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कहानी -28-राजनीति- गुलिस्तान-ए-सा’दी

सादी शीराज़ी

कहानी -28-राजनीति- गुलिस्तान-ए-सा’दी

सादी शीराज़ी

MORE BYसादी शीराज़ी

    एक फ़क़ीर जंगल के एक कोने में अकेला बैठा हुआ था। उधर से एक बादशाह गुज़रा। फ़क़ीर ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया क्योंकि फ़क़ीरों की दौलत उनका सन्तोष है। उन्हें बादशाह से क्या लेना-देना?

    बादशाह का रो’ब फ़क़ीर पर चला। यह देखकर उसे क्रोध गया। वह कहने लगा, ये गुदड़ी पहनने वाले जानवर हैं। इनमें लियाक़त है और इन्सानियत!

    बादशाह के साथ उसका वज़ीर भी था। वह फ़क़ीर के पास आकर बोला, 'ख़ुदा के बन्दे! दुनिया का मालिक बादशाह तेरे पास से गुज़रा पर तूने उसका अदब नहीं किया और कोई ख़िदमत की!'

    फ़क़ीर बोला, बादशाह से कह देना कि वह अदब और ख़िदमत की उम्मीद उससे रखे जिसे उससे कुछ इनआ’म पाने की ग़रज़ हो। दूसरी बात यह कि बादशाह रिआ’या की हिफ़ाज़त के लिए होता है। रिआ’या उसकी ख़िदमत और हुक्म बजा लाने के लिए नहीं होती।

    'बादशाह फ़क़ीर का चौकीदार है। उसकी दौलत और रो’ब के कारण तमाम लोग उसके ताबे’दार भले ही हों ।'

    'भेड़ चरवाहे के लिए नहीं होती। चरवाहा उसकी देखभाल के लिए होता है।'

    'यदि एक को अपनी इच्छा के अनुसार सब कुछ मिला हुआ है और दूसरे का दिल रंज और तकलीफ़ में ज़ख़्मी हो रहा है, तो थोड़े दिन ठहर जा। तू देखेगा कि ज़ालिम के सिर को मिट्टी खा गई।'

    'जब लिखी हुई तक़दीर सामने आती है तो बादशाहत और ग़ुलामी का भेद मिट जाता है। यदि कोई क़ब्रों को खोदकर देखे तो अमीर और फ़क़ीर में अन्तर करना संभव नहीं होगा।'

    बादशाह को फ़क़ीर की बात अच्छी लगी। उसने फ़क़ीर से कहा, मुझसे कुछ माँग?

    फ़क़ीर बोला, मैं तुझसे यही चाहता हूँ कि तू दुबारा आकर मुझे परेशान करे।

    बादशाह ने कहा, अच्छा, तो मुझे कुछ नसीहत कर।

    फ़क़ीर बोला, कुछ कर ले, क्योंकि अभी तो दौलत तेरे पास है। दौलत और मुल्क हाथों-हाथ चलते रहते हैं, सदैव किसी एक के पास नहीं रहते।

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