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साहिब-ए-मा’लूमात-ए-मज़हरिया शाह नई’मुल्लाह बहराइची

जुनैद अहमद नूर

साहिब-ए-मा’लूमात-ए-मज़हरिया शाह नई’मुल्लाह बहराइची

जुनैद अहमद नूर

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    हज़रत मौलाना शाह नई’मुल्लाह की पैदाइश 1153 हिज्री मुताबिक़1738 में हुई।आपका मक़ाम-ए-पैदाइश मौज़ा’ भदौनी क़स्बा फ़ख़्रपुर ज़िला’ बहराइच है।आपके वालिद का नाम ग़ुलाम क़ुतुबुद्दीन था। (आसार-ए-हज़रत मिर्ज़ा ‘मज़हर’ जान-ए-जानाँ शहीद, सफ़हा 260)

    शाह नई’मुल्लाह साहिब अ’लवी सय्यिद थे।आपके मुरिस-ए-आ’ला ख़्वाजा इ’माद ख़िलजी हम-राह सय्यिद सालार मसऊ’द ग़ाज़ी के हिंदुस्तान आए थे और बाराबंकी के क़स्बा केंतोर में जंग में जाम-ए-शहादत नोश फ़रमाया था।शाह नई’मुल्लाह ने सात साल की उ’म्र में शैख़ मोहम्मद रौशन बहराइची की ख़िदमत में रस्म-ए-बिसमिल्लाह अदा की।रस्म-ए-बिसमिल्लाह के एक साल ही में आपने क़ुरआन-ए-मजीद ख़त्म फ़रमा कर दर्स-ए-फ़ारसिया की तरफ़ तवज्जोह फ़रमाई और शहर-ए-बहराइच के असातिज़ा से मुख़्तसरात की ता’लीम हासिल की।उसके बा’द उ’लूम-ए-अ’रबिया की तहसील का शौक़ हुआ और उसको हासिल करने के लिए लखनऊ,शाहजहाँपुर,बरेली ,मुरादाबाद,दिल्ली का मुतअ’द्दिद सफ़र किया और उ’लूम-ए-ज़ाहिरी हासिल किया।उ’लूम-ए-ज़ाहिरी से फ़राग़त के बा’द इ’ल्म-ए-बातिन हासिल करने का शौक़ हुआ और 1186 हिज्री लखनऊ में मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ के ख़लीफ़ा मोहम्मद जमील नक्शबंदी से फ़ैज़-ए-बातिनी हासिल किया और तरीक़ा-ए-नक़्शबंदिया मुजद्दिदिया के अज़कार-ओ-अशग़ाल सीखे।बा’द में 1189 हिज्री मुताबिक़ 1775 ई’स्वी में दिल्ली गए और हज़रत मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ की ख़िदमत में पहुंच कर बैअ’त होने का शरफ़ हासिल किया और चार साल तक मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ की ख़िदमत में रहे और ख़िर्क़ा-ए-ख़िलाफ़त-ओ-तरीक़ा-ए-नक़्शबंदिया, क़ादरिया चिश्तिया और सुहरवर्दिया की ख़िलाफ़त और इजाज़त हासिल कर के 1193 हिज्री मुताबिक़ 1179 ई’स्वी में बहराइच वापस आए।

    मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जाना आपके बारे में फ़रमाया करते थे कि तुम्हारी (शाह नई’मुल्लाह बहराइची) चार साल की सोहबत दूसरों की बारह साल की सोहबत के बराबर है। शाह नई’मुल्लाह बहराइची(रहि·)को शाह ग़ुलाम अ’ली(रहि·) ने जामे-ए’-मा’क़ूल-ओ-मन्क़ूल कहा है। (मक़ामात-ए-मज़हरी शाह ग़ुलाम अ’ली देहलवी (रहि·) 2015، सफ़हा 388)

    मौलाना मोहम्मद हसन नक़्शबंदी मुजद्दिदी आपके हालात में लिखते हैं:

