دیباچہ
भूमिका
غلامی میں نہ کام آتی ہیں شمشیریں نہ تدبیریں
गुलामी में न काम आती हैं शमशीरें न तदबीरें
موکوں کہاں ڈھوڑھے بندے میں تو تیرے پاس میں
मोकों कहाँदूढ़े बन्दे, मैं तो तेरे पास में
سادھو بھائی، جیوت ہی کرو آسا
سنتن جات نہ پوچھو نر گنیاں
साधे भई, जीवत ही करो आसा।
सन्तन जात न पूछो निगगुनियाँ।
چندا جھلکےیہی گھٹ ماہیں
باگوں نا جارے نا جا تیری کایا میں گل جار
اودھو مایا تجی نہ جائی
बागों ना जा रे ना जा, तरेी काया में गुलजार।
अवधू, माया तजी न जाई।
चंदा झलकै यहि घटमाहीं।
سادھو برہم الکھ لکھایا
साधे, ब्रह्म अलख लाखया।
اس گھٹ انتر باگ بگیچے اسی میں سرجن ہارا
इसघट अन्तर बाग-बगीचे, इसी में सिरजनहारा।
ایسا لو نہیں تیسا لو، میں کیھا بدھی کتھوں گنبھیرا لو
تو ہیں موری لگن لگائے رے پھکروا
लोहिं मोरि लंगन लगाये रे फकिरवा।
ऐसा लो नहिं तैसा लो, मैं कहि बिधि कथैं गंभीरा लो।
نس دن کھیلت رہی سکھیں سنگ
ہنسا کرو پراتن بات
हंसा करो पुरातन बात।
निस-दिन खेलत रही सखियन संग,
ان گڑھیا دیوا، کون کرے تیری سیوا
अनगढि़या देवा, कौन करै तेरी सेवा।
جہاں کھیلت بسنت رت راج
دریاؤ کی لہر دریاؤ ہے جی
जहाँ खेलत बसन्त रितुराज
दरियाबकी लहर दरियाव हैजी
گرہ چندر تپن جوت برت ہے
جہاں چیت اچیت کھنبھ دوؤ من رچیا ہے ہنڈور
ग्रह चंद्र तपन जोत बरत है
जहँ चेत-अचेत खंब दोउ मन रच्या है हिंडोर।
دیکھ ووجود میں عجب بسرام ہے
چھن اور پلک کی ارتی کون سی
کہیں کبیر تہاں رین دن آرتی
कहें कबीर तहँ रैन-दिन आरती
क्षण और पलककी आरती कौनसी
چکر کے بیج میں کنول ات پھولیا تاس کا سکھ کوئی سنت جانے
پانچ کی پیاس تہاں دیکھ پوری بھئی، تین کی ناپ تہاں لگے ناہیں
चक्रके बीजमें कँवल अति फूलिया तासुका सुक्ख कोई सन्त जानै।
पाँचकी प्यास तहँ देख पूरी भई तीन की ताप तहँ लगै नाहीं।
देख वोजूदमें अजब बिसराम है
جنم مرن بیچ دیکھ انتر نہیں
اُدھر آسن کیا اگم پیالا پیا
अधर आसन किया अगम प्याला पिया
जनम-मरन बीच देख अन्तर नहीं
آٹھہو پہر متوال لاگی رہے
مکھۂ بانی تکو سواد کیسے کہے
چھکیاں اؤدھوت مستان ماتا رہے
بن کر تانتیا ناد گاتا رہے
बिन कर ताँतिया नाद गाता रहै
छक्याँ अवधूत मस्तान माता रहै
आठहू पहर मतवाल लागी रहै
मुक्ख बानी तिका स्वाद कैसे कहै
سانچ ہی کہت اور سانچ ہی گہت ہے
سدا آنند ڈگ دند ویاپے نہیں
گگن گرجے تہاں سدا پاوس جھرے
गगन गरज तहाँ सदा पावस भरै
साँच ही कहत और साँच ही गहत है
सदा आनंद दुग-दन्द व्यापै नहीं
کھیل برھما نڈ کا پنڈ میں دیکھیا
مدّھ اکاس آپ جہاں بیٹھے ، جوت سید اجیارا ہو
د یکھ دیدار مستان میں ہوئے رہیا
मद्ध अकास आप जहँ बैठे, जोत सब्द उजियारा हो।
देख दीदार मस्तान मै होय रह्मा
खेल ब्रह्माण्डका पिंडमें देखिया
من تو پار اتر کہاں جیہو
پرماتم گرو نکٹ وراجیں
परमातम गुरु निकट विराजै
मन, तू पार उतर कहँ जैहों।
گھر گھر دیپک برے لکھے نہیں،اندھ ہے
घर घर दीपक बरै, लखै नहिं अन्ध है।
تمر سانجھ کا گہرا اوے چھاوے پریم من تن میں
