एक बड़ पेटे सूफ़ी को सूफ़ियों का बुरा-भला कहना- दफ़्तर-ए-दोउम
रोचक तथ्य
अनुवादः मिर्ज़ा निज़ाम शाह लबीब
एक सूफ़ी को तमाम सूफ़ी बुरा-भला कहते हुए शैख़ के पास आए और अ’र्ज़ की कि ऐ पेशवा तू हम में और इस में इन्साफ़ करो। पूछा कि आख़िर तुम्हारा इल्ज़ाम इस पर क्या है? उन्होंने कहा कि इस में तीन ख़स्लतें बहुत बुरी हैं। एक ये कि ये बातूनी इस क़दर है जैसे चलते हुए क़ाफ़िले का घंटा, दूसरे ये कि ये बीस आदमियों की ख़ुराक से ज़ियादा हड़प कर जाता है और जब सोने पे आता है तो असहाब-ए-कहफ़ की तरह सोए जाता है उठने का नाम नहीं लेता। ये तीन शिकायतें सूफ़ियों ने नून मिर्च लगा कर कीं। शैख़ ने फ़क़ीर से कहा कि हर हाल में मियाना-रवी इख़्तियार कर। हदीस में है बीच रास के काम नेक होते हैं।
जब सूफ़ी के जवाब की नौबत आई तो उसने अ’र्ज़ की कि अगरचे बीचों बीच का रास्ता इख़्तियार करना दानाई है लेकिन बीच भी एक निस्बत से क़रार पाता है चुनांचे नदी का पानी ऊंट की निस्बत से कम है लेकिन चूहे को वही दरिया के बराबर है। जिसका रातिब चार रोटियों का हो अगर वो दो या तीन खाए तो दरमियानी मिक़्दार है अगर वो पूरी चार रोटियाँ खा ले तो वो दरमियानी मिक़्दार नहीं रही और जिसकी भूक दस रोटियों से पूरी हो अगर वो छः रोटियाँ खाए तो समझो कि उसने दरमियानी मिक़्दार खाई। मेरी पच्चास रोटियों की ख़ुराक है और तुझसे छः रोटियाँ भी नहीं चलतीं।तू दस रकअ'त नमाज़ में थक जाता है और मैं पांच सौ रकअ'त पर भी नहीं थकता। इसी तरह तू अपनी कमज़ोरी पर मुझे ना जांच, जो चीज़ तेरे लिए रात है मेरे हक़ में वही सुब्ह का सवेरा होता है।
- पुस्तक : हिकायात-ए-रूमी हिस्सा-1 (पृष्ठ 98)
- प्रकाशन : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द) (1945)
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