    “हज़रत मौलवी नई’मुल्लाह(रही·) साकिन बहराइच हज़रत मिर्ज़ा साहिब क़ुद्दिसा सिर्रहु ख़लीफ़ा-ए-नामदार से हैं। आप जामे-ए-’मा’क़ूल-ओ-मन्क़ूल थे।चार साल तक हज़रत मिर्ज़ा साहिब की सोहबत में रहे। हज़रत मिर्ज़ा साहिब फ़रमाया करते थे कि तुम्हारी चार साल की सोहबत औरों की बारह साल की सोहबत के बराबर है। हज़रत मिर्ज़ा साहिब क़िबला आपके हाल पर निहायत इ’नायत फ़रमाते और फ़रमाते कि तुम्हारे नूर-ए-निस्बत और फ़ैज़-ए-सोहबत से आ’लम मुनव्वर होगा। पस ऐसा ही हुआ। हज़रत ने बर-वक़्त अ’ता-ए-इजाज़त-ओ-ख़िलाफ़त(हर सिह जिल्द मक्तूबात-ए-क़ुद्सी, आयात-ए-हज़रत इमाम रब्बानी, मुजद्दिद अल्फ़-ए-सानी) भी उनको अ’ता फ़रमाई थीं।और फ़रमाया कि दौलत या’नी मक्तूबात शरीफ़ जो मैंने तुमको दिए किसी मुरीद को नहीं दिए। फ़रमाया कि मशाइख़-ए-तरीक़त जो अपने मुरीदों को ख़िलअ’त-ए-ख़िलाफ़त दिया करते हैं जो मैंने तुमको दिया है ये सब में बेहतर है। इस ने’मत का शुक्र और क़द्र करना। ये तुम्हारे वास्ते ज़ाहिर और बातिन का एक ख़ज़ाना है और अगर तालिब जम्अ’ हुआ करें और फ़ुर्सत हुआ करे तो बा’द अ’स्र के सब के सामने पढ़ा करना और बजा-ए-मुर्शिद और मुरब्बी के है।आप ब-कमाल-ए-अख़्लाक़-ए-हसना आरास्ता थे। और सब्र-ओ-तवक्कुल से औक़ात याद-ए-ख़ुदा मैं बसर करते।राक़िमुल-हुरूफ़ ने आपके मज़ार की ज़ियारत की है।”

    (किताब-ए-मुस्तताब, हालात-ए-हज़रात-ए-मशाइख़-ए- नक़्शबंदिया मुजद्दिदिया, सफ़हा 305)

    सय्यिद ज़फ़र अहसन बहराइची आपके ख़ुलफ़ा के बारे में लिखते हैं:

    हज़रत शाह नई’मुल्लाह बहराइची सिलसिला-ए-नक़्शबंदिया मुजद्दिदिया मज़हरिया के मशहूर बुज़ुर्ग हैं। आपके ख़ुलफ़ा की ता’दाद बहुत ज़्यादा थी।शाह मुरादुल्लाह फ़ारूक़ी थानेसरी लखनवी (रहि·),मज़ार मुराद अ’ली लेन, अखाड़ा करीमुल्लाह शाह,मुत्तसिल रॉयल होटल (बापू भवन) लखनऊ,मौलवी मोहम्मद हसन कटकी(रहि·) मज़ार मौलवी मोहल्ला पोस्ट महासंघपुर ज़िला कटक सूबा उड़ीसा, मौलवी करामतुल्लाह,मज़ार दरगाह पीर जलील लखनऊ, मौलवी नूर मोहम्मद (रहि·), मज़ार दरगाह पीर जलील लखनऊ, हाजी सय्यिद अहमद अ’ली (रहि·) ,मज़ार मस्जिद टाट शाह चौक फ़ैज़ाबाद अवध, सय्यिद मोहम्मद दोस्त (रहि·),मज़ार मस्जिद टाट शाह चौक फ़ैज़ाबाद, अवध और मीर मोहम्मद माह (रहि·)। हज़रत मीर मोहम्मद माह (रहि·) ख़ानदान-ए-हज़रत अमीर माह बहराइच से तअ’ल्लुक़ रखते थे।आपके ख़ानदान के बा’ज़ अफ़राद ज़मीन-दारी बचाने के चक्कर में मज़हब-ए-इमामिया के पैरव-कार हो गए थे।

    हज़रत शाह नई’मुल्लाह बहराइची ने हज़रत मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ के हालात पर दो किताबें लिखी हैं। ‘बशारात-ए-मज़हरिया और मा’मूलात-ए-मज़हरिया। इनमें हज़रत मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ के ख़ानदानी और ज़ाती हालात और मश्ग़लों के अ’लावा मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानां (रहि·) के मा’मूलात का तफ़्सील से ज़िक्र है। बशारात-ए-मज़हरिया क़लमी और ज़ख़ीम है और 210 औराक़ पर मुश्तमिल है।उसका अस्ल नुस्ख़ा ब्रिटिश म्यूज़ियम (लंदन) में महफ़ूज़ है, जबकि दो नुस्ख़ा अ’लीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी में महफ़ूज़ हैं। (Edition of Basharat-E-Mazhariyah 1981)

