Sufinama

ख़ुसरव व शीरीं

निज़ामी गंजवी

ख़ुसरव व शीरीं

निज़ामी गंजवी

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    ज़मान: ख़ुद जुज़ ईं कारे न-दानद

    कि अन्दोहे देहद जाने सितानद

    चूँ कार उफ़्तादः गर्दद बे-नवाए

    दरश दर गीरद अज़ हर-सू बलाए

    ब-हर शाख़-ए-गुले कू दर ज़नद चंग

    ब-जा-ए-गुल ब-बारद बर सरश संग

    चुनाँ अज़ ख़ुश-दिली बे-बहर गर्दद

    कि दर कामश तबर्ज़द ज़ेहन गर्दद

    चुनाँ तंग आयद अज़ शोरीदन-ए-बख़्त

    कि बर बायद गिरफ़्तश ज़ीं जहाँ रख़्त

    अ'नान-ए-उम्र अज़ींं साँ दर नशेब अस्त

    जवानी रा चुनीं पा दर रकेब अस्त

    कसे याबद ज़े-दौराँ रुस्तगारी

    कि बर दारद इमारत ज़ीं अमारी

    मसीहा-वार दर दैरे नशीनद

    कि बा चंदें चराग़श कस न-बीनद

    जहाँ देव अस्त वक़्त-ए-देव बस्तन

    ब-ख़ुश-ख़ूई तवाँ अज़ देव रस्तन

    मकुन दोज़ख़ ब-ख़ुद बर ख़ू-ए-बद रा

    बहिश्त-ए-दीगराँ कुन ख़ू-ए-ख़ुद रा

    चु दारद ख़ू-ए-तू मर्दुम सरिश्ती

    हम ईं-जा-ओ-हम आँ-जा दर बहिश्ती

    म-ख़ुस्ब दीद: चंदें ग़ाफ़िल-ओ-मस्त

    चू हुशयाराँ बर आवर ज़ीं जहाँ दस्त

    कि चंदाँ ख़ुफ़्ता ख़्वाही दर दिल-ए-ख़ाक

    कि फ़रमोशत कुनद दौरान-ए-अफ़लाक

    बे-दीं पंजाह साल: हुक़्क़ा-बाज़ी

    बे-दीं यक मोहरः गिल ता चंद नाज़ी

    ज़े-पंज: साल अगर पंज: हज़ार अस्त

    सरश बर नेह कि हम ना-पाएदार अस्त

    न-शायद आहनी-तर बूदन अज़ संग

    ब-बीं तारीक चूँ रेज़द ब-फ़र्संग

    ज़मीं नतएऐस्त रेगश चूँ न-रेज़द

    कि बर नतई चुनीं जुज़ ख़ूँ न-ख़ेज़द

    बसा ख़ूना कि शुद बर ख़ाक-ए-ईं दश्त

    सियह-बख़्ते नरस्त अज़ ज़ेर-ए-ईं तश्त

    हर आँ ज़र्रः कि आरद तुंद बादे

    फ़रीदूने बुवद या कैक़ुबादे

    कफ़-ए-गिल दर हम: रू-ए-ज़मीं नीस्त

    कि बर वै ख़ून-ए-चंदीं आदमी नीस्त

    कि मी-दानद कि ईं दैर-ए-कोहन-साल

    चे मुद्दत दारद चूनस्त अहवाल

    न-मानद कस कि बीनद दौर-ए-ऊ रा

    बदाँ ता दर न-याबद ग़ौर-ए-ऊ रा

    बहर सद-साल दौरे गीरद अज़ सर

    चे आँ दौराँ शुद आयद दौर-ए-दीगर

    ब-रोज़-ए-चन्द बा दौराँ दवीदन

    चे शायद दीदन चे तवाँ शुनीदन

    ज़े-जौर-ओ-अ'द्ल दर हर दौर साज़ेस्त