سادھو سوست گرو مونہی بھاوے
साधे, सो सतगुरु मोहि भवै।
तिंविर साँभका गहिरा आवै, छावै प्रेम मन-तनमे।
جس سے رہن اپار جگت میں سو پریتم مجھے پیرا ہو
ہری نے اپنا آپ چھپا یا
हरिने अपना आप छिपाया।
जिससे रहनि अपार जगत में, सो प्रीतम मुभे पियारा हो।
اونکار سبے کوئی سرجے، راگ سروپی انگ
ओंकार सबै कोई सिरजै, रागस्वरूपी अंग।
ست گرو سوئی دیا کردینہا
सतगुरू सोई दया करि दीन्हा।
نرگن آگے سرگن ناچے
निरगुन आगे सरगुन नाचै
کبیر کب سے بھئے بیرا گی
कबीर, कबसे भये बैरागी।
یاترور میں ایک پکھیرو بھوگ سرس وہ ڈولے رے
نس دن سالے گھاؤ، نیند آوے نہیں
निस-निद सालै घव, नींद आवै नहीं।
या तरिवर में एक पखेरू, भोग सरस बह डोलै रे।
من مست ہوا تب کیوں بولے
ناچ رے میرے من مت ہوئے
मन मस्त हुआ तब क्यों बोले।
नाचु रे मेरे मन मत्त् होय।
موں ہی توں ہی لاگی، کیسے چھوٹے
بالم آؤ ہمارے گیہ رے
मोंहि तोंहि लागी कैसे छूटे।
बालम, आवो हमारे गेह रे।
جاگ پیاری اب کا سووے
जाग पियारी अब का सोवै।
سور سنگرام کو دیکھ بھاگے نہیں
سور پرکاس تہاں رین کہاں پائے
پکڑ سمسیر سنگرام میں پیسئے
सूर- परकास, तहँ रैन कहँ पाइये
सूर संग्रामको देख भगै नहीं।
पकड़ समसेर संग्राम मै पैसिये
بھرم کا تالا لگا محل رے، پریم کی کنجی لگاؤ
سادھ کو کھیل تو بکٹ بینڑا متی
भमका ताला लगा महल रे, प्रेमकी कुंजी लगाव।
साधको खेल तो बिकट वेंडा मती
سادھو یہ تن ٹھاٹھ تنبورے کا
اودھو، بھولے کو گھر لاوے
अवधू, भूलेको घर लावै।
साधे, यह तन ठाठ तँबूरेका।
سنتو سہج سما دھ بھلی
सन्तो, सहज समाधि भली।
پانی بچ مین پیاسی
تیرتھ میں تو سب پانی ہے، ہووے لہیں کچھ انہانے دیکھا
گگن مٹھ گیب نسان اڑے
तीरथ में तो सब पानी है, होवे नहीं कुछु अन्हाय देखा।
गगन मठ गैब निसान उडै।
पानी बिच मीन पियासी।
سادھو سہجے کایا سو دھو
سادھو، کو ہے کہاں سے آیو
साधे, को है कहँसें आया।
साधे, सहजै काया सोधो।
ترور ایک مول بن ٹھاڑھا، بن پھولے پھل لاگے
چلت منسا اچل کینہی من ہوا رنگی
तरवर एक मूल बिन ठाढ़ा, बिन फूले फल लागे।
चलत मनसा अचल कीन्ही, मन हुआ रंगी।
مرلی بجت اکھنڈ سداسے، تہاں پریم جھنکارا ہے
جو دیسے سو تو ہے ناہیں ہے
मुरली बजत अखंड सदासे, तहाँ प्रेम भनकारा हे।
जो दीसै सो तो है नाहीं, है सो कहा न जाई।
سکھیو، ہم ہوں بھئی بلماسی
سائیں بن درد کریجے ہوئے
सखिसों, हमहूँ भई बलमासी
सांई बिन दरद करेजे होय।
کون مرلی شد سن آنند بھیو
سنتا نہیں دھن کی کھبر انہد کا باجا باجتا
सुनता नहीं धुनकी खबर, अनहद का बाजा बाजता।
कौन मुगली-शब्द सुन आनन्द भयो
بھکت کا مارگ جھینارے
بھائی کوئی ست گرو سنت کہاوے
भक्ति मारग झीना रे।
भई, कोई सतगुरु सन्त कहावै।
سادھو شبد سادھنا کیجے
साधे, शब्द-साधना कीजै।
پی لے پیالا، ہو متوالا
کھسم نہ چینہے باوری، کا کرت بڑائی
पीले प्याला हो मतवाला
खसम न चीन्हैं बावरी, का करत बड़ाई।
سکھ ساگر میں آئے کے مت جارے پیاسا
سکھ سندھ کی سیر کا سواد تب پائی ہے
