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दर गह-ए-ख़ल्क़ हम: ज़र्क़-ओ-फ़रेबस्त-ओ-हवस

हकीम सनाई

दर गह-ए-ख़ल्क़ हम: ज़र्क़-ओ-फ़रेबस्त-ओ-हवस

हकीम सनाई

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    दर गह-ए-ख़ल्क़ हम: ज़र्क़-ओ-फ़रेबस्त-ओ-हवस

    कार दरगाह-ए-ख़़ुदावंद-ए-जहाँ दारद-ओ-बस

    यह संसार विभिन्न जीवधारियों का निवास स्थान, छल-कपट तथा विविध वासनाओं का क्रीड़ा-स्थल है। किसी काम का नहीं है। यदि किसी काम की कोई वस्तु है तो वह केवल ईश्वरीय लोक। एक धार्मिक मनुष्य बन जा और ईश्वरीय प्रेम में लवलीन हो जा। अन्यथा जितनी भी वस्तुएँ है सब तुझे दुखद प्रतीत होंगी।

    हर कि नाम-ए-कसी याफ़्त अज़ आँ दरगह याफ़्त

    बिरादर कस बाश-ओ-मयंदेश अज़ कस

    यदि किसी को किसी प्रकार का यश प्राप्त हुआ तो वह केवल उसी ईश्वर के सम्बन्ध से। अतएव हे मित्र! तू उसी की सेवा में संलग्न रह और किसी से भय मत कर।

    बंद;-ए-ख़ास-ए-मलिक बाश कि बा दाग़-ए-मलिक

    रोज़हा ऐमनी अज़ शहन:-ओ-शबहा ज़े-असस

    उस बादशाह का तू अनन्य भक्त बन जा। उसकी सेवा के अतिरिक्त किसी बात की चिन्ता मत कर। उसकी सेवा, उसके सेवक का पद, तुझे सदैव सांसारिक जालों से बचाए रहेगा।

    गरचे बा-ताअ'ते अज़ हज़रत-ए-ऊ ला-तामन

    वर चे बा-मा'सियते अज़ दर-ए-ऊ ला-तैअस

    तू भक्ति करता है, परन्तु इस पर भी ईश्वर की तरफ़ से निश्चिन्त मत होना और अपकर्म करके भी उसकी दयालुता के प्रति निराश होना।

    वर चे ख़ूबी ब-सू-ए-ज़िश्त ब-ख़्वारी म-निगर

    कि-अंदरीं मुल्क चूँ ताऊस ब-कारस्त मगस

    प्रयत्न करने से तू देवत्व प्राप्त कर सकता है। शहतूत के वृक्ष की पत्तियाँ धीरे-धीरे अतलस के रूप में परिणत हो जाती हैं।

    तू फ़रिश्तः शवी अर जेहद कुनी अज़ पय-ए-आँ कि

    बर्ग-ए-तू तुस्त कि गश्तस्त ब-तदरीज अतलस

    तू सदैव विषय-वासनाओं की पूर्ति में लवलीन रहता है और आँख मूँद कर खाने और सोने में आनन्द अनुभव करता है। इसी कारण तेरी इन्द्रियाँ इतनी बलवती हो गई हैं।

    आ'शिक़े पुर-ख़ोर पुर-शहवत-ओ-पुर-ख़्वाब चू खुर्स

    नफ़्स गोयाए तू ज़े-आनस्त ब-हिकमत अख़्रस

    भगवान और पैग़ंबर के कहने पर चल, क़ुरआन और हदीसों को पढ़, उनके सिवा सब बेकार कहानियाँ हैं।

    चंग दर गुफ़्त:-ए-यज़्दान-ओ-पयम्बर ज़न-ओ-रव

    कि-आँ-चे क़ुरआन-ओ-ख़बर नीस्त फ़सानस्त-ओ-हवस

    अपनी खाल उतार दे जिससे तेरा रक्त शुद्ध हो जावे। अपने आपको पवित्र करने के लिये वाह्य लालसाओं का त्याग कर दे। तू इस बात को स्वयम् समझता है कि छिलका उतार देने से मसूर का रंग साफ़ निकल आता है।

    पोस्त ब-गुज़ार कि ता साफ़ शवद दीन-ए-तू हाँ

    कि चोबे पोस्त शवद साफ़ शवद जौज़-ओ-अ'दस

    आज़ ब-गुज़ार कि बा आज़ ब-हिकमत न-रसी

    वर बयाँ बायदत अज़ हाल-ए-'सनाई' बर रस

    स्रोत :
    • पुस्तक : दीवान-ए-सनाई (पृष्ठ 183)
    • रचनाकार : हकीम सनाई
    • प्रकाशन : मर्कज़-ए-पख़्श:मोअस्सःमोअस्सः-ए-इंतिशारात-ए-निगाह, ईरान (2002)
    • संस्करण : First

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