Sufinama

शैख़ सलीम चिश्ती

ख़्वाजा हसन निज़ामी

शैख़ सलीम चिश्ती

ख़्वाजा हसन निज़ामी

MORE BYख़्वाजा हसन निज़ामी

    मशहूर तो यूं है कि हिन्दुस्तान में इस्लाम का ज़माना मोहम्मद ग़ौरी से शुरूअ’ होता है मगर हक़ीक़त में दौर-ए-इस्लामी हज़रत ख़्वाजा हसन संजरी अल-मा’रूफ़ ब-ख़्वाजा मुई’नुद्दीन चिश्ती अजमेरी से चला और उन्हीं के सिलसिला से अब तक इस सर-ज़मीन पर बाक़ी है।

    बादशाहों ने मुल्क फ़त्ह किया और चिश्तियों ने दिलों की इक़्लीम।ख़्वाजा हसन मोहम्मद ग़ौरी से पहले यहाँ तशरीफ़ ले आए थे।जूँ जूँ ज़माना आगे बढ़ा चिश्तियों का असर आ’लम-गीर होता गया।मोहम्मद ग़ौरी के ग़ुलामों ने जब तक बादशाही की ख़्वाजा अजमेरी के जा-नशीन ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार देहलवी और उनके ख़ुलफ़ा के ग़ुलाम रहे।क़ुतुबुद्दीन ऐ’बक-ओ-शम्सुद्दीन अल्तमिश वग़ैरा ख़्वाजा क़ुतुब साहिब के मुरीद-ओ-हल्क़ा-ब-गोश थे और ग़ियासुद्दीन बलबन को क़ुतुब साहिब के जानशीन हज़रत बाबा फ़रीदुद्दीन गंज शकर से इरादत थी। बल्कि बा’ज़ आसार से पाया जाता है कि बलबन ने अपनी लड़की ब-ज़रिआ’-ए-निकाह बाबा साहिब की ख़िदमत में नज़्र की थी।बाबा साहिब के बा’द उनके जा-नशीन हज़रत ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया महबूब-ए-इलाही और उनके ख़ुलफ़ा के साथ शाहान-ए-ख़िलजी-ओ-तुग़लक़-ओ-लोधी का भी निहायत मुख़्लिसाना-ओ-नियाज़-मंदाना बरताव रहा।हज़रत महबूब-ए-इलाही ने अपने पाँचों ख़ुलफ़ा दकन भेज दिए जिनके बाइ’स दकन आज गुलज़ार-ए-चिश्त बना हुआ है।

    इसी सिलसिला-ए-चिश्त में हज़रत शैख़ सलीम चिश्ती हैं जिनको मुग़ल और पठान दोनों क़ौमों के बादशाहों से साबिक़ा पड़ा था और उन दोनों क़ौमों के ख़यालात अगर एक चीज़ पर मुजतमा’-ओ-मुत्तफ़िक़ हुए थे तो वो सिर्फ़ हज़रत शैख़ की अ’क़ीदत-ओ-मोहब्बत थी।

    हज़रत शैख़ को शहंशाह-ए-अकबर के ज़माना से ज़्यादा तअ’ल्लुक़ रहा है। तारीख़-ए-फ़रिश्ता में आपका तज़्किरा बहुत ही इख़्तिसार से किया गया है।इस से ज़्यादा हज़रत शैख़ अ’ब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी ने अख़बारुल-अख़्यार में लिखा है। तुज़्क-ए-जहांगीरी और मुल्ला अ’ब्दुल क़ादिर की तारीख़ में भी हज़रत शैख़ के हालात मिलते हैं।लेकिन सबसे ज़्यादा जवाहर-ए-फ़रीदी में आपके हालात जम्अ’ किए गए हैं जो जहाँगीर के ज़माना में लिखी गई थी।मेरे पास उसका एक क़दीमी क़लमी नुस्ख़ा है।

    मज़्कूरा किताबों से ज़ैल की इ’बारत मुरत्तब की गई है।

    हज़रत शैख़ का सिलसिला-ए-नसब बाबा साहिब तक इस तरह पहुंचता है।

    शैख़ सलीम बिन ख़्वाजा बहाउद्दीन बिन ख़्वाजा मेहता बिन ख़्वाजा सुलौमान बिन शौख़ आदम बिन ख़्वाजा मा’रूफ़ बिन ख़्वाजा मूसा बिन ख़्वाजा मौदूदीन ख़्वाजा बदरुद्दीन बिन हज़रत बाबा शकर गंज रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु।