ستی کو کون سکھاوتا ہے
सुखतिधकी सैरका स्वाद तब पाई है।
सतीको कौन सिखवता है।
सुखसागर में आयके मत जारे प्यासा।
سائیں سے لگن کٹھن ہے بھائی
ارے من دھیرج کاہے نہ دھیرے
साई से लगन कठिन है भाई।
अरे मन धीरज काहे न धरै।
جب میں بھولا رے بھائی
मै जब भूला रे भाई
من نا رنگائے رنگائے جوگی کپڑا
نا جانے صاحب کیسا ہے
ना जानै साहब कैसा है।
मन ना रँगाये रँगाये जोगी कपड़ा।
جو کھودائے مسجید بست ہے اور ملک کیہر کیرا
ہم سوں رہا نہ جائے مرلیا کے دھن سن کے
हम सौ रहा न जाय मुगलियाकै धुन सुनके।
जो खेदाय मसजीद बसतु है और मुलुक केहि केरा।
سادھ سنگت ہیتم اہاں چل جائیے
سیل سنتوش سدا سم درشٹ رہن گہن میں پورا
साध-संगत पीतम उहाँ चल जाइये।
सील-सन्तोष सदा समदृष्टि, रहनि गहनि में पूरा।
تو ہار ہیرا ہرائل با کچڑے میں
آیو دن گونے کے ہو من ہوت ہلاس
आयौ दिन गौनेकै हो, मन होत हुलास।
तोर हीरा हिगइल बा किचडेमैं।
پریم نگر کا انت نہ پایا جیون آیا تیوں جاویگا
प्रम नगर का अन्त न पाया, ज्यों आया त्यों जावैगा।
تو صورت نین نہار، وہ انڈ میں سارا ہے
بید کہے سرگن کے آگے نرگن کا بسرام
बेद कहे सरगुनके आगे निरगुनका बिसराम।
तू सूगत नैन निहार वह अंडमें सारा है।
لیلا سکھ اننت وہا کی
लीला सुक्ख अन्न्त वहाँ की
چل ہنساوا دیس جہاں پیا بسے چت چور
کہیں کبیر سنو ہو سادھو امرت بچپن ہمار
चल हंसा वा देसा जहँ पिया बसै चितचारे।
कहैं कबीर सुनो हो साधो, अंमृत-बचन हमारा।
ست نام ہے سب تیں نیارا
ناہیں دھرمی ناہیں ادھرمی، ناہیں جتی نہ کامی ہو
सत्त् नाम है सबत न्यारा।
ना मैं धर्मी नाहीं अधर्मी, ना मैं जती न कामी हो।
پر نھم ایک جو آپے آپ
प्रथम एक जो आपै आप। निरकर निर्गुन निर्जाप
کہیں کبیر وچار کے
कहैं कबीर विचारिके, जाकै बर्न न गाँव।
مور پھکروا مانگ جائے
جھی جھی جنتر باجے
झी झी जंतर बाजै।
मोर फकिरवा मांगि जाय
نیہر سے جیرا پھاٹ رے
नैहर से जियरा फाट रे।
گگن گھٹا گھہرانی سادھو، گگن گھٹا گھہرانی
جیو محل میں سو پہئنواں، کہاں کرت انماد رے
जीव महलमें सिव पहुनवाँ, कहाँ करत उनमांद रे।
गगनघटा घहरानी साधो, गगनघटा घहरानी।
ااج دن کے میں جاؤں بلہاری
کوئی سنتا ہےگیانی راگ گگن میں، اواج ہوتی پانی
आज दिनके मैं जाऊ बलिहारी।
काई सुनता है ज्ञानी राग गगन में, अवाज होती पीनी।
میں کاسوں کہوں آپن پیہ کی بات رے
سنسکرت بھاشا پڑھ لینہا، گیانی لوک کہوری
چرکھا چلے سرت برہن کا
मैं कासो कहां आपन पियकी बात री।
चरखा चलै सुरत बिरहिन्का।
संसकिरत भषा पढि लीन्हा, ज्ञानी लोक कहो री।
اودھو، بیگم دیس ہمارا
کولن بھان چندر ناراگن، چھتر کی چھانہہ رہائی
कोटिन भनु-चन्द्र-ताारा-गन छत्रकी छाँह रहाई।
अवधू बेगम देसा हमारा।
سمجھ دیکھ من میت پیروا
سائیں کے سنگ ساسر آئی
सुमुभ देख मन मीत पियरवा
साँईके संग सासुर आई।
کوئی پریم کی پینگ جھلاؤ رے
نارد پیار سو انتر ناہیں
नारद, प्यार सो अन्तर नाहीं।
काई प्रेमकी पेंग भुलावै।
