफ़) के दर्स में शरीक हो कर मुस्तफ़ीज़ होता रहा।मगर शूमी-ए-क़िस्मत मौलाना जलील तशरीफ़ ले गए और बिल-आख़िर मुझे वहाँ से अ’लाहिदा होना पड़ा।” (हालात-ए-ख़ुद-नविश्त, मर्क़ूमा 22 रजब 1340 हिज्री)।उस के बा’द मदरसा इलाहियात कानपूर में दाख़िला लिया और वहीं उ’लूम की तक्मील की और सनद-ए-फ़राग़त ली।मदरसा इलाहियात के बानी मौलाना आज़ाद सुब्हानी जो ख़ुद भी यक्ता-ए-रोज़गार थे, उनकी तर्बियत में रह कर दर्स-ओ-तदरीस की सारी कमी पूरी की और मौलाना का इ’ल्मी फ़ैज़ान पा कर ख़ुद भी यक्ता-ए-रोज़गार हो गए।इसलिए आप हमेशा उनकी शागिर्दी पर फ़ख़्र किया करते थे।मौलाना आज़ाद सुब्हानी के ख़ास शागिर्दों में हज़रत मौलाना सय्यद शाह सबीहुल-हक़ इ’मादी (सज्जादा-नशीं ख़ानक़ाह-ए-इ’मादिया क़लंदरिया, मंगल तालाब,पटना)भी थे।मदरसा इलाहियात कानपूर में ख़ैराबादी सिल्सिला के एक मशहूर और नाम-वर आ’लिम मौलाना ग़ुलाम यहया थे जो मलिकुल-उ’लमा के उस्ताद रह चुके थे।शाह तक़ी हसन बल्ख़ी ने उनके दर्स में शामिल हो कर अ’क़ाइद-ओ-मा’क़ूलात वग़ैरा की किताबों की ता’लीम मुकम्मल की।

    मदरसा इलाहियात कानपूर से फ़राग़त के बा’द आप इ’ल्म-ए-तिब्ब की तरफ़ मुतवज्जिह हुए।आपके ख़ानदान में इ’ल्म-ए-तिब्ब और तबाबत का पेशा कई पुश्तों से चला आरहा था इसलिए ये फ़न विर्सा में मिला।आपके जद्द-ए-आ’ला हज़रत शाह मोहम्मद तक़ी बल्ख़ी अव्वल (अल-मुतवफ़्फ़ा 1255 हिज्री) भी एक कामयाब हकीम थे जिनका इ’ल्म मुंतक़िल होता हुआ आप तक पहुंचा।इ’ल्म-ए-तिब्ब की बहुत सी बारीकियों को आप पहले ही से जानते थे लेकिन जब उस इ’ल्म में कमाल हासिल करने का शौक़ बढ़ा तो देहली तिब्बिया कॉलेज तशरीफ़ ले गए और वहीं दाख़िला लिया और मसीहुल-मुल्क हकीम अजमल देहली के शागिर्द हुए।हकीम अजमल ख़ाँ एक ग़ैर-मा’मूली हकीम थे जिनकी हज़ाक़त की शोहरत मुल्क और बैरून-ए-मुल्क थी।बड़े बड़े अह्ल-ए-इ’ल्म आपकी दर्सियात में शरीक होते।हकीम सय्यद मोहम्मद हस्सान, हकीम अजमल ख़ाँ का ज़िक्र करते हुए लिखते हैं “आपका दर्स निहायत मक़बूल था।क़ानून-ए-शैख़ आपको ज़बानी याद थी।फ़ल्सफ़ा पर क़ुदरत की वजह से कुल्लियात का दर्स बहुत जामे’ होता था”।हकीम ज़िल्लुर्रहमान ने लिखा है कि आपके दर्स में हिन्दुस्तान के अ’लावा अफ़ग़ानिस्तान ,बुख़ारा, हेरात और हेजाज़ के तलबा भी शरीक-ए-दर्स होते थे।आपके दर्स की मक़्बूलियत और इफ़ादियत का अंदाज़ा इस से भी लगाया जा सकता है कि शिब्ली नो’मानी, मौलाना मोहम्मद फ़ारूक़ चिड़ियाकोटि, जैसी शख़्सियतें पाबंदी से शरीक-ए-दर्स रहती थीं।(तिब्ब)