    हज़रत शैख़ की विलादत के क़ब्ल आपके वालिदैन लुधियाना में रहते थे। उस के बा’द दिल्ली को वतन बना लिया।शैख़ दिल्ली ही में हज़रत अ’लाउद्दीन ज़िंदा पीर की सराय में पैदा हुए।जब नौ बरस की उ’म्र हुई आपके वालिदैन दिल्ली छोड़कर सीकरी चले गए और वहीं इक़ामत इख़्तियार कर ली।इस अस्ना में आपके वालिदैन का इंतिक़ाल हो गया और तर्बियत आपके बिरादर-ए-बुज़ुर्ग ख़्वाजा मूसा के हिस्सा में आई।

    चूँकि ख़्वाजा मूसा ला-वल्द थे हज़रत शैख़ को ख़ास शफ़क़त-ओ-मोहब्बत से परवरिश किया।जब आपकी उ’म्र चौदह बरस की हुई सफ़र इख़्तियार किया और सरहिंद में मौलाना मजदुद्दीन से इ’ल्म-ए-ज़ाहिर हासिल करने लगे।सतरह बरस की उ’म्र तक उ’लूम-ए-ज़ाहिर की तहसील की।उस के बा’द तकमील-ए-बातिन के शौक़ में अपने जद्द-ए-अमजद के मज़ार पर पाकपत्तन शरीफ़ में हाज़िर हुए और दीवान शैख़ इब्राहीम सज्जादा-नशीन हज़रत बाबा साहिब के मुरीद हो कर मजाज़-ए-बैअ’त हुए।ख़ानदान की तमाम नेअ’मतें और बरकतें लेकर अठारह साल की उ’म्र में ज़ियारत-ए-हरमैन के लिए अ’रब का सफ़र किया और वहाँ कई साल रह कर मुतअ’द्दिद हज किए।उसके बा’द 30 बरस की उ’म्र तक तमाम बिलाद-ए-अ’रब शाम-ओ-बग़दाद वग़ैरा की सैर करते रहे और वहाँ के मशाइख़ से फ़ैज़ हासिल किया।नीज़ अपनी ज़ात से वहाँ के बाशिंदों को फ़ाएदा पहुँचाया।

    मदीना मुनव्वरा के मुतवल्ली शैख़ रजब चपली आपके ख़लीफ़ा थे।उन्दुलुस में सय्यिद महमूद मग़्रिबी को आपसे ख़िलाफ़त थी और दिमश्क़ में शैख़ महमूद सामी आपके मुख़्तार ख़ुलफ़ा में शुमार किए जाते थे।

    जब आप बग़दाद में आए तो मज़ार-ए-पाक हज़रत ग़ौसुल-आ’ज़म की जानिब से अ’लावा फ़्यूज़-ए-बातिनी के सफ़ेद सूफ़ का एक ख़िर्क़ा दिया गया जो सन 1933 तक पाकपटन शरीफ़ में दीवान फ़ैज़ुल्लाह साहिब के पास मौजूद था।

    हज़रत शैख़ की रुहानी तर्बियत अगर्चे अव्वल से आख़िर तक हज़रत बाबा गंज शकर से हुई लेकिन फ़ैज़ दूसरे सिलसिला के बुज़ुर्गों से भी मिला है।मसलन हज़रत मौलाना ग़ौसुल-आ’ज़म,ख़्वाजा बहाउद्दीन नक़्शबंद,ख़्वाजा अहरार वग़ैरा।हिन्दुस्तान के अक्सर शहरों में आपके ख़ुलफ़ा पाए जाते थे।बा’ज़ के अस्मा-ए-गिरामी दर्ज किए जाते हैं।

    आपके चचा-ज़ाद भाई शैख़ कमाल अलवर में,शैख़ ताहा गुजरात में, शैख़ मोहम्मद शेरवानी पट्टन, इ’लाक़ा-ए-गुजरात में, शैख़ इब्राहीम बदायूँ में, शैख़ इ’माद बिन शैख़ मा’रूफ़ ग्वालियार में, शैख़ यूसुफ़ कश्मीर में, शैख़ जीवा,शैख़ भिखारी, शैख़ सुधारी दिल्ली में, शैख़ इब्राहीम सूफ़ी सरर्हिंद में हैं रहमतुल्लाहि अ’लैहिम अज्मई’न।

    तूल-तवील सफ़र से वापस कर कोह-ए-सीकरी पर इक़ामत फ़रमाई जो उन दिनों दरिंदों का मस्कन था।मगर आपकी सुकूनत के बा’द शहर की सी रौनक़ हो गई।