ہوں تو سب ہی کی کہوں، موگوں کوؤ نہ جان
امرت برسے ہیرا نپجے
हौं तो सबहीकी कहो, मौको कोउ न जान।
अंमृत बरिसै हीरा निपजै,
اودھو کدرت کی گت نیاری
अवधू, कुदरतिकी गति न्यारी।
الٹی جات کل دووبساری
بوجھو پنڈت، کرہو بچاری پرش اہے کہ ناری
उलटि जात-कुल दोऊ बिसारी। सुत्र सहज महि बुनत हमारी।
बूभहू पंडित, करहू बिचारी, पुरुष आहै की नारी।
اے مایا رگھناتھ کی بوری کھیلن چلی اہیرا ہو
رام تیری مایا دند مچاوے
राम तेरी माया दुद मचावै।
ई माया रधुनाथकी बौरी, खेलन चली अहेरा हो।
بانگڑ دیس لوون کا گھر ہے نہاں جن جائی داجھن کا ڈر ہے
बांगड देस लूवनका घर है, तहँ जिनि जाई दाभनका डर है।
رہنا نہیں دیس پرانا ہے
تمہہ گھر جاہ ہماری بہنا ، وش لاگیں تہارے نیناں
रहना नहि दस बिराना है।
तुम्ह घरि जाहु हमारी बहना, विष लागैं तिहारे नैना।।
مایا مہا ٹھگنی ہم جانی
मया महा ठगनी हम जानी।
پانرے بوجھ پیہو تم پانی
یا کریم بل حکمت تیری
पाँ बूभि पियहू तुम पानी।
या करीम बलि हिकमति तेरी
سادھو، پانڑے نپن کسائی
साधो, पाँडे निपुन कसाई।
پانڑے نہ کرسی باد ببادم
पाँडे न करसी बाद-बिवादं
من بنیاں بنج نہ چھوڑے
मन बनियाँ बनिज न छोड़ै।
میرا تیرا منواں کسیے اک ہوئی رے
मेरा-तेरा मनुआँ कैसे इक होई रं।
دلہن انگیا کاہے نہ دھووائی
سادھو دیکھو جگ بورانا
साधो, देखो जग बौराना।
दुलहिन अँगिया काहे न धेवाई।
میاں نمھ سو بلویاں بن نہیں آوے
मीयाँ तुम्हसौ बोल्यराँ बणि नहीं आवै।
ابناسی دولہا کب ملہو، بھکتن کے رچھپال
अबिनासाी दुलहा कब मिलिहौ, भक्तन के रछपाल।
تن من دھن باجی لاگی ہو
तन-मन-धन बाजी लागी हो।
گگن کی اوٹ نسانا ہے
کیسے دن کٹہیں جتن بتائے جئیو
कैसे दिन कटिहै जतन बताये जइयो,
गगनकी आट निसाना हैं
ان پرپت وست کو کہا تجے، پراپت کو تجے سو تیاگی ہے
سوچ سمجھ ابھمانی، چادر بھئی ہے پرانی
सोच -समुभ अभिमानी, चादर भीई है पुरानी।
अनप्रापत वस्तुको कहा जते, प्रापतको तजे सो त्यागी हैं
دئی جگدیس کہاں تے آیا،کہۂ کوتے بھر مایا
تو کو پیو ملیں گے ، گھونگھٹ کے پٹ کھول رے
दुई जगदीस कहाँते आया, कहु कवने भरमाया।
तोको पीव मिलैगे घूँघटके पट खोल रे।
من تم ناہک دند مچائے
मन, तुम नाहक दुंद मचाये।
یہ جگ اندھا میں کیہہ سمجھاوں
यह जग अंध मैं केहि समुभवों।
حواشی
حسن خویش از روئے خوباں آشکارا کردہ یی
بشنو ازنے چو حکایت می کند
ہم سے پہلے تھا عجب تیرے جہاں کا منظر
ماخازن خزانۂ دلدادر بودہ ایم
ہے رنگ لالہ و گل ونسریں جدا جدا
پرسید یکے منزل آن مہر گسیل
دل سے پوچھا یہ کہ عشق کی راہ
دلا منشیں دراین ویرانہ چوں چغد
टिप्पणियाँ
हुस्ने- खेश अज़ रूए-खूत्रां आशकारा कर दई
बिश्नौ अज़ नय चूँ हिकायत भी कुनद
हम से पहले थ अजब तेरे जहाँ का मंज़र
मा खजि़ने- ख़जानए-दिल दार बूदः एम
है रंग-लालः-ओ -गुल -ओ-नसरीं जुदा-जुदा
पुर्सीद यके मंजि़ले आँ मेह-गुसिल
दिल से पूछा यह मैं कि इश्क़ की राह
दिला मनशीं दर ईं वीरानः चूँ चुग्द
YEAR1965
YEAR1965
دیباچہ
भूमिका