    शाह नई’मुल्लाह बहराइची (रहि·) ने मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ (रहि·) के मक्तूबात का एक इंतिख़ाब भी ‘रुक़आ’त-ए-करामत–सुआ’त’ के नाम से तैयार किया था जो शाए’ हो चुका है।सय्यिद ज़फ़र अहसन बहराइची अपनी किताब ‘आसार-ए-हज़रत मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ शहीद’ में सफ़हा 223 पर लिखते हैं कि शाह नई’मुल्लाह बहराइची ने कई किताबें तालीफ़ की जो इस तरह हैं-

    (1)रिसाला-ए-अदई’या-ए-मासूरा (अ’रबी/फ़ारसी)

    (2)बशारात-ए-मज़हरिया (अस्ल नुस्ख़ा ब्रिटिश म्यूज़ियम, लंदन में महफ़ूज़)

    (3)मस्नवी दर मद्ह-ए-हज़रत ‘मज़हर’-ओ-ख़ुलफ़ा-ए-ईशाँ (उर्दू ग़ैर मतबूआ’)

    (4) मा’मूलात-ए-मज़हरिया (मतबूआ’)मा’मूलात-ए-मज़हरिया

    (5)मस्नवी दर मद्ह-ए-सलासिल-ए-तरीक़ा-ए-नक़्शबंदिया मुजद्दिदिया (उर्दू ग़ैर मतबूआ’)

    (6)रिसाला दर अहवाल-ए-हज़रत मिर्ज़ा मज़हर

    (7) मुतफ़र्रिक़ अ’श्आ’र ब-ज़ुबान-ए-उर्दू-ओ-फ़ारसी

    (8) मक्तूबात-ए-मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ

    (9) शरह सफ़र-ए-सआ’दत

    (10) रुक़आ’त-ए-मिर्ज़ा मज़हर हिस्सा अव्वल (मतबूआ’)

    (11) हाशिया रिसाला-ए-मीर ज़ाहिद

    (12) रुक़आ’त-ए-करामत-ए-साअ’त हिस्सा अव्वल (मतबूआ’)

    (13) हाशिया रिसाला-ए-मुल्ला जलाल

    (14) ख़ुद-नविश्त सवानिह-हयात (अहवाल-ए-नई’मुल्लाह बहराइची (ग़ैर-मतबूआ’)

    (15)ख़ुलासा-ए-वसिय्यतहा-ए-ख़ास्सा अज़ कलिमात-ए-अकाबिर-ए-सलासा

    (16) मजमूआ’-ए-मकातीब-ए-क़ाज़ी सनाउल्लाह पानीपत्ती (मतबूआ’)

    (17) ख़ुलासा ब्याज़-ए-हज़रत हाजी मोहम्मद अफ़ज़ल मुहद्दिस सियालकोटी (अ’रबी फ़ारसी)

    (18) रिसाला-ए-अन्फ़ासुल-अकाबिर (दर ख़साइस-ए-तरीक़ा-ए-नक़्शबंदिया (मतबूआ’)

    (19) ख़ुतबात-ए-जुमआ’ (अ’रबी)

    (20) रिसाला-ए-अनवरुज़्ज़माइर (दर तहक़ीक़-ए-दरवेशी-ओ-मा’नी-ए-क़ौमियत (मतबूआ’)

    (21) वसिय्यत-नामा

    (22) रिसाला यक़ूलुल-हक़ (दर रद्द-ए-ए’तराज़ात-ए-शैख़ अ’ब्दुल-हक़ मुहद्दिस देहलवी बर कलाम-ए-हज़रत मुजद्दिद)

    (23) मकातीब-ए-शरीफ़ा

    (24) रिसाला सिलसिलतुज़्जहब (दर सुलूक-ए-तरीक़ा-ए-नक़्शबंदिया मुजद्दिदया)

    (25) दीबाचा (अ’रबी बर किताब-ए-शैख़ मोहम्मद आ’बिद सनामी

    (26) रिसाला अल-मा’सूमा

    प्रोफ़ेसर मोहम्मद इक़बाल मुजद्दिदी ने आपकी तस्नीफ़ के ये नाम लिखे हैं :-

    (1) बशारात-ए-मज़हरिया (फ़ारसी नस्र)

    (2) मा’मूलात-ए-मज़हरिया (फ़ारसी नस्र)

    (3) अन्फ़ासुल-अकाबिर (फ़ारसी नस्र)

    (4) अनवारुज़्ज़माइर

    (5) रिसाला-ए-शम्सिया मज़हरिया

    (6) रुक़आ’त-ए-करामातए-ए-सआदत-ए-मिर्ज़ा मज़हर (फ़ारसी नस्र)