    जवाहर-ए-फ़रीदी में लिखा है कि जब हज़रत शैख़ मदीना मुनव्वरा में हाज़िर हुए तो इरादा किया कि अब हिन्दुस्तान वापस जाऊँ और दर-ए-रसूल पर रह कर जान दे दूं।मगर बारगाह-ए-रिसालत से रुहानी इशारा हुआ कि तुमको हिन्दुस्तान जाना चाहिए वहाँ तुम्हारी ज़ात से हज़ारों आदमियों को फ़ाएदा पहुँचेगा।ये मा’लूम करते ही हज़रत वापस चले आए।

    उन दिनों अकबर की हुकूमत थी और वो औलाद की तमन्ना में अक्सर बुज़ुर्गों की ख़िदमत में हाज़िर हुआ करता था।चुनाँचे अजमेर शरीफ़ बादशाह बेगम के साथ पैदल गया था और पाकपत्तन शरीफ़ में भी दीवान शैख़ ताजुद्दीन सज्जादा-नशीन बाबा साहिब से दुआ’ कराने के लिए हाज़िरी दी थी।

    लेकिन जब पाकपत्तन शरीफ़ हाज़िर हुआ तो दीवान साहिब ने फ़रमाया कि तुम्हारा मतलब बिरादरम शैख़ सलीम से पूरा होगा जो कोह-ए-सीकरी पर मुक़ीम हैं।ये सुनकर अकबर हज़रत की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और ब-कमाल-ए-नियाज़-मंदी क़दम-बोसी कर के हर्फ़-ए-मतलब अ’र्ज़ किया।हज़रत ने तबस्सुम कर के इर्शाद फ़रमाया बाबा घबराओ नहीं ख़ुदा तआ’ला फ़र्ज़न्द अ’ता करेगा।

    चंद रोज़ बा’द मा’लूम हुआ कि बेगम को हमल है।अकबर ये सुनकर बे-हद मसरूर हुआ और इस ख़बर को करामत-ए-शैख़ तसव्वुर कर के हुक्म दिया कि इन्क़िज़ा-ए-मुद्दत-ए-हमल,बेगम हज़रत शैख़ के मकान में रहे।हज़रत ने अव्वल इन्कार किया लेकिन जब शाह का इसरार इलहाह तक पहुँचा तो मंज़ूर फ़रमा लिया।चुनाँचे हमल के तमाम अय्याम हज़रत शैख़ के दौलत-ख़ाना में बसर हुए और नूरुद्दीन मोहम्मद जहाँगीर बादशाह वहीं पैदा हुआ।

    जिस वक़्त अकबर को ये इत्तिलाअ’ हुई ख़ुशी से जामा में समाया और फ़तहपुर हाज़िर हो कर शैख़ की क़दम-बोसी हासिल की।उस के बा’द नव-ज़ादा फ़र्ज़न्द को सीना से लगा कर हज़रत शैख़ से नाम रखने के लिए अ’र्ज़ किया।आपने फ़रमाया उसका नाम मेरा नाम है।उसी दिन से शहज़ादा को सुल्तान सलीम कहने लगे।तौलीद-ए-फ़र्ज़न्द के बा’द अकबर ने इल्तिजा की कि ये बच्चा हुज़ूर का है इस की परवरिश भी यहीं होनी चाहिए।आपने क़ुबूल फ़रमाया।उसके बा’द अकबर ने हुक्म दिया कि उस पहाड़ पर महल्लात-ए-शाही और शैख़ की ख़ानक़ाह-ओ-मस्जिद निहायत आ’लीशान ता’मीर की जाए।चुनाँचे उस वीरान और उजाड़ जंगल में वो वो फ़लक-नुमा इ’मारतें बनी हैं जिनको देखने के लिए तमाम दुनिया के सय्याह आते हैं।

    शहज़ादा सलीम को तमाम जहान की नेअ’मतों में सबसे बड़ी नेअ’मत ये हासिल थी कि हज़रत शैख़ की ज़ौजा का दूध पिया था।

    शैख़ क़ुतुबुद्दीन उन्हीं ख़ातून के बत्न से थे और शहज़ादा सलीम के दूध शरीक थे जिनको जहाँगीर ने बंगाल का हाकिम बना के भेजा था।यही हज़रत शेर अफ़गन ख़ान के हाथ से शहीद हो कर उसके घर-बार की ज़ब्ती का सबब बने थे।