غلامی میں نہ کام آتی ہیں شمشیریں نہ تدبیریں
गुलामी में न काम आती हैं शमशीरें न तदबीरें
موکوں کہاں ڈھوڑھے بندے میں تو تیرے پاس میں
मोकों कहाँदूढ़े बन्दे, मैं तो तेरे पास में
سادھو بھائی، جیوت ہی کرو آسا
سنتن جات نہ پوچھو نر گنیاں
साधे भई, जीवत ही करो आसा।
सन्तन जात न पूछो निगगुनियाँ।
چندا جھلکےیہی گھٹ ماہیں
باگوں نا جارے نا جا تیری کایا میں گل جار
اودھو مایا تجی نہ جائی
बागों ना जा रे ना जा, तरेी काया में गुलजार।
अवधू, माया तजी न जाई।
चंदा झलकै यहि घटमाहीं।
سادھو برہم الکھ لکھایا
साधे, ब्रह्म अलख लाखया।
اس گھٹ انتر باگ بگیچے اسی میں سرجن ہارا
इसघट अन्तर बाग-बगीचे, इसी में सिरजनहारा।
ایسا لو نہیں تیسا لو، میں کیھا بدھی کتھوں گنبھیرا لو
تو ہیں موری لگن لگائے رے پھکروا
लोहिं मोरि लंगन लगाये रे फकिरवा।
ऐसा लो नहिं तैसा लो, मैं कहि बिधि कथैं गंभीरा लो।
نس دن کھیلت رہی سکھیں سنگ
ہنسا کرو پراتن بات
हंसा करो पुरातन बात।
निस-दिन खेलत रही सखियन संग,
ان گڑھیا دیوا، کون کرے تیری سیوا
अनगढि़या देवा, कौन करै तेरी सेवा।
جہاں کھیلت بسنت رت راج
دریاؤ کی لہر دریاؤ ہے جی
जहाँ खेलत बसन्त रितुराज
दरियाबकी लहर दरियाव हैजी
گرہ چندر تپن جوت برت ہے
جہاں چیت اچیت کھنبھ دوؤ من رچیا ہے ہنڈور
ग्रह चंद्र तपन जोत बरत है
जहँ चेत-अचेत खंब दोउ मन रच्या है हिंडोर।
دیکھ ووجود میں عجب بسرام ہے
چھن اور پلک کی ارتی کون سی
کہیں کبیر تہاں رین دن آرتی
कहें कबीर तहँ रैन-दिन आरती
क्षण और पलककी आरती कौनसी
چکر کے بیج میں کنول ات پھولیا تاس کا سکھ کوئی سنت جانے
پانچ کی پیاس تہاں دیکھ پوری بھئی، تین کی ناپ تہاں لگے ناہیں
चक्रके बीजमें कँवल अति फूलिया तासुका सुक्ख कोई सन्त जानै।
पाँचकी प्यास तहँ देख पूरी भई तीन की ताप तहँ लगै नाहीं।
देख वोजूदमें अजब बिसराम है
جنم مرن بیچ دیکھ انتر نہیں
اُدھر آسن کیا اگم پیالا پیا
अधर आसन किया अगम प्याला पिया
जनम-मरन बीच देख अन्तर नहीं
آٹھہو پہر متوال لاگی رہے
مکھۂ بانی تکو سواد کیسے کہے
چھکیاں اؤدھوت مستان ماتا رہے
بن کر تانتیا ناد گاتا رہے
बिन कर ताँतिया नाद गाता रहै
छक्याँ अवधूत मस्तान माता रहै
आठहू पहर मतवाल लागी रहै
मुक्ख बानी तिका स्वाद कैसे कहै
سانچ ہی کہت اور سانچ ہی گہت ہے
سدا آنند ڈگ دند ویاپے نہیں
گگن گرجے تہاں سدا پاوس جھرے
गगन गरज तहाँ सदा पावस भरै
साँच ही कहत और साँच ही गहत है
सदा आनंद दुग-दन्द व्यापै नहीं
کھیل برھما نڈ کا پنڈ میں دیکھیا
مدّھ اکاس آپ جہاں بیٹھے ، جوت سید اجیارا ہو
د یکھ دیدار مستان میں ہوئے رہیا
मद्ध अकास आप जहँ बैठे, जोत सब्द उजियारा हो।
देख दीदार मस्तान मै होय रह्मा
खेल ब्रह्माण्डका पिंडमें देखिया
من تو پار اتر کہاں جیہو
پرماتم گرو نکٹ وراجیں
परमातम गुरु निकट विराजै
मन, तू पार उतर कहँ जैहों।
گھر گھر دیپک برے لکھے نہیں،اندھ ہے
घर घर दीपक बरै, लखै नहिं अन्ध है।
تمر سانجھ کا گہرا اوے چھاوے پریم من تن میں
