Sufinama

गुफ़्तार दर बाज़ जुस्तन-ए-दिल

निज़ामी गंजवी

गुफ़्तार दर बाज़ जुस्तन-ए-दिल

निज़ामी गंजवी

MORE BYनिज़ामी गंजवी

    हातिफ़-ए-ख़ल्वत ब-मन आवाज़ दाद

    वाम चुनाँ कुन कि तवाँ बाज़ दाद

    एकान्त में, भविष्य के पुकारने वाले ने मुझे आवाज़ लगाई कि इतना ही ऋण ले जितना चुका सके।

    आब दरीं आतिश-ए-पाकत चरास्त

    बाद जुनेबत कश-ए-ख़ाकत तुरास्त

    तेरी इस पवित्र अग्नि मे जल क्यों सम्मिलित है? और वायु तेरी मिट्टी को ऊपर क्यों उड़ाता है?

    ख़़ाक-ए-तब आरिन्द: ब-ताबूत बख़्श

    आतिश-ए-ताबिंद: ब-याक़ूत बख़्श

    इस ताप को बढ़ाने वाली मिट्टी को अपनी समाधि के प्रति अर्पण कर दे और चमकती हुई अग्नि अपनी आत्मा के हाथ में सौंप दे।

    ग़ाफ़िल अज़ींं बेश न-शायद नशिस्त

    बर दर-ए-दिल रेज़ गर आबीत हस्त

    इससे अधिक सुस्त बैठे रहना उचित नहीं है। यदि तुझ में किसी प्रकार सज धज शेष है तो हृदय-मन्दिर के द्वार पर चल।

    दर ख़़म-ए-ईं ख़म कि कबूदे ख़ुशस्त

    क़िस्सा-ए-दिल गो कि सुरूदे ख़ुशस्त

    इसी नीले रूप के मटके (आकाश) के अन्दर अपने हृदय के उस राग का वर्णन कर जो बहुत ही उत्तम कहा जाता है।

    दूर शौ अज़ राह ज़नान-ए-हवास

    राह-ए-तू दिल दानद दिल रा शनास

    वासनाओं से रहित हो जा। तेरा मार्ग यदि किसी को ज्ञात है तो दिल को। अतएव उसी से मित्रता कर।

    अर्श रवाने कि ज़े-तन रूस्त:अन्द

    शहपर-ए-जिबरील ब-दिल बस्तः-अन्द

    जो लोग अपने शरीरों को छोड़कर ऊपर उठ गये है—जिन्होंने ज्ञान प्राप्त कर लिया है—उन्होंने हृदय को स्वर्गीय दूत जिब्रील की बादशाही हासिल कर ली है।

    वाँ कि अनान अज़ दो-जहाँ ताफ़तस्त

    क़ुव्वत ज़े-दरयूज़:-ए-दिल याफ़तस्त

    आँख और कान इच्छाओं के कारण प्रदान किए गए हैं। इनका सम्बन्ध केवल स्थूल शरीर तथा संसार के वाह्य सौन्दर्य से है।

    दीद:-ओ-गोश अज़ ग़रज़ अफ़्ज़ूनी-अन्द

    कारगर-ए-परद: बेरूनी-अन्द

    तेरे कानों में गुलाब के पुष्प के समान रुई भरी हुई है और तेरे नेत्रों का नर्गिस तेरी बुद्धि का छाला है।

    पम्बा दर आगन्द: चू गुल गोश-ए-तू

    नरगिस-ए-चश्म आबल:-ए-होश-ए-तू

    तू उपवन में जाकर नर्गिस और गुलाब के पुष्पों पर क्यों मोहित हो रहा है? यह दोनों स्वयम् तेरे प्रेम में मतवाले हो रहे हैं।

