Sufinama

कहानी -3-राजनीति- गुलिस्तान-ए-सा’दी

सादी शीराज़ी

कहानी -3-राजनीति- गुलिस्तान-ए-सा’दी

सादी शीराज़ी

MORE BYसादी शीराज़ी

    मैंने एक शहज़ादे के बारे में सुना कि वह छोटे क़द का तथा कुरूप था, जबकि उसके और भाई लम्बे-तगड़े और सुन्दर थे। एक दिन बादशाह ने अपने उस कुरूप बेटे की ओर नफ़रत से देखा।

    शहज़ादा बड़ा चतुर था। तत्कालीन समझ गया कि पिता के मन में कैसा भाव उठा है। उसने बादशाह से कहा, छोटा क़द, मूर्ख से कहीं अच्छा होता है। क्या यह सच नहीं है कि जो चीज़ क़द में छोटी होती है, वह क़ीमत में बड़ी होती है? जैसे बकरी हलाल है और हाथी मुर्दार।

    'तूर पर्वत एक बहुत छोटा पर्वत है, परन्तु सब पर्वतों में श्रेष्ठ गिना जाता है।'

    क्या आपने यह बात नहीं सुनी, जो एक दुबले-पतले विद्वान ने एक मोटे-ताज़े मूर्ख से कही थी? उसने कहा था, 'अरबी घोड़ा चाहे दुबला ही क्यों हो, वह झुंड-के-झुंड गधों से कहीं अधिक उपयोगी होता है।

    शहज़ादे की सारगभित बातें सुनकर बादशाह प्रसन्न हुआ। दरबार के लोगों को भी उसकी बात पसन्द आई, परन्तु उसके भाइयों को बहुत बुरा लगा।

    'जब तक मनुष्य बोलता नहीं, उसके गुण और अवगुण प्रकट नहीं होते।'

    'यह मत समझो कि हर झाड़ी सूनी होगी, हो सकता है कि उसके भीतर कोई शेर सो रहा हो।'

    इस घटना के कुछ ही समय पश्चात् बादशाह को एक शक्तिशाली शत्रु का सामना करना पड़ा। जब दोनों ओर की सेनाएँ आमने-सामने आईं, तो सबसे पहला सिपाही, जिसने युद्ध-भूमि में घोड़ा दौड़ाया, वहीं छोटे क़द वाला शहज़ादा था। आते ही उसने शत्रु को ललकार कर कहा :

    आज के दिन तू भले ही मेरे सिर को खाक और ख़ून में लथपथ पड़ा देखे, लेकिन मेरी पीठ नहीं देख सकेगा।

    'जो सिपाही लड़ने जाता है, वह अपने ख़ून की बाज़ी लगाता है, लेकिन जो कायर लड़ाई के मैदान से भागता है, वह सारे लश्कर का ख़ून करवाता है।'

    यह कहकर वह शत्रु-सेना पर टूट पड़ा और देखते ही देखते उसने कई सैनिकों को मार गिराया। तब वह बादशाह के सामने आया और उसके पैरों तले की ज़मीन को चूम कर बोला :

    तूने मेरे छोटे क़द को देखकर मुझे कमज़ोर समझ लिया, क्या मोटापे को तू हुनर समझ बैठा है? लड़ाई के दिन तो पतली कमर वाला घोड़ा ही काम आता है, मोटा-ताज़ा बैल नहीं।

    कहते हैं कि शत्रु के पास बहुत बड़ी सेना थी, परन्तु इस तरफ़ थोड़े से ही सिपाही थे। उनमें से भी कुछ ऐसे थे, जो भागना चाहते थे। शहज़ादे ने उन्हें ललकार कर कहा, जवानों! देखते क्या हो? मैदान में कूद पड़ो। तुम मर्द हो।

    इतना सुनना था कि सिपाहियों को जोश गया। वे एकदम शत्रु सेना पर टूट पड़े और उसी दिन विजय प्राप्त कर ली। बादशाह ने शहज़ादे को बहुत प्यार किया। उसे गोद में बिठाकर उसके सिर और आँखों को चूमा और उसे गले लगा लिया। वह दिनों दिन उसकी पदोन्नति करता गया, यहाँ तक कि उसे अपना उत्तराधिकारी बना दिया। यह देखकर उसके भाइयों को उससे बहुत ईर्ष्या हुई। उन्होंने उसे मरवा डालने के लिए षड्यन्त्र रचा।

    एक दिन अवसर पाकर उन्होंने उसके भोजन में ज़हर मिला दिया। जैसे ही शहज़ादा भोजन करने बैठा, उसकी बहन ने, जिसे इस षड्यन्त्र का पता चल गया था, खिड़की बजा दी। शहज़ादा बड़ा चतुर था। फौरन ताड़ गया कि दाल में कुछ काला है। उसने भोजन से हाथ खींच लिया और कहा:

    'यह नहीं हो सकता कि बुद्धिमान मर जाए और मूर्ख उनकी जगह ले लें। अगर हुमा दुनिया से नापैद भी हो जाए तो भी कोई उल्लू के साए के नीचे आना पसन्द नहीं करेगा।'

    जब बादशाह को यह सूचना मिली, तो उसने दूसरे शहज़ादों को बुला कर उन्हें उचित दंड दिया। बा’द में उसने हर एक को कुछ कुछ जायदाद देकर दूर-दूर स्थानों पर बसा दिया, जिससे झगड़ा हमेशा के लिए ख़त्म हो जाए।

    'दस फ़क़ीर एक कमली में इकट्ठे सो सकते हैं लेकिन दो बादशाह एक मुल्क में नहीं रह सकते।'

    'ख़ुदा-परस्त यदि आधी रोटी स्वयं खाता है तो शेष आधी फ़क़ीरों के लिए छोड़ देता है। लेकिन एक बादशाह समूचे देश का स्वामी हो जाए तो भी वह दूसरे मुल्कों को हड़पने की सोचता रहता है।'

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

    GET YOUR PASS
    बोलिए