    हकीम सय्यद शाह तक़ी हसन बल्ख़ी को एक ऐसे ही क़ाबिल तबीब का शरफ़-ए-तलम्मुज़ हासिल था।आप बरसों उनकी शागिर्दी में रह कर फ़ैज़-याब हुए।देहली के बा’द आपने तक्मीलुत्तिब कॉलेज लखनऊ में दाख़िला लिया और 1926 ई’स्वी में वहाँ से फ़राग़त की सनद हासिल की।तक्मीलुत्तिब कॉलेज के असातिज़ा में हकीम अ’ब्दुल हलीम साहिब की ख़िदमात बड़ी अहम हैं।आपका शुमार अ’ज़ीमुल-मर्तबत होकमा में होता है।उन्हों ने तक्मीलुत्तिब कॉलेज में सहीह तिब्बी ज़ौक़ और इ’ल्मी एहसास पैदा करने में अहम तदबीरें कीं।शिफ़ाउल-मुल्क हकीम अ’ब्दुल हलीम लखनवी के ख़ास शागिर्दों में शाह तक़ी हसन बल्ख़ी के अ’लावा डॉक्टर फ़रीदुद्दीन क़ादरी (वालिद-ए-माजिद डॉक्टर मोहम्मद ताहिर क़ादरी) भी हैं।इस हैसियत से डॉक्टर फ़रीदुद्दीन क़ादरी और शाह तक़ी हसन बल्ख़ी ने लखनऊ में इ’ल्म-ए-तिब्ब की ता’लीम एक ही उस्ताद से हासिल की।

    फ़न्न-ए-तिब्ब की तक्मील के बा’द आपने अपने घर फ़तूहा ख़ानक़ाह-ए-बल्ख़िया में ही मतब शुरूअ’ कर दिया।आप सिर्फ़ इ’लाक़ा के मशहूर तबीब थे बल्कि उस फ़न में आपकी शोहरत दूर-दूर तक थी।आपकी हज़ाक़त-ए-इ’ल्मी, तश्ख़ीस-ए-अमराज़ और शिफ़ा-याबी की शोहरत सुनकर लोग दूर-दूर से आते और शिफ़ा-याब होते।आपके मतब में मरीज़ों का हुजूम होता।दीगर ज़ाती मशाग़िल के लिए आपको फ़ुर्सत नहीं मिलती।तश्ख़ीस-ए-मराज़ और नुस्ख़ा-नवीसी पर आपको उ’बूर हासिल था।पेचीदा और कोहना अमराज़ के मरीज़ भी शिफ़ा-याब हो कर ख़ुशी-ख़ुशी वापस जाते।आपके मा’मूलात-ओ-मुजर्रबात की कई ब्याज़ें ख़ानक़ाह-ए-बल्ख़िया फ़िरदौसिया के कुतुब-ख़ाना में हैं।

    मज़हबी-ओ-दीनी हैसियत से भी हकीम सय्यद शाह तक़ी हसन बल्ख़ी की शख़्सियत मोहताज-ए-तआ’र्रुफ़ नहीं।क़ुरआन-ओ-हदीस, फ़िक़्ह-ओ-तसव्वुफ़, इ’ल्म-ए-कलाम, मंतिक़-ओ-फ़ल्सफ़ा और अद्यान-ए-आ’लम पर आपकी नज़र गहरी और वसीअ’ थी।क़ुरआन की तफ़्सीर में तफ़्सीर-ए-कबीर,इमाम राज़ी को बेहद पसंद करते और उसका दर्स भी दिया करते थे जिसका सिल्सिला एक अ’र्सा तक ख़ानक़ाह-ए-बल्ख़िया फ़तूहा की मस्जिद में जारी रहा।दीनी मसाएल पर गहरी बसीरत थी।सीरत-ए-रसूल पर तो आपको इम्तियाज़-ओ-इख़्तिसास हासिल था।मीलादुन्नबी की महफ़िलों में ख़ुसूसी तौर पर आपको मद्ऊ’ किया जाता।आपके तासीर-ए-बयान से सामिई’न पर रिक़्क़त तारी हो जाती।आपकी तज्वीज़ और दिल-चस्पी से पटना में सीरत कमेटी की बुनियाद डाली गई जिसके जल्से बराबर और मुख़्तलिफ़ मक़ामात पर हुआ करते।इस कमेटी में पटना की कई अहम हस्तियाँ थीं।