سادھو سوست گرو مونہی بھاوے
साधे, सो सतगुरु मोहि भवै।
तिंविर साँभका गहिरा आवै, छावै प्रेम मन-तनमे।
جس سے رہن اپار جگت میں سو پریتم مجھے پیرا ہو
ہری نے اپنا آپ چھپا یا
हरिने अपना आप छिपाया।
जिससे रहनि अपार जगत में, सो प्रीतम मुभे पियारा हो।
اونکار سبے کوئی سرجے، راگ سروپی انگ
ओंकार सबै कोई सिरजै, रागस्वरूपी अंग।
ست گرو سوئی دیا کردینہا
सतगुरू सोई दया करि दीन्हा।
نرگن آگے سرگن ناچے
निरगुन आगे सरगुन नाचै
کبیر کب سے بھئے بیرا گی
कबीर, कबसे भये बैरागी।
یاترور میں ایک پکھیرو بھوگ سرس وہ ڈولے رے
نس دن سالے گھاؤ، نیند آوے نہیں
निस-निद सालै घव, नींद आवै नहीं।
या तरिवर में एक पखेरू, भोग सरस बह डोलै रे।
من مست ہوا تب کیوں بولے
ناچ رے میرے من مت ہوئے
मन मस्त हुआ तब क्यों बोले।
नाचु रे मेरे मन मत्त् होय।
موں ہی توں ہی لاگی، کیسے چھوٹے
بالم آؤ ہمارے گیہ رے
मोंहि तोंहि लागी कैसे छूटे।
बालम, आवो हमारे गेह रे।
جاگ پیاری اب کا سووے
जाग पियारी अब का सोवै।
سور سنگرام کو دیکھ بھاگے نہیں
سور پرکاس تہاں رین کہاں پائے
پکڑ سمسیر سنگرام میں پیسئے
सूर- परकास, तहँ रैन कहँ पाइये
सूर संग्रामको देख भगै नहीं।
पकड़ समसेर संग्राम मै पैसिये
بھرم کا تالا لگا محل رے، پریم کی کنجی لگاؤ
سادھ کو کھیل تو بکٹ بینڑا متی
भमका ताला लगा महल रे, प्रेमकी कुंजी लगाव।
साधको खेल तो बिकट वेंडा मती
سادھو یہ تن ٹھاٹھ تنبورے کا
اودھو، بھولے کو گھر لاوے
अवधू, भूलेको घर लावै।
साधे, यह तन ठाठ तँबूरेका।
سنتو سہج سما دھ بھلی
सन्तो, सहज समाधि भली।
پانی بچ مین پیاسی
تیرتھ میں تو سب پانی ہے، ہووے لہیں کچھ انہانے دیکھا
گگن مٹھ گیب نسان اڑے
तीरथ में तो सब पानी है, होवे नहीं कुछु अन्हाय देखा।
गगन मठ गैब निसान उडै।
पानी बिच मीन पियासी।
سادھو سہجے کایا سو دھو
سادھو، کو ہے کہاں سے آیو
साधे, को है कहँसें आया।
साधे, सहजै काया सोधो।
ترور ایک مول بن ٹھاڑھا، بن پھولے پھل لاگے
چلت منسا اچل کینہی من ہوا رنگی
तरवर एक मूल बिन ठाढ़ा, बिन फूले फल लागे।
चलत मनसा अचल कीन्ही, मन हुआ रंगी।
مرلی بجت اکھنڈ سداسے، تہاں پریم جھنکارا ہے
جو دیسے سو تو ہے ناہیں ہے
मुरली बजत अखंड सदासे, तहाँ प्रेम भनकारा हे।
जो दीसै सो तो है नाहीं, है सो कहा न जाई।
سکھیو، ہم ہوں بھئی بلماسی
سائیں بن درد کریجے ہوئے
सखिसों, हमहूँ भई बलमासी
सांई बिन दरद करेजे होय।
کون مرلی شد سن آنند بھیو
سنتا نہیں دھن کی کھبر انہد کا باجا باجتا
सुनता नहीं धुनकी खबर, अनहद का बाजा बाजता।
कौन मुगली-शब्द सुन आनन्द भयो
بھکت کا مارگ جھینارے
بھائی کوئی ست گرو سنت کہاوے
भक्ति मारग झीना रे।
भई, कोई सतगुरु सन्त कहावै।
سادھو شبد سادھنا کیجے
साधे, शब्द-साधना कीजै।
پی لے پیالا، ہو متوالا
کھسم نہ چینہے باوری، کا کرت بڑائی
पीले प्याला हो मतवाला
खसम न चीन्हैं बावरी, का करत बड़ाई।
سکھ ساگر میں آئے کے مت جارے پیاسا
سکھ سندھ کی سیر کا سواد تب پائی ہے
ستی کو کون سکھاوتا ہے
सुखतिधकी सैरका स्वाद तब पाई है।
सतीको कौन सिखवता है।
सुखसागर में आयके मत जारे प्यासा।
سائیں سے لگن کٹھن ہے بھائی
ارے من دھیرج کاہے نہ دھیرے
साई से लगन कठिन है भाई।
अरे मन धीरज काहे न धरै।
جب میں بھولا رے بھائی
मै जब भूला रे भाई
من نا رنگائے رنگائے جوگی کپڑا
نا جانے صاحب کیسا ہے
ना जानै साहब कैसा है।
मन ना रँगाये रँगाये जोगी कपड़ा।
جو کھودائے مسجید بست ہے اور ملک کیہر کیرا
ہم سوں رہا نہ جائے مرلیا کے دھن سن کے
हम सौ रहा न जाय मुगलियाकै धुन सुनके।
जो खेदाय मसजीद बसतु है और मुलुक केहि केरा।
سادھ سنگت ہیتم اہاں چل جائیے
سیل سنتوش سدا سم درشٹ رہن گہن میں پورا
साध-संगत पीतम उहाँ चल जाइये।
सील-सन्तोष सदा समदृष्टि, रहनि गहनि में पूरा।
تو ہار ہیرا ہرائل با کچڑے میں
آیو دن گونے کے ہو من ہوت ہلاس
आयौ दिन गौनेकै हो, मन होत हुलास।
तोर हीरा हिगइल बा किचडेमैं।
پریم نگر کا انت نہ پایا جیون آیا تیوں جاویگا
प्रम नगर का अन्त न पाया, ज्यों आया त्यों जावैगा।
تو صورت نین نہار، وہ انڈ میں سارا ہے
بید کہے سرگن کے آگے نرگن کا بسرام
बेद कहे सरगुनके आगे निरगुनका बिसराम।
तू सूगत नैन निहार वह अंडमें सारा है।
لیلا سکھ اننت وہا کی
लीला सुक्ख अन्न्त वहाँ की
چل ہنساوا دیس جہاں پیا بسے چت چور
کہیں کبیر سنو ہو سادھو امرت بچپن ہمار
चल हंसा वा देसा जहँ पिया बसै चितचारे।
कहैं कबीर सुनो हो साधो, अंमृत-बचन हमारा।
ست نام ہے سب تیں نیارا
ناہیں دھرمی ناہیں ادھرمی، ناہیں جتی نہ کامی ہو
सत्त् नाम है सबत न्यारा।
ना मैं धर्मी नाहीं अधर्मी, ना मैं जती न कामी हो।
پر نھم ایک جو آپے آپ
प्रथम एक जो आपै आप। निरकर निर्गुन निर्जाप
کہیں کبیر وچار کے
कहैं कबीर विचारिके, जाकै बर्न न गाँव।
مور پھکروا مانگ جائے
جھی جھی جنتر باجے
झी झी जंतर बाजै।
मोर फकिरवा मांगि जाय
نیہر سے جیرا پھاٹ رے
नैहर से जियरा फाट रे।
گگن گھٹا گھہرانی سادھو، گگن گھٹا گھہرانی
جیو محل میں سو پہئنواں، کہاں کرت انماد رے
जीव महलमें सिव पहुनवाँ, कहाँ करत उनमांद रे।
गगनघटा घहरानी साधो, गगनघटा घहरानी।
ااج دن کے میں جاؤں بلہاری
کوئی سنتا ہےگیانی راگ گگن میں، اواج ہوتی پانی
आज दिनके मैं जाऊ बलिहारी।
काई सुनता है ज्ञानी राग गगन में, अवाज होती पीनी।
میں کاسوں کہوں آپن پیہ کی بات رے
سنسکرت بھاشا پڑھ لینہا، گیانی لوک کہوری
چرکھا چلے سرت برہن کا
मैं कासो कहां आपन पियकी बात री।
चरखा चलै सुरत बिरहिन्का।
संसकिरत भषा पढि लीन्हा, ज्ञानी लोक कहो री।
اودھو، بیگم دیس ہمارا
کولن بھان چندر ناراگن، چھتر کی چھانہہ رہائی
कोटिन भनु-चन्द्र-ताारा-गन छत्रकी छाँह रहाई।
अवधू बेगम देसा हमारा।
سمجھ دیکھ من میت پیروا
سائیں کے سنگ ساسر آئی
सुमुभ देख मन मीत पियरवा
साँईके संग सासुर आई।
کوئی پریم کی پینگ جھلاؤ رے
نارد پیار سو انتر ناہیں
नारद, प्यार सो अन्तर नाहीं।
काई प्रेमकी पेंग भुलावै।
ہوں تو سب ہی کی کہوں، موگوں کوؤ نہ جان
امرت برسے ہیرا نپجے
हौं तो सबहीकी कहो, मौको कोउ न जान।
अंमृत बरिसै हीरा निपजै,
اودھو کدرت کی گت نیاری
अवधू, कुदरतिकी गति न्यारी।
الٹی جات کل دووبساری
بوجھو پنڈت، کرہو بچاری پرش اہے کہ ناری
उलटि जात-कुल दोऊ बिसारी। सुत्र सहज महि बुनत हमारी।
बूभहू पंडित, करहू बिचारी, पुरुष आहै की नारी।
اے مایا رگھناتھ کی بوری کھیلن چلی اہیرا ہو
رام تیری مایا دند مچاوے
राम तेरी माया दुद मचावै।
ई माया रधुनाथकी बौरी, खेलन चली अहेरा हो।
بانگڑ دیس لوون کا گھر ہے نہاں جن جائی داجھن کا ڈر ہے
बांगड देस लूवनका घर है, तहँ जिनि जाई दाभनका डर है।
رہنا نہیں دیس پرانا ہے
تمہہ گھر جاہ ہماری بہنا ، وش لاگیں تہارے نیناں
रहना नहि दस बिराना है।
तुम्ह घरि जाहु हमारी बहना, विष लागैं तिहारे नैना।।
مایا مہا ٹھگنی ہم جانی
मया महा ठगनी हम जानी।
پانرے بوجھ پیہو تم پانی
یا کریم بل حکمت تیری
पाँ बूभि पियहू तुम पानी।
या करीम बलि हिकमति तेरी
سادھو، پانڑے نپن کسائی
साधो, पाँडे निपुन कसाई।
پانڑے نہ کرسی باد ببادم
पाँडे न करसी बाद-बिवादं
من بنیاں بنج نہ چھوڑے
मन बनियाँ बनिज न छोड़ै।
میرا تیرا منواں کسیے اک ہوئی رے
मेरा-तेरा मनुआँ कैसे इक होई रं।
دلہن انگیا کاہے نہ دھووائی
سادھو دیکھو جگ بورانا
साधो, देखो जग बौराना।
दुलहिन अँगिया काहे न धेवाई।
میاں نمھ سو بلویاں بن نہیں آوے
मीयाँ तुम्हसौ बोल्यराँ बणि नहीं आवै।
ابناسی دولہا کب ملہو، بھکتن کے رچھپال
अबिनासाी दुलहा कब मिलिहौ, भक्तन के रछपाल।
تن من دھن باجی لاگی ہو
तन-मन-धन बाजी लागी हो।
گگن کی اوٹ نسانا ہے
کیسے دن کٹہیں جتن بتائے جئیو
कैसे दिन कटिहै जतन बताये जइयो,
गगनकी आट निसाना हैं
ان پرپت وست کو کہا تجے، پراپت کو تجے سو تیاگی ہے
سوچ سمجھ ابھمانی، چادر بھئی ہے پرانی
सोच -समुभ अभिमानी, चादर भीई है पुरानी।
अनप्रापत वस्तुको कहा जते, प्रापतको तजे सो त्यागी हैं
دئی جگدیس کہاں تے آیا،کہۂ کوتے بھر مایا
تو کو پیو ملیں گے ، گھونگھٹ کے پٹ کھول رے
दुई जगदीस कहाँते आया, कहु कवने भरमाया।
तोको पीव मिलैगे घूँघटके पट खोल रे।
من تم ناہک دند مچائے
मन, तुम नाहक दुंद मचाये।
یہ جگ اندھا میں کیہہ سمجھاوں
यह जग अंध मैं केहि समुभवों।
حواشی
حسن خویش از روئے خوباں آشکارا کردہ یی
بشنو ازنے چو حکایت می کند
ہم سے پہلے تھا عجب تیرے جہاں کا منظر
ماخازن خزانۂ دلدادر بودہ ایم
ہے رنگ لالہ و گل ونسریں جدا جدا
پرسید یکے منزل آن مہر گسیل
دل سے پوچھا یہ کہ عشق کی راہ
دلا منشیں دراین ویرانہ چوں چغد
टिप्पणियाँ
हुस्ने- खेश अज़ रूए-खूत्रां आशकारा कर दई
बिश्नौ अज़ नय चूँ हिकायत भी कुनद
हम से पहले थ अजब तेरे जहाँ का मंज़र
मा खजि़ने- ख़जानए-दिल दार बूदः एम
है रंग-लालः-ओ -गुल -ओ-नसरीं जुदा-जुदा
पुर्सीद यके मंजि़ले आँ मेह-गुसिल
दिल से पूछा यह मैं कि इश्क़ की राह
दिला मनशीं दर ईं वीरानः चूँ चुग्द
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