    (7) रिसाला दर बयान-ए-नसब-ए-ख़ुद।

    (तज़्किरा उ’लमा-ओ-मशाइख़-ए-पाकिस्तान-ओ-हिंद जिल्द दोउम मतबूआ’ 2015، सफ़हा 971)

    यहाँ पर आपकी तस्नीफ़-कर्दा किताबों के बारे में इख़्तिलाफ़ है। ब-क़ौल प्रोफ़ेसर इक़बाल मुजद्दिदी के शाह नई’मुल्लाह बहराइची (रहि·) की सिर्फ़ सात (7) किताबें है जबकि शाह नई’मुल्लाह बहराइची (रहि·) के सज्जादा-नशीन हज़रत सय्यिद ज़फ़र अहसन ने अपनी तस्नीफ़ में सफ़हा 323 पर शाह नई’मुल्लाह साहिब की तसानीफ़ की ता’दाद 23 लिखी है जिनमें से कई किताबें शाए’ हो चुकी हैं। (वल्लाहो आ’लम)।

    मशहूर शाइ’र और दरगाह शाह मुरादुल्लाह फ़ारूक़ी थानेसरी सुम्मा लखनवी के निगराँ जनाब बशीर फ़ारूक़ी लखनवी ‘‘गुल्ज़ार-ए-मुराद’ सफ़हा 8 पर आपका तज़्किरा करते हुए लिखते हैं कि ‘शाह नई’मुल्लाह बहराइची के दस्त-ए-मुबारका का तहरीर-कर्दा क़ुरआन-ए-मजीद भोपाल में हज़रत मौलाना मंज़ूर अहमद ख़ाँ साहिब जो हज़रत मौलाना शाह फ़ज़ल अहमद रायपुरी के अ’ज़ीज़ हैं, के पास मौजूद है’’।

    हज़रत मौलाना शाह नई’मुल्लाह बहराइची की वफ़ात 5 सफ़र 1218 हिज्री मुताबिक़ 1808 ई’स्वी में 65 साल की उ’म्र में ब-रोज़-ए-जुमआ’ नमाज़-ए-अ’स्र की तीसरी रकअ’त के सज्दे में शहर-ए-बहराइच में हुई थी।(आसार-ए-हज़रत मिर्ज़ा ‘मज़हर’ जान-ए-जानाँ शहीद 2015 सफ़हा 328) आपकी तदफ़ीन जहाँ हुई वो आज इहाता-ए-शाह नई’मुल्लाह (रही·) गेंद घर मैदान के नाम से पूरे शहर में मशहूर है।आपके मज़ार और चहार-दीवारी की ता’मीर 1811 ई’स्वी मुताबिक़ 1226 हिज्री में उसी नक़्शा के मुताबिक़ कराई गई जिस नक़्शा के मुताबिक़ शाह नई’मुल्लाह बहराइची ने मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ की मज़ार की ता’मीर कराई थी,जो आज भी उसी हालत में मौजूद है।(आसार–ए-हज़रत मिर्ज़ा ‘मज़हर’ जान-ए-जानाँ शहीद, 2015, सफ़हा 328)

    उसी इहाता के एक हिस्सा में महकमा-ए-ता’लीम के दफ़ातिर और एक सरकारी नसूह इंटर कॉलेज भी क़ाएम हैं। गेंद घर मैदान आपके ही ख़ानदान की मिल्कियत थी जिसका बड़ा हिस्सा अंग्रेज़ी हुकूमत ने क़ब्ज़ा कर लिया था।

    “मआ’रिफ़” के शुमारा फरवरी 1992 ई’स्वी में मुई’न अहमद अ’ल्वी ने ज़ैल का क़ितआ’-ए-तारीख़-ए-विसाल नक़ल करते हुए लिखा है कि मा’मूलात-ए-मज़हरिया में ज़ैल का क़ितआ’-ए-तारीख़-ए-वफ़ात दर्ज है।

    मौलवी साहिब नई’मुल्लाह दर वक़्त-ए-नमाज़

    बहर-ए- सज्द: सर निहादः कर्द रेहलत ज़ीं जहाँ

    साल-ए-तारीख़श चू अनवर बा-दिल ग़म्गीं ब-जुस्त

    हातिफ़े गुफ़्ता ज़े-सर शुद सू-ए-हक़ राह़-ए-रवाँ

    1218 हिज्री

    रेहलत नमूद मौलवी नई’मुल्लाह वक़्त-ए-शाम

    सर रा ब-सज्दः-ए-बारी निहादः ब-इ’श्क़-ए-ताम

    कर्दम सवाल साल-ए-तवारीख़ रा ज़े-ग़ैब

    हातिफ़ ब-मन ब-गुफ़्त कि बाग-ए-नई’म-ए-दाम

    1218 हिज्री

    सय्यिद ज़फ़र अहसन साहिब सज्जादा-नशीन ख़ानक़ाह-ए-नई’मिया बहराइच आपकी दीगर तारीख़-ए-क़ित्आ’-ए-वफ़ात लिखते हैं।