    आपने बहुत से मज़हबी-ओ-दीनी मज़ामीन लिखे जिनको आ’म-ओ-ख़ास में मक़्बूलियत हासिल हुई।उनमें “तवस्सुल” और “निदा-बिलग़ैब” बहुत तहक़ीक़ी और फ़िक्री हैं जो माहनामा ‘अल-मुजीब’ 1964 ई’स्वी में शाए’ हुए और बा’द में उसकी इ’ल्मी इफ़ादियत को मलहूज़ रखकर डॉक्टर मुफ़्ती अमजद रज़ा अमजद (डायरेक्टर: अल-क़लम फ़ाउंडेशन,सुल्तानगंज,पटना)ने दो माही अर्रिज़ा इंटर नैशनल,पटना 2017 ई’स्वी में भी शाए’ किया।इस मज़मून में उन्होंने उन सवालों का जवाब दिया है जिनका तअ’ल्लुक़ इस्तिग़ासा ब-रसूलुल्लाह से है।शाह तक़ी हसन बल्ख़ी लिखते हैं कि इस्तिग़ासा ब-रसूलुल्लाह को कुछ कज-फ़ह्म लोगों ने शिर्क के ज़ुमरे में शुमार किया है, जिससे आ’म मुसलमानों के एहसास को मजरूह करने की कोशिश की जा रही है।मुझे इस फ़तवे ने बेचैन कर दिया कि उस से ब-यक जुम्बिश-ए-क़लम कितनी कसीर ता’दाद को जहन्नम पहुँचा दिया गया है(अल-मुजीब सफ़हा 12)। शाह तक़ी हसन बल्ख़ी ने इस मज़मून में क़ुरआन-ओ-हदीस के साथ अ’क़्ली-ओ-साइंसी दलाएल भी पेश किए हैं जो अर्बाब-ए-इ’ल्म-ओ-फ़न के लिए निहायत गिराँ-क़द्र हैं।आपने एक तहक़ीक़ी मज़मून में शब-ए-बरात की फ़ज़ीलत पर जो बे-जा ऐ’तराज़ात किए जाते हैं, उनका भी मुफ़स्सल और जामे’ जवाब रक़म फ़रमाया है जो अल-मुजीब में शाए’ हुआ है।अ’लावा अज़ीं मुतअ’द्दिद ऐसे मज़ामीन हैं जो इ’ल्मी शाहकार की हैसियत रखते हैं।

    अद्यान-ए-आ’लम पर आपकी नज़र गहरी और वसीअ’ थी।तौरेत, ज़बूर, और इंजील में आपको ख़ास कमाल हासिल था।सीरतुन्नबी सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम के मवाइ’ज़ में उन किताबों के हवाले पेश करते जिससे ग़ैर-मुस्लिम भी मुतअस्सिर होते।हिंदू मज़हबी किताबों का भी उसमें तफ़्सील से ज़िक्र करते।

    इ’ल्म-ए-कलाम, फ़न्न-ए-तसव्वुफ़ और तारीख़-ए-तसव्वुफ़ में आपको इम्तियाज़ी मक़ाम हासिल था जिसका अंदाज़ा आपके इ’ल्मी मज़ामीन से होता है।इ’ल्म-ए-जुफ़र और रमल पर भी गहरी निगाह थी।इस इ’ल्म पर आपके जद्द-ए-आ’ला हज़रत शाह मोहम्मद तक़ी बल्ख़ी अव्वल (अल-मुतवफ़्फ़ा 1255 हिज्री ने एक मुकम्मल किताब तस्नीफ़ की है जो “मिर्अतुल-असरार” के नाम से मौसूम है।ये किताब शाह तक़ी हसन बल्ख़ी के हमेशा ज़ेर-ए-मुतालिआ’ रही।