    नर्गिस-ओ-गुल रा चे परस्ती ब-बाग़

    ज़े-तू हम-नर्गिस-ओ-हम-गुल ब-दाग़

    तेरे नेत्र भली और बुरी, दोनों प्रकार की वस्तुओं को देखते हैं। जब तक युवावस्था को चमक है उनमें भी शोभा है।

    दीद: कि आईन:-ए-हर-ना-कस अस्त

    आतिश-ए-ऊ आब-ए-जवानी बस अस्त

    इच्छा, जो कि बुद्धि को दलाल बनाए हुए है उस समय की प्रतीक्षा मे है, जब तू चालीस वर्षे का हो जावेगा।

    तब्अ' कि बा अक़्ल ब-दल्लालगीस्त

    मुन्तज़िर-ए-नक़्द-ए-चेहल सालगीस्त

    जिस समय तू चालीस वर्ष का होगा उस समय इच्छा की भी उछल-कूद समाप्त हो जाएगी। उसमें शान्ति तथा गम्भीरता जाएगी। परन्तु उस समय तक उसके मार्ग-व्यय का लेखा-जोखा बहुत बढ़ जाएगा। उसके कार्यों की सूची बहुत लम्बी हो जाएगी।

    ता ब-चेहल साल कि बालिग़ शवद

    ख़र्ज़-ए-सफ़रहाश म-बालिग़ शवद

    अब तुझे कोई सहायक मंत्र मिलना चाहिए। व्यर्थ की बातों से कोई लाभ नहीं है। चालीस वर्ष व्यतीत हो जाने की प्रतीक्षा कर।

    यार कनूँ बा-यदत अफ़्सूँ म-ख़्वाँ

    दर्स-ए-चेहल सालगी अकनूँ म-ख़्वाँ

    प्रयत्न करने के लिये हाथ फैला और हृदय के शोक को कम करने के लिये, अपने साथ समवेदना प्रगट करने वाले किसी अन्य हृदय को खोज निकाल।

    दस्त बर आवर ज़े-मियान-ए-चार:-जोई

    ईं ग़म-ए-दिल रा दिल-ए-ग़म ख़्वार:-जूई

    जब तेरे प्रति सहानुभूति प्रगट करने वाला कोई है, तो किसी प्रकार की चिन्ता कर। मित्र की उपस्थिति में दुख को अलग भगा दे।

    ग़म म-ख़ूर अलबत्ता कि ग़म-ख़्वार हस्त

    गर्दन-ए-ग़म ब-शिकन अगर यार हस्त

    जो हृदय दुख के भार से दबा हुआ है, उसके लिये मित्रों का होना बहुत ही उत्तम है।

    दो आदमियों के साथ कुछ समय के लिये मन-बहलाव होता है और उसी कुछ समय में सैकड़ों दुख दूर हो जाते हैं।

    बे-नफ़से रा कि ज़बून-ए-ग़मस्त

    यारी-ए-याराँ मददे मोहकम-अस्त

    जब पहला प्रभात अपनी उज्जवलता लेकर प्रकट होता है तब वह आकर तारों को डॉट बताता है।

    चूँ नफ़से गर्म शवद बा दो कस

    नीस्त शवद सद-ग़म अज़ाँ यक-नफ़स

    यदि यह दूसरा प्रभात सहायता दे तो पहले प्रभात को लज्जित होना पड़े।

    सुब्ह-ए-नख़़ुस्तीं चूँ नफ़स बर ज़नद

    सुब्ह-ए-दोम बाँग बर अख़्तर ज़नद

    तू ख़ुद अपने कार्य को पूर्ण करने में असमर्थ है। अतएव किसी ऐसे मित्र की खोज कर जो तेरे कार्य को पूर्णता तक पहुँचा सके।

    पेशतरीं सुब्ह ब-ख़्वारी रसद

    गर पसीं सुब्ह ब-यारी रसद

    सारा देश इतना हेच तथा तुच्छ नहीं है, परन्तु जब मैं ध्यान से देखता हूँ तो मित्र से बढ़ कर कोई अन्य ज्ञात नहीं होता।

    अज़ तू न-आयद ब-तूए हेच-कार

    यार तलब कुन कि बर आयद ज़े-यार

    सभी को एक मित्र की आवश्यकता होती है और विशेषकर ऐस मित्र को जो सहायता कर सके।

    गरचे हम: मुम्लिकते ख़्वार नीस्त

    यार तलब कुन कि बेह अज़ यार नीस्त

    तेरे दो-तीन मित्र हैं। तू उन्हें बहुत ही अच्छा समझता है। परन्तु वे तुझे किसी प्रकार की सहायता नहीं दे सकते।

    हस्त ज़े-यारी हम: रा ना-गुज़ीर

    ख़ास्सः ज़े-यारे कि बुवद दस्त-गीर

    अतएव तू हृदय के पल्ले को ख़ूब सँभाल कर थाम ले। यदि तू हृदय का सहारा पकड़ लेगा तो तेरी प्रतिष्ठा बढ़ जाएगी।

    ईं दो-सेह यारे कि तू दारी तरन्द

    ख़़ुश्क-तर अज़ हल्क़ः-ए-दर बर दरंद

    स्वर्ग के स्वामी ने सृष्टि की रचना की, और उन देशों को बनाया जहाँ मनुष्य रहते है, जिनके शरीर तथा प्राण प्रधान अंग हैं।

    दस्त दरआवेज़ ब-फ़ित्राक-ए-दिल

    आब-ए-तू बाशद कि शवी ख़ाक-ए-दिल

    अपनी कृपा से उसने शरीर और प्राणों को एक किया।

    चूँ मलिकुलअ'र्श जहाँ-आफ़रीद

    मुम्लिकत-ए-सूरत-ओ-जाँ आफ़रीद

    उस समय इन दोनों के संसर्ग से मन उत्पन्न हुआ। यह वही बालक था जो आगे चलकर विरोधी के रूप में पाया जाता है।

    दाद ब-तरतीब-ए-अदब रेज़िशी

    सूरत-ए-जाँ रा बहम आमेज़िशी

    मन वही वस्तु है जो शरीर तथा आत्मा का सार समझा जाता है। इसी के कारण मनुष्य की बादशाही भी है।

    ज़ीन दो हम-आग़ोश दिल आमद पदीद

    आँ ख़लफ़े कू ब-ख़िलाफ़त रसीद

    तुझ में उसी का प्रकाश है और शरीर तथा प्राण उसी के साथी हैं

    दिल कि बर ख़ुत्बः-ए-सुल्तानी अस्त

    अकदश-ए-रूहानी-ओ-जिस्मानी अस्त

    मन की आवाज़ जैसे ही मेरे मस्तिष्क में पहुँची, वैसे ही उसमें ज्ञान का प्रकाश हो गया।

    नूर-ए-अदीमत ज़े-सुहैल-ए-वै अस्त

    सूरत-ओ-जाँ हर-दो तुफै़ल-ए-वै अस्त

    अन्तरात्मा में जो पुकार रहा था, अब मैं उसी के ध्यान में मग्न हो गया।

    चूँ सुख़न-ए-दिल ब-दिमाग़म रसीद

    रौग़न-ए-मग़्ज़म ब-चिराग़म रसीद

    इस साहस के कारण मेरी मूक वाणी में वाक्-शक्ति गई, चित्त प्रसन्न हो गया और दुख दूर हो गये।

    गोश दरीं हल्क़:-ज़बाँ साख़्तम

    जान हदफ़ हातिफ़-ए-जाँ साख़्तम

    भारी तथा जलती हुई आँखों से मैंने आँसुओं के रूप में ठण्डे पानी को बहा दिया। कारण कि उसके कारण शरीर में भी तपन थी।

    चर्ब-ज़बाँ गश्तम अज़ाँ फ़रबही

    तब्अ' ज़े-शादी पुर अज़ ग़म तही

    अपने हाथों को भी मैंने बन्धन-मुक्त कर लिया और मुझमें इतना बल गया कि इन्द्रियाँ अब मेरे वश में गईं।

    रेख़्तम अज़ चश्म:-ए-चश्मआब-ए-सर्द

    का आतिश-ए-दिल आब-ए-मरा गर्म कर्द

    दो दिन के मार्ग को मैंने अपनी शक्ति के कारण केवल एक ही दौड़ में पूरा कर लिया और एक ही झपट में दिल के कपाटों तक पहुँच गया।

    दस्त बर आवुरदम अज़ाँ दस्त-बंद

    राहज़नाँ आजिज़-ओ-मन ज़ोर-मुँद

    मन की तरफ़ जाने के प्रयत्न में ही मैं अधमरा सा हो गया और आधी ही रात में मेरी अवस्था भी आधी रह गई।

    दर तक आँ राह दो मंज़िल शुदम

    ता ब-यके तक ब-दर-ए-दिल शुदम

    आत्मिक द्वार के सम्मुख पहुँच कर मेरा समस्त शरीर मुलायम हो गया। जो शरीर डन्डे के समान कड़ा था वही गेंद के समान बन गया।

    मन सू-ए-दिल रफ़्तम जाँ सू-ए-लब

    नीम:-ए-उम्रम शुदः ता नीम-शब

    मैं उस गेंद के प्रेम में मस्त हूँ और मेरा गुलूबंद मन की चादर का आँचल बना हुआ है।

    बर दर-ए-मक़्सूर:-ए-रूहानीयम

    गूए शुदः क़ामत-ए-चौगानियम

    मैं सिर को पैर और पैर को सिर बना कर गेंद के समान लुढ़कता हुआ आगे बढ़ा। कभी

    कभी डन्डे के समान सीधा भी खड़ा हो जाता था।

    गूए ब-दस्त आमदः चौगान-ए-मन

    दामन-ए-मन गश्त गरेबान-ए-मन

    इस समय मैं अपने आप में नहीं था। मेरी चेष्टाएँ भी एक प्रकार शिथिल तथा व्यर्थ हो गईं। यहाँ तक कि सौ मुझे एक दिखाई पड़ता था। और एक, सौ के रूप में।

    पाए ज़-सर साख़्त सर ज़-पा

    गूए सिफ़त गशतम-ओ-चौगाँ-नुमा

    अन्य यात्री मेरी अवस्था को समझ नहीं रहे थे और मैं एक नया यात्री था। कोई भी किसी प्रकार की सहायता नहीं देता था, इस कारण, इस यात्रा में मुझे कष्ट अधिक भोगना पड़ा।

    कार-ए-मन अज़ दस्त-ए-मन अज़ ख़ुद शुदः

    सद ज़े-यके दीद: यके सद शुदः

    मुझ में, दरवाज़े के भीतर घुसने का साहस नहीं था। पैर भी अन्दर ले जाने के लिये आगे नहीं बढ़ते थे। इसके अतिरिक्त पीछे फिर जाने का ध्यान ही नहीं था।

    हम-सफ़राँ जाहिल मन नव-सफ़र

    ग़ुर्बतम अज़ बे-कसीयम तल्ख़-तर

    उस संकीर्ण स्थान पर मेरी ज़बान रुक गई। उस समय प्रेम मेरा पथ-प्रदर्शक बना।

    रह ना कज़ आँ दर ब-तवानम गुज़श्त

    पा-ए-दरूँ नय सर-ए-बाज़गश्त

    उसने उत्साहित करते हुए कहा कि द्वार पर आ। मैं इसका भेद जानता हूँ। मैं जहाँ तक हो सकेगा तेरी सहायता करूँगा।

    चूँकि दराँ नक़ब ज़बानम गिरफ़्त

    इश्क़ नक़ीबान: अ'नानम गिरफ़्त

    मैंने दरवाज़े की साँकल बजाई। मन ने पूछा कि इस समय कौन आया है। मैंने उत्तर दिया कि, आज्ञा दीजिये तो एक मनुष्य अन्दर आए।

    बर दर-ए-आँ महरम-ए-ईं दर मनम

    सर ज़े-बरा-ए-तू ज़े-तन बर कनम

    ईश्वरीय सहायता ने नेत्रों के आगे से पर्दा हटा दिया। शरीर को छोड़ कर आत्मा पृथक् हो गई।

    हल्क़ः ज़दम गुफ़्त दरीं वक़्त कीस्त

    गुफ़्तम अगर बार देही आदमीस्त

    उस राजभवन के, सब से भीतरी भाग से, जिसमे पहुँचना अत्यन्त कठिन था, एक आवाज़ आई कि निज़ामी यदि भीतर आना चाहता है तो चला आ।

    पेश-रवाँ पर्द: बर-अन्दाख़्तन्द

    पर्द:-ए-तर्कीब दर अन्दाख़़्तन्द

    अब मैं उस दरबार के रहस्य को भली भाँति समझ गया और मन ने कहा यदि और आगे बढ़ने की इच्छा रखते हो तो चले आओ। यह सुन कर मैं और भी भीतर बढ़ गया।

    लाजरम अज़ ख़ास तरीन-ए-सराए

    बाँग दर आमद कि 'निज़ामी' दराए

    अब मैंने अपने मन के अन्दर जो देखा, वह बहुत ही विलक्षण वस्तु थी। उस अकथनीय शोभा का केवल अनुभव किया जा सकता है।

    ख़ास-तरीं महरम-ए-आँ दर शुदम

    गुफ़्त दरूँ आए दरूँ तर शुदम

    मन रूपी उसी मन्दिर में सात मार्ग थे और सातों सिलसिले भी वही थे।

    बारगहे याफ़्तम अफ़रोख़्तः

    चश्म-ए-बद अज़ दीदन-ए-ऊ दोख़़्त:

    उस देश को आकाश से भी बढ़ कर पाया। पृथ्वी का समस्त वैभव वहाँ प्रस्तुत था।

    हफ़्त ख़लीٖफ़ः यके ख़ान: दर

    हफ़्त हिकायत ब-यक अफ़्सानः दर

    उस अधजली स्थान में यानी सीने के उस भाग में मैंने मन को बैठा हुआ पाया।

    मुल्क अज़ाँ बेश कि अफ़्लाक रास्त

    दौलत-ए-आँ ख़ाक कि आँ ख़ाक रास्त

    उसके पास ही फेफड़ा, एक लाल सवार के रूप में बड़ी ही नर्मी के साथ सिर झुकाए हुए खड़ा था।

    दर नफ़स आबाद दम-ए-नीम-सोज़

    सद्र-नशीं गश्त: शह-ए-नीम-रोज़

    पित्त भी वहीं था और उसके नीचे ही तलछट पीने वाली तिल्ली भी उपस्थित थी।

    सुर्ख़ सवारी ब-अदब पेश-ए-ऊ

    लाल क़बा-ए-ज़फ़र अन्देश-ए-ऊ

    बुद्धि अपने स्थूल शरीर पर चाँदी का कवच धारण किये हुए आक्रमण के सामान से लैस वहीं खड़ी हुई थी।

    तल्ख़़-जवाने यज़की दर शिकार

    ज़ेर-तर अज़ वै सीही दर्द-ख़्वार

    यह सब पतंगो के समान थे और मन दीपक के समान। यह सब उसके आज्ञाकारी ज्ञात होते थे।

    क़स्द-ए-कमीन कर्द: कमंद अफ़्गने

    सीम ज़िरह साख़्ता रूए तने

    मैं बड़े ही धैर्य के साथ मन का अतिथि हुआ और उस सम्राट् के सम्मुख अपने प्राणों की भेट ले जाकर रखी।

    ईं हम: परवान:-ओ-दिल शम्अ' बूद

    जुमल: परागंदा दिल जम्अ' बूद

    जब मन की सेना का झंडा मुझे मिल गया, उस समय मैंने सम्पूर्ण संसार से अपना सम्बन्ध छुड़ा लिया।

    मन ब-क़नाअत शुदः मेहमान-ए-दिल

    जाँ ब-नवा दादः ब-सुल्तान-ए-दिल

    मन ने ज़बान से कहा कि मूक इच्छुक पक्षी! उस घोंसले का परित्याग कर दे। उस सांसारिक घोंसले से कोई सम्बन्ध रख।

    चूँ अलम-ए-लशकर-ए-दिल याफ़्तम

    रू-ए-ख़ुद अज़ आलमियाँ ताफ़्तम

    मैं अपने लिये ख्याति नहीं चाहता और तेरी इन हाल ही में लिखी हुई कविताओं में भी कुछ आनन्द नहीं है।

    दिल ब-ज़बां गुफ़्त कि बे-ज़बाँ

    मुर्ग़-ए-तलब बगुज़र अज़ींं आशियाँ

    जिनको अंतरात्मा का आनन्द प्राप्त नहीं है, तू उन्हें नीरस बना देता है और रुपये तथा मोतियों के ढेर के ढेर उन्हें दे डालता है।

    आतिश-ए-मन महरम-ए-ईं दूद नीस्त

    ईं जिगर-ए-ताज़: नमक सूद नीस्त

    मेरी छाया सरों के वृक्ष से भी कहीं बड़ी तथा ऊँची है और मेरा पद उस पद से भी कहीं बढ़कर है।

    बे-नमकाँ रा तू जिगर मी-देही

    गंज ज़े-दुर्र ज़र ज़े-गौहर मी-देही

    मै एक कोष अवश्य हूँ, परन्तु वह कोष नहीं जो क़ारूँ की थैली में बन्द है।

    सायः-अम अज़ सर्व तवानातर अस्त

    पायम अज़ाँ पाय: ब-बाला-तर अस्त

    मैं तेरे साथ हूँ, तुझ में व्याप्त हूँ, परन्तु तुझ से बाहर नहीं हूँ। मन की इन सारपूर्ण बातों को सुन कर मेरी ज़बान ने लज्जा का जामा पहन लिया।

    गंजम-ओ-दुर्र कीस:-ए-क़ारूँ नयम

    बा तू नयम ज़े-तू बेरून नयम

    और मैंने अपना सिर झुका लिया। मैंने अपने कानों को बड़े अदब के साथ मन की इन बातों को सुनने के लिये उधर ही लगा दिया।

    मुर्ग़-ए-लबम बा नफ़स-ए-गर्म-ए-ऊ

    पर्र-ए-ज़बां रेख़्तः अज़ शर्म-ए-ऊ

    मैंने समझ लिया कि प्रार्थना तथा भक्ति बहुत ही आवश्यक वस्तुएँ है। अतएव अपने स्वामी से इसके लिये आज्ञा ले ली।

    साख़्तम अज़ शर्म-ए-सर अफ़्गन्दगी

    गोश-ए-अदब हल्क़ः कश-ए-बंदगी

    मन ने मेरी प्रतिज्ञा में सहायता पहुँचाई और निज़ामी के नाम को आकाश तक पहुँचा दिया।

    चूँ कि न-दीदम ज़े-रियाज़त-गुज़ीर

    गश्तम अज़ आँ ख़्वाजः रियाज़त-पज़ीर

    ख़ाज:-ए-दिल अह्द-ए-मरा ताज़: कर्द

    नाम-ए-'निज़ामी' फ़लक आवाज़: कर्द

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

    GET YOUR PASS
    बोलिए