    दरू दानिंद: रा पोशीदा राज़ेस्त

    नमी-ख़्वाही कि बीनी जौर-बर-जौर

    न-यायद गुफ़्त राज़-ए-दौर बा दौर

    शब-ओ-रोज़ अबलक़े शुद तुंद ज़ीनहार

    ब-ईं अबलक़ अ'नान-ए-ख़्वेश म-सिपार

    ब-सद फ़न गर नुमाई ज़ू-फ़ुनूननी

    न-शायद बुर्द ईं अबलक़ हरूनी

    फ़लक चंदाँ कि देग-ए-ख़ाक रा पुख़्त

    न-रफ़्त अज़ ख़ू-ए-ऊ ख़ामी चूँ कीमुख़्त

    क़िमारिस्तान-ए-चर्ख़े-ए-नीम ख़ाय:

    बसे पुर मायः रा बुर्दस्त मायः

    उरूस-ए-ख़ाक अगर बद्र-ए-मुनीर अस्त

    ब-दस्त-ए-बाद कुन अमरश कि पीर अस्त

    मगर ख़सफ़े कि ख़्वाहद बूदन अज़ याद

    तलाक़-ए-अम्र ख़्वाहद ख़ाक रा दाद

    अगर आँ बाद आयद गर नायद इमरोज़

    तू बर बाद-ए-चुनीं मशअ'ल म-यफ़रोज़

    दरीं यक मुश्त-ए-ख़ाक ख़ाक दर मुश्त

    गर अफ़रोज़ी चराग़ अज़ दह अंगुश्त

    न-शुद मुमकिन कि ईं ख़ाक-ए-ख़तरनाक

    ब-अंगुश्त-ए-बुरीद: बर कनद ख़ाक

    चू यूसुफ़ ज़ीं तुरंज अर सर ब-ताबी

    चु नारंज अज़ ज़ुलेख़ा ज़ख़्म याबी

    सहर-गः मस्त शौ संगे बरन्दाज़

    ज़े-नारंज-ओ-तूरंज ईं ख़्वाँ ब-परदाज़

    बरूँ अफ़्गन बनेह ज़ी दार-ए-नोह-दर

    मगर कैमन शवी ज़ीं मार-ए-नोह सर

    नफ़स कू ख़्वाजः ताश़-ए-ज़िन्दगानी अस्त

    ज़े-मा परवर्द:-ए-बाद-ए-ख़ज़ानीस्त

    अगर यक-दम ज़नी बे-इश्क़ मुर्दस्त

    कि बर मा यक-ब-यक दमहा शुमुर्दस्त

    ब-बायद इश्क़ रा फ़रहाद बूदन

    पस आँ गाहे ब-मुर्दन शाद बूदन

    मुहंदिस दस्त:-ए-पौलाद तेश:

    ज़े-चोब-ए-नार तर कर्दी हमेश:

    ज़े-बहर-ए-आँ कि बाशद दस्तगीरश

    ब-दस्त अंदर बुवद फ़रमाँ पज़ीरश

    चू ब-शुनीद ईं सुख़नहा-ए-जिगर-ताब

    फ़राज़-ए-कोह कर्द आँ तेशः पुर-ताब

    सिनान दर संग रफ़्त चोब दर ख़ाक

    चुनी गोयन्द ख़ाके बूद नमनाक

    अज़ाँ दस्तः बर आमद शोश:۔ए-नार

    दरख़़्ते गश्त-ओ-बार-आवुर्द बिसयार

    अज़ाँ शोशः कनूँ गर नार याबी

    दवा-ए-दर्द-ए-हर-बीमार याबी

    'निज़ामी' गर न-दीद आँ नार बुन रा

    ब-दफ़्तर दर चुनीं ख़्वांद ईं सुख़न रा

    समय एक विचित्र वस्तु है। उसे दूसरों को नष्ट करने में आनन्द आता है।

    जब कोई विपत्तियों का मारा असहाय हो जाता है, तब उसके चारों तरफ़ अन्धकार ही अन्धकार छा जाता है।