    साल-ए-हिज्री ख़ूब शुद तारीख़-ए-ऊ

    सुब्ह फ़ौत आमद नई’मुल्लाह शाह

    1218 हिज्री 1804 = 586+

    गुफ़्तः-अम मन ख़ादिम-ए-दरगह ‘ज़फ़र’

    क़त्अ’-ए-तारीख़-ए-नई’मुल्लाह शाह

    आ’लिम-ए-दीं, आ’रिफ़-ए-नुक्तः-शनास

    बूदः-ई हज़रत नई’मुल्लाह शाह

    गुफ़्तमश तारीख़ अज़ यसरिब बुरुँ

    रफ़्त दर जन्नत नई’मुल्लाह शाह

    1930-712

    1218 हिज्री

    माद्दा-ए-तारीख़ः फ़िरोकश फ़िर्दोस-ए-बरीं

    1218 हिज्री

    सज्जादगान-ए-ख़ानक़ाह-ए-नई’मिया

    ख़ानक़ाह-ए-नई’मिया हज़रत शाह नई’मुल्लाह बहराइची की याद-गार है। इस ख़ानक़ाह के तमाम सज्जादगान अपनी अलग और मुन्फ़रिद पहचान और मक़ाम रखते थे। हज़रत शाह नई’मुल्लाह बहराइची की वफ़ात के बा’द उनके दामाद हज़रत शाह बशारतुल्लाह बहराइची (ख़लीफ़ा शाह ग़ुलाम अ’ली देहलवी (रहि·) जाँ-नशीन हुए।शाह बशारतुल्लाह बहराइची की वफ़ात के बा’द उनके बेटे शाह अबुल-हसन बहराइची जाँ-नशीन हुए।शाह अबुल-हसन बहराइची के दो बेटे शाह अबू मोहम्मद और शाह नूरुल-हसन बहराइची थे। शाह अबू मोहम्मद बहराइची साहिब के कोई साहिब-ज़ादे नहीं थे और पाँच लड़कियाँ थी। शाह अबुल-हसन बहराइची की वफ़ात के बा’द शाह नूरल-हसन जाँ-नशीन हुए।शाह नूरुल-हसन बहराइची (रहि·) के दो बेटे थे शाह अबुल-मकारिम बहराइची और शाह अ’ज़ीज़ुल-हसन बहराइची। शाह नूरुल-हसन बहराइची (रहि·) की वफ़ात के बा’द उनके बेटे शाह अ’ज़ीज़ुल-हसन बहराइची आपके जाँ-नशीन हुए।शाह अ’ज़ीज़ुल-हसन बहराइची की वफ़ात के बा’द शाह अ’ज़ीज़ुल-हसन के दामाद और भतीजे हज़रत मौलाना सय्यिद असलम शाह बहराइची (ख़लीफ़ा हज़रत मौलाना बशारत करीम गड़होलवी ज़िला सीतामढ़ी बिहार) आपके जाँ-नशीन हुए। सय्यिद असलम शाह बहराइची की वफ़ात के बा’द आपके चचा-ज़ाद भाई और शाह अ’ज़ीज़ुल-हसन बहराइची के साहिब-ज़ादे हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुल-हसन बहराची जाँ-नशीन हुए। हज़रत शाह अज़ीज़ुल-हसन बहराइची की वफ़ात 21/जून 2007 ई’स्वी को हुई।आपकी वफ़ात के बा’द आपके साहिब-ज़ादे हज़रत मौलाना सय्यिद शाह ज़फ़र अहसन नक़्शबंदी मुजद्दिदी मज़हरी नई’मी नदवी बहराइची दामत बरकातहुमुल-आ’लिया ख़ानक़ाह-ए-नई’मिया के सज्जादा-नशीन हुए।मौजूदा वक़्त में आप सिलसिला-ए-नक़्शबंदिया मुजद्दिदिया मज़हरिया नई’मिया की नश्र-ओ-इशाअ’त में मशग़ूल हैं। ख़ानक़ाह-ए-नई’मिया के मौजूदा सज्जादा-नशीन हज़रत सय्यिद शाह ज़फ़र अहसन साहिब मेरे वालिद रईस अहमद साहिब चूने वाले मरहूम के आज़ाद ईंटर कॉलेज में हम-जमाअ’त थे।

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