    1964 ई’स्वी में आप हज के लिए मक्का तशरीफ़ ले गए, जिसमें उनके हम-सफ़र सय्यद वली हसन आ’लमगंज, घेरा, भी थे।इस सफ़र-ए-हज की आपने रूदाद भी लिखी है जिसमें एक जगह लिखते हैं। “किस मुँह से ख़ुदा का शुक्र अदा करूँ, अब तो तवक़्क़ो’ है कि सरकार में सलाम ज़रूर क़ुबूल हुआ।इसलिए कि मौलाना अ’ब्दुर्रऊफ़ साहिब अफ़ग़ानी, जिनके जद्द अ’हद-ए-तुर्किया में यहाँ आए थे और हुकूमत में बहुत ज़्यादा मुम्ताज़ और मुक़द्दस समझे जाते थे, उनके यहाँ गुंबद-ए-मुक़द्दस की ता’मीर में जो टुकड़ा गुंबद-ए-ख़ज़रा-ए-पाक का हुकूमत से अ’ता हुआ था, उस तबर्रुक में से थोड़ा हिस्सा जो मुसल्सल उनके यहाँ चला आता था, उन्होंने मेरी नज़्र किया।अल्लाह अल्लाह इस पर जो शुक्रिया अदा किया जाए वो कम है, और ये सुरमा-ए-चश्म है।” (हालात-ए-ख़ुद-नविश्त 2 सफ़हा 1384 हिज्री)

    शाह तक़ी हसन बल्ख़ी, ख़ानक़ाह-ए-बल्ख़िया फ़िरदौसिया के उन्नीसवीं सज्जादा-नशीं हुए।आपको हज़रत मख़दूम-ए-जहाँ शैख़ शर्फ़ुद्दीन अहमद यहया मनेरी सुम्मा बिहारी के ख़लीफ़-ए-ख़ास मौलाना मुज़फ़्फ़र बल्ख़ी से बराह-ए-रास्त ख़िलाफ़त हासिल हुई।आपको सिल्सिला-ए-फ़िरदौसिया के बुज़ुर्गों ,ख़ास कर हज़रत मख़दूम-ए-जहाँ से ग़ायत दर्जा मोहब्बत थी।सिल्सिला-ए-फ़िरदौसिया पर बे-जा ऐ’तराज़ का भी आपने जवाब दिया है।अदब-ए-मख़दूम और फ़ना फ़िल-मख़दूम की आप अ’ज़ीम मिसाल थे।बल्ख़ियों का शुरूअ’ कर्दा उ’र्स मख़दूम-ए-जहाँ जिसको मौलाना मुज़फ़्फ़र बल्ख़ी (अल-मुतवफ़्फ़ा 788 हिज्री) ने शुरूअ’ किया था उसको अंजाम देने के लिए हर साल 6 शव्वाल को बिहार शरीफ़ जाते।उ’र्स के बा’द मख़दूम-ए-जहाँ के रौज़ा-ए-मुनव्वरा पर फ़ातिहा-ख़्वानी करते और वापस होते।

    आपको सिल्सिला-ए-मुनई’मिया की भी ख़िलाफ़त अपने जद्द हज़रत मौलाना हसन मुनइ’मी रज़ा रायपुरी (ख़लीफ़ा-ओ-जाँनशीन,हज़रत मख़दूम मुनइ’म-ए-पाक से हासिल थी। मौलाना हसन रज़ा की शख़्सियत भी मुहताज-ए-तआ’र्रुफ़ नहीं।आपका विसाल 1215 हिज्री में रायपुरा फ़तूहा में हुआ और बल्ख़ियों के आबाई क़ब्रिस्तान-ओ-दरगाह में मद्फ़ून हुए।सय्यद शाह तक़ी हसन बल्ख़ी बा-वजूद-ए-अ’लालत पाबंदी से उ’र्स-ए-मख़दूम मुनइ’म-ए-पाक में हाज़िर होते और महफ़िल-ए-समाअ’ में बे-हाल हो जाते।

    आपका इंतिक़ाल 1392 हिज्री मुताबिक़ 1972 ई’स्वी को आ’लमगंज पटना में हुआ और तद्फ़ीन ख़ानक़ाह-ए-बल्ख़िया फ़िरदौसिया फ़तूहा के ख़ानदानी क़ब्रिस्तान में उनकी वसिय्यत के मुताबिक़ हज़रत मौलाना हसन रज़ा रायपुरी के पावंती में हुई।जिसकी वजह मौलाना हसन रज़ा से आपकी ग़ायत दर्जा मोहब्बत थी।आपकी रेहलत की क़ितआ-ए’-तारीख़ हज़रत मौलाना सय्यद शाह मोहम्मद इस्माई’ल अबुल-उ’लाई अल-मुतख़ल्लिस ब-रूह के इस शे’र से निकलती है।

    “फ़िक्र जो की तारीख़ की मैं ने

    आई सदा मग़्फ़ूरुल्लाह”

    1392 हिज्री

    शाह तक़ी हसन बल्ख़ी की रेहलत पर हज़रत शाह अकबर दानापूरी के पोते और ख़ानक़ाह-ए-सज्जादिया अबुल-उ’लाईया, दानापुर के मा’रूफ़ सज्जादा-नशीन हज़रत शाह ज़फ़र सज्जाद अबुल-उ’लाई रहमतुल्लाहि अ’लैह ने आगरा से आपकी वफ़ात पर एक ख़त इर्साल किया था मुलाहज़ा हो।

    “बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम”

    बक़ा किसी को नहीं इस जहान-ए-फ़ानी में

    रहेगा हम में से क्या कोई जब नबी रहे

    अ’ज़ीज़ी अ’लीमुद्दीन अ-अ’ज़्ज़कल्लाहु तआ’ला बा’द सलामुन-अ’लैक

    अभी ख़ालिद सल्लमहु का लिफ़ाफ़ा दानापुर से आया जिससे हज़रत भाई साहिब शाह तक़ी हसन बल्ख़ी के इंतिक़ाल पुर-मलाल की ख़बर मिली, इन्ना-लिल्लाहि व-इन्ना इलैहि राजिऊन, इस जाँ-गुसिल हादिसा से मुझे सख़्त सदमा हो रहा है। अफ़्सोस यही है कि मैं आख़िरी वक़्त में मुलाक़ात का शरफ़ हासिल कर सका। अल्लाह तआ’ला उनकी मग़्फ़िरत फ़रमाए, जन्नतुल-फ़िरदौस में जगह दे। सूबा-ए-बिहार की एक बड़ी हस्ती ने हम सबको दाग़-ए-मफ़ारक़त दिया। ऐसी हस्ती दुनिया में कम पैदा होती है। भाई साहिब में बहुत सी खूबियाँ थीं जो कि आ’म-ओ-ख़्वास सब उन को अ’ज़ीज़ रखते थे। बिला-शुबहा आपके मरने का ग़म ना-क़ाबिल-ए-बर्दाश्त है मगर क्या किया जाए अल्लाह की मशिय्यत यही थी, आप लोग सब्र कीजिए और अपनी वालिदा को सब्र की तल्क़ीन देते रहिए। मैंने एक कार्ड और भी उनकी इ’यादत में लिखा था मिल गया होगा। मैं 9 अगस्त को दानापुर पहुँच रहा हूँ, इंशा-अल्लाह।

    -ज़फ़र सज्जाद

    2 अगस्त 1972 ई’स्वी आगरा”

    इस के अ’लावा हज़रत शाह अकबर दानापूरी के 65 वाँ उ’र्स के मुबारक मौक़ा’ पर सेमिनार में भी हज़रत शाह तक़ी हसन बल्ख़ी के लिए दुआ-ए’-मग़्फ़िरत की गई थी।

    आपकी पहली शादी बीबी हाजिरा बिंत-ए-सय्यद या’क़ूब बल्ख़ी से हुई जो आपकी चचा-ज़ाद बहन थीं।आपकी नेकी, ख़िदमत-ए-ख़ल्क़ और पारसाई के क़िस्से पूरे फ़तूहा में मशहूर थे।उनसे एक बेटा और कई बेटियाँ हुईं जो एक के बा’द एक इंतिक़ाल करती गईं।सिर्फ़ दो बेटियाँ और उनसे एक बेटा हयात से है,बीबी अनीसा बल्ख़ी और बीबी वहीदा बल्ख़ी जिनकी औलाद आज कराची में आबाद हैं।आपके इंतिक़ाल के बा’द आपके बेटे पीर-ओ-मुर्शिद हकीम सय्यद शाह अ’लीमुद्दीन बल्ख़ी फ़िरदौसी मस्नद-ए-सज्जादगी पर फ़ाइज़ हुए और अब तक क़ाएम हैं।आप भी उसी इ’ल्मी विरासत के अमीन और अ’ज़ीमुल-मिसाल हैं।आपकी उ’म्र इस वक़्त 95 बरस हो चुकी है लेकिन आज भी नस्री इ’बारतें और सैकड़ों अश्आ’र हाफ़िज़ा में महफ़ूज़ हैं।अ’रबी-ओ-फ़ारसी ज़बान पर कामिल दस्त-रस है।अ’रबी और उर्दू के बे-शुमार मज़ामीन हिंद-ओ-पाक के रसाइल-ओ-जराएद में शाए’ होते रहे हैं।

    शाह तक़ी हसन बल्ख़ी की शख़्सियत के बे-शुमार पहलू हैं।आप नस्र-निगार होने के साथ क़ादिरुल-कलाम शाइ’र भी थे।मक़्ता’ में कभी बल्ख़ी तख़ल्लुस करते कभी आ’सी।जैसा कि एक ना’तिया शाइ’री में एक ही जगह दोनों तख़ल्लुस इख़्तियार किया है।

    इलाही बल्ख़ी-ए-आ’सी की ये हसरत भी पूरी हो

    मदीना की ज़ियारत और तयबा की हुज़ूरी हो

    शे’र-गोई में क़ित्आ-ए’-तारीख़ से ख़ास दिल-चस्पी थी।तारीख़-ए-विसाल और वाक़िआ’त-ओ-हादिसात पर बहुत सी क़ित्आ’त-ए-तारीख़ लिखीं जो आज भी सफ़ीना और डायरी में महफ़ूज़ हैं।बर-महल अश्आ’र कहने में आपको ख़ास कमाल हासिल था।मुतक़द्दिमीन और मुतअख़्ख़िरीन के बहुत से अश्आ’र आपके हाफ़िज़ा में महफ़ूज़ थे और हसब-ए-हालात उन्हें बर-महल इस्ति’माल करते।आपका शे’री ज़ौक़ बहुत ही ग़ैर-मा’मूली था। किसी शे’र की तशरीह करते तो उसका हुस्न निखर कर सामने जाता।ये शे’र-फ़ह्मी आपके शे’री ज़ौक़ का ही नतीजा थी।आपकी ज़िंदगी में आ’जिज़ी-ओ-इन्किसारी, तवक्कुल, सख़ावत-ओ-क़नाअ’त, नर्म-दिली, अहलुल्लाह से मोहब्बत, इ’ल्मदोस्ती, मा’रिफ़त, इस्तिदलाल-ओ-इस्तिंबात ये तमाम पहलू ब-दर्जा-ए-कमाल थे।शाह तक़ी हसन बल्ख़ी की शख़्सियत के बहुत से पहलू हैं और सभी नुमायाँ हैं।फ़िक्र-ओ-तजस्सुस और हमा-जिहत कसरत-ए-मुतालिआ’ से उनकी राय मो’तदिल और मुतवाज़िन होती।इ’ल्मी मबाहिस में इस्तिदलाल मंतिक़ी होता लेकिन अपने तर्ज़-ए-बयान से उसे आ’म-फ़ह्म बनाते और उनकी अ’मली ता’बीर होती।इसलिए हर हल्क़ा में आप क़द्र की नज़र से देखे जाते।पी. एच.डी और तहक़ीक़ी काम करने वाले आपके गिर्द-ओ-पेश होते।आप उनकी रहनुमाई करते।उनकी तहक़ीक़ी किताबों में आपकी सलाहियतों का ज़िक्र मुख़्तलिफ़ अंदाज़ से किया गया है।लेकिन अफ़्सोस ख़ुद शाह तक़ी हसन बल्ख़ी की शख़्सियत पर एक मब्सूत काम नहीं हो सका।उनकी शख़्सियत और ख़िदमात तिश्ना-ए-तहक़ीक़ हैं जिसे मिनस्सा-ए-शुहूद पर लाना एक बड़ी इ’ल्मी और फ़िक्री ख़िदमत होगी।

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