    यदि किसी पुष्पकी डाल को हिलाता है तो पुष्प गिरकर उसके सिर पर पत्थर गिरते हैं।

    ख़ुशी से वह इतना महरूम हो जाता है कि उसके लिए तिर्याक़ भी ज़हर हो जाता है।

    उसकी अवस्था इतनी हीन हो जाती है कि वह इस संसार को छोड़ देने पर उतारू हो जाता है।

    अवस्था ढलती जा रही है और युवावस्था भी किनारा करने के लिये उत्सुक हो रही है।

    काल के चक्कर में वही मनुष्य नहीं पड़ता है जो इस स्थान को प्यार नहीं करता, यहाँ अपना घर नहीं बनाता।

    ई’सा के समान ऐसे मंडप में बैठा रहता है जहाँ सहस्रों दीपकों के प्रकाश से भी वह दिखलाई नहीं पड़ता है।

    संसार एक प्रेत के समान है और अच्छे स्वभाव तथा गुणों के द्वारा ही उससे छुटकारा मिल सकता है।

    तू बुरा स्वभाव छोड़, अपने लिये नर्क बना। अपने स्वभाव को ऐसा बना कि दूसरे लोग भी तुझे स्नेह की दृष्टि से देखें

    ऐसा बन कि और तुझसे दूर भागने का प्रयत्न करें। यदि तेरा स्वभाव मनुष्यता से परिपूर्ण होगा तो तू यहाँ भी स्वर्ग में रहेगा और वहाँ भी।

    हे नयन! इतने मतवाले मत बनो। सतर्कता से काम लो और निद्रा को दूर करो।

    समाधि में सोने के लिये इतना अवकाश मिलेगा कि सांसारिक विपत्तियाँ भी तुझे भूल जाएंगी

    अतएव इन प्रलोभनों पर इस समय आसक्ति मत दिखला। तूने पचास वर्ष तमाशा किया और वह भी केवल एक गोले से (मुहरे से)। अब कब तक इसी खेल में व्यस्त रहेगा?

    यदि पचास हज़ार वर्ष भी तुझे मिलें तो उन्हें अस्वीकार कर दे। उनमें किसी प्रकार का स्वाद नहीं है।

    पत्थर सबसे कठोर वस्तु है, परन्तु वह भी रेत के रूप में कोसों तक उड़ता है।

    पृथ्वी एक फ़र्श है। उसका रंग क्यों नहीं उड़ता? इसलिये कि रक्त के अतिरिक्त उस पर कोई दूसरा रंग ही नहीं चढ़ता।

    यहाँ पर बहुत से लोगों का रक्त बहा है, और कोई भी अब तक साफ़ बच कर नहीं निकल सका है। संसार में सभी फँस जाते है।

    आँधी चलती है और कणों को उड़ा कर लाती है। वह कण फ़रीदूं या कैकुबाद की राख के बने हुए होते हैं।

    समस्त पृथ्वी में केवल एक हथेली भर गीली मिट्टी है और वह इस कारण कि वहाँ पर मा’लूम कितने मनुष्यों का रक्त पड़ा हुआ है।

    कौन कह सकता है कि यह प्राचीन गृह कितने वर्षों पहले बना था? उसके विगत इतिहास का किसे पता है?

    कौन उसको देखने के लिये शेष रहेगा? अतएव उसका रहस्य समझने के लिये ध्यान की आवश्यकता है।

    प्रत्येक सौ वर्ष के उपरान्त नया दौर शुरू’ होता है और उन सौ वर्षों के उपरान्त दूसरा।

    कुछ दिनों में अथवा दो एक दौर देखने में क्या समझ में सकता है?