    शहज़ादा सलीम की पैदाइश के बा’द अकबर को फ़तहपुर में रहने का शौक़ सा हो गया था।वो अक्सर औक़ात हज़रत शैख़ की ख़िदमत में हाज़िर रहता और फ़ैज़-ए-सोहबत हासिल करता था।उसकी तबीअ’त में सुल्ह-ए-कुल का माद्दा हज़रत ही की सोहबत के सबब पैदा हुआ था।अख़बारुल-अख़्यार का बयान है कि अकबर को हज़रत से इस क़दर अ’क़ीदत थी कि किसी क़िस्म का राज़ बाक़ी था जो आप पर ज़ाहिर हो।

    आख़िर वो ज़माना भी आया जो सबको पेश आना है।या’नी सन 979 हिज्री,रमज़ान का आख़िरी अ’शरा,ए’तिकाफ़ की हालत, 21 तारीख़ पंज-शंबा की पिछली रात थी कि ये चिश्तियों का सितारा झिलमिला झिलमिला कर ग़ुरूब हो गया।वफ़ात के वक़्त अक्सर ख़ुलफ़ा-ओ-मुरीदीन और तमाम अहल-ए-बैअ’त हल्क़ा बनाए बैठे थे।उन सबको वसिय्यतें फ़रमाईं और सब्र-ओ-इस्तिक़लाल की फ़रर्माइश की।

    जिस वक़्त जनाज़ा उठा बे-शुमार ख़िल्क़त साथ थी।ख़ुद शहनशाह अकबर,हाजी अ’ब्दुन्नबी और मख़्दूमुल-मुल्क दूर तक जनाज़ा-ए-मुबारक कंधे पर उठाए रहे।

    95 साल की उ’म्र पाई। आप ने आठ लड़के और चौदह लड़कियाँ कुल 22 औलादें बाक़ी छोड़ीं। मज़ार-ए-मुबारक पर जिस क़दर इ’मारत है उसका अक्सर हिस्सा आपकी हयात में तैयार हो गया था।ख़ानक़ाह की तारीख़ बिना-ए-ख़ानक़ाह-ए-अकबर है।अकबर से पहले शेरशाह और सलीम शाह-ओ-ख़्वास ख़ान वग़ैरा को भी आपसे ख़ास इरादत थी मगर हेमू ने वो बात रखी और शायद कुछ ईज़ा भी पहुँचाई जिसके सबब हज़रत ने दुबारा सफ़र किया था।

    जब आपके साहिब-ज़ादा शैख़ क़ुतुबुद्दीन शेर अफ़गन के हाथ से शहीद हो गए तो जहाँगीर ने आपके पोते शैख़ अ’लाउद्दीन को इस्लाम ख़ान लक़ब देकर बंगाला का हाकिम मुक़र्रर कर दिया था।जवानी में हज़रत शैख़ का लिबास भी सिपाहियाना रहता था।आख़िर उ’म्र तक रोज़ सुब्ह के वक़्त ठंडे पानी से ग़ुस्ल करते थे और बारीक कपड़े का सिर्फ़ एक कुर्ता पहनते थे।कैसी ही सख़्त सर्दी पड़ती मगर उस मा’मूल में फ़र्क़ आता।नमाज़ उ’मूमन अव्वल वक़्त पढ़ लेते थे।उनकी महफ़िलें उमरा की तरह रोक-टोक होती थीं।जिसको चाहते आने देते जिसको चाहते रोक देते।

    आख़िर तक जिस्मानी सेहत ऐसी उ’म्दा थी कि बराबर तय के रोज़े रखते मगर किसी क़िस्म का ज़ोअ’फ़ होता।ख़ुराक निहायत सादा थी।उ’म्दा नबातात का इस्ति’माल करते थे।

    कसीरुल-औलादी और रियाज़तहा-ए-शाक़्क़ा के बावुजूद 95 बरस ज़िंदा रहे।ये सब पाक-बाज़ी और रुहानी रियाज़त का सदक़ा था।

    आ’रिफ़-ए-बे-नज़ीर शैख़ सलीम

    मुर्शिद-ओ-रहनुमा-ए-हफ़्त-इक़्लीम

    साल-ए-तरहील-ए-आँ वली-ए-करीम

    हातिफ़म गुफ़्त बद्र-ए-ख़ुल्द-ए-सलीम

    सन 990 हिज्री

    स्रोत :
    • पुस्तक : Monthly Zamana, Delhi

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

    GET YOUR PASS
    बोलिए