दीवाने का जालीनूस की तरफ़ तवज्जोह करना- दफ़्तर-ए-दोउम
रोचक तथ्य
ترجمہ: مرزا نظام شاہ لبیب
जालीनूस ने अपने शागिर्दों से कहा कि मुझको फ़ुलाँ दवा निकाल दो। एक शागिर्द ने उस से पूछा कि हज़रत ये दवा तो जुनून में दी जाती है। जान से दूर, भला ये दवा आप खाएँगे? कहा कि हाँ मेरी तरफ़ एक दीवाना मुतवज्जिह हुआ था। वो थोड़ी देर तक तो मुझे घूरता रहा फिर मुझे आँख मारी और उस के बा’द मेरी आस्तीन फाड़ डाली। अगर मुझमें कोई हम-जिंसी की बात ना पाता तो वो मेरी तरफ़ रुख़ ही क्यों करता। जब दो शख़्स आपस में मिलें तो यक़ीन करना चाहिए कि उनमें कोई मुश्तरक निस्बत मौजूद है।
कोई परिंद ब-ग़ैर अपने हम-जिंस ग़ोल के कब उड़ता है। इस की तमसील में एक शख़्स ने बयान किया कि मैंने एक बयाबान में कव्वे और कलंग को बड़े चाव से पास पास बैठे देखा मैं ये हाल देखकर इस फ़िक्र में डूब गया कि उनमें मुश्तरक तअ’ल्लुक़ क्या होगा। इसी हैरत में जब मैं उनके नज़दीक पहुंचा तो मैंने देखा कि वो दोनों लंगड़े थे।
- पुस्तक : हिकायात-ए-रूमी हिस्सा-1 (पृष्ठ 76)
- प्रकाशन : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द) (1945)
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