    प्रत्येक दौर में न्याय तथा अत्याचार दोनों ही होते है और एक विद्वान मनुष्य के लिये प्रत्येक दौर में कुछ कुछ रहस्य गुप्त रहता है।

    तुमको अत्याचार पर अत्याचार देखना नहीं भाता और एक दौर का रहस्य दूसरे दौर से प्रकट नहीं किया जा सकता।

    रात और दिन एक शीघ्रगामी कोतल घोड़े के समान है। इस घोड़े के सुपुर्द अपनी बाग मत कर देना।

    यदि तुम सैक्ड़ों विद्याओं में निपुण हो जाओ, तब भी इस कोतल घोड़े की शरारतों को दूर करने में समर्थ हो सकोगे।

    आकाश ने मिट्टी की हांडी को बहुत ही पकाया परन्तु इस पर भी उसका कच्चापन दूर नहीं हुआ।

    आकाश का जुवा-ख़ाना बहुत से धनवानों का धन छीन कर ले गया है।

    संसार प्रलोभनों से परिपूर्ण है और यद्यपि एक चन्द्रमुखी रमणी के समान है, परन्तु वह बूढ़ी है और उसमें कोई सार नहीं है।

    ख़ुदा को अगर याद रखना चाहता है तो दुनिया को त्याग देने में ही भलाई है।

    हवा की तरफ़ से जो न्याय होगा वह संसार से बिलकुल ही पृथक कर देगा उसकी धूल को सदैव के लिये झाड़कर फेंक देगा।

    यदि तू अपनी दस उँगलियों से भी इस दीपक को जलाने का प्रयत्न करेगा तब भी यह मिट्टी किसी प्रकार से तेरी सहायता करेगी।

    यह मुम्किन नहीं कि इस संसार में कटी उँगलियों वाला मिट्टी खोद सके।

    यदि यूसुफ़ के समान तू इस नीबू से पृथक हो जायगा तो ज़ुलेख़ा की नारंगी के समान तुझ में भी घाव हो जाएंगे।

    प्रभात होते ही मतवाला बन जा और एक ढेला फेंक कर मार तथा नारंगी और नीबू से यह भोजनालय भर दे।

    इस शरीर रूपी गृह से जिसमें नौ इन्द्रियों के रूप में नौ द्वार है अपना सब सामान बाहर निकाल ले चल। देखना, इस नौ फ़न वाले सर्प की तरफ़ से सतर्क रहना।

    वह स्वाँस, जिससे हमारा जीवन क़ायम है विनाश-रूपी वायु की उत्पन्न की हुई है।

    प्रेम-विहीन एक भी साँस निकालना व्यर्थ है। कारण कि हमारे जीवन को साँसें गिनती की हैं।

    प्रणय के लिये फ़रहाद का होना आवश्यक है और उसी अवस्था में मृत्य के समय हर्ष होगा।

    फ़रहाद” सदैव फ़ौलाद के बसूले का बेट अनार की लकड़ी काट कर बनाया करता था,

    ताकि वह उसके हाथ से फिसल जावे और हाथ ही में ठीक ठीक बना रहे।

    जब फ़रहाद ने हृदय को बेधने वाली बातें सुनी तो पर्वत की चोटी पर से उस बसूले को फेंक मारा।

    लोग कहते हैं कि वहाँ पर कुछ गीली मिट्टी थी। बसूले का फल पत्थर में घुस गया और दस्ता मिट्टी में।

    उसी दस्ते की लकड़ी, में कल्ले फूटे और धीरे धीरे एक बड़ा भारी वृक्ष उत्पन्न हो गया और उसमें अनार के सहस्रों फल उत्पन्न हुए।

    यदि उस अनार का तुझे एक भी फल मिल जावे तो सभी रोग दूर हो सकते हैं।

    निज़ामी ने उस अनार के वृक्ष को नहीं देखा है, परन्तु पुस्तकों में उस कहानी को पढ़ा है।

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