Sufinama

दाम-हा गुस्तर्द ईं ज़ुल्फ़-ए-परेशान-ए-शुमा

शाह अकबर दानापूरी

दाम-हा गुस्तर्द ईं ज़ुल्फ़-ए-परेशान-ए-शुमा

शाह अकबर दानापूरी

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    दाम-हा गुस्तर्द ईं ज़ुल्फ़-ए-परेशान-ए-शुमा

    मुर्ग़-ए-दिल शुद सैद जानम ब-क़ुर्बान-ए-शुमा

    तुम्हारी इस ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ ने जाल बिछा दिए

    मेरी जान मेरे दिल का परिंदा तुम्हारा शिकार हो गया

    हस्त इ'रफ़ान-ए-ख़ुदम बिल्लाह इ'रफ़ान-ए-शुमा

    शुद यके ईं जान-ए-मन वल्लाह बा-जान-ए-शुमा

    ख़ुदा की क़सम इ’र्फ़ान-ए-ज़ात तुम्हारा इ’र्फ़ान है

    ख़ुदा की क़सम मेरी ये जान तुम्हारी जान हो गई

    मी-रवद अज़ दस्त-ए-मन दिल चीस्त फ़रमान-ए-शुमा

    मी-कशद सू-ए-ख़ुदश ज़ुल्फ़-ए-परेशान-ए-शुमा

    मेरा ये दिल मेरे हाथ से चला गया अब तुम्हारा क्या हुक्म है?

    तुम्हारी ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ मुझे अपनी तरफ़ खींच रही है

    आँ चुनाँ मन सोख़्तम अज़ ग़म कि दूदे बर न-ख़ासत

    आतिश पिनहानस्त दर दिल दर्द-ए-पिंहान-ए-शुमा

    मैं उस ग़म में इस तरह जला कि धुआँ भी नहीं उठा

    मेरे दिल में तुम्हारा दर्द और तुम्हारी आग पिनहाँ है

    ख़िर्मन-ए-सब्र-ओ-शकेबाई-ए-मा रा पाक सोख़्त

    आतिशे ज़द दर दिलम रू-ए-दरख़्शान-ए-शुमा

    हमारे सब्र-ओ-शकेबाई के ख़िर्मन को पूरी तरह जला डाला

    तुम्हारे चमकते चेहरा ने मेरे दिल में एक आग रौशन कर दी

    हस्त अज़ उ'म्र-ए-ख़िज़्र तूल-ए-शब-ए-हिज्रम दराज़

    सायः अफ़्गंद: बर ज़ुल्फ़-ए-परेशान-ए-शुमा

    उ’म्र-ए-ख़िज़्र से ज़्यादा मेरी जुदाई की रात लंबी है

    तुम्हारी ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ ने उस पर साया डाल रखा है

    बर ज़मीं आवर्द तेग़त बार-ए-सर अज़ दोश-ए-मन

    बाज़ मन बरदाशतम बारे ज़े एहसान-ए-शुमा

    मेरे कंधे से सर के बोझ को तुम्हारी तलवार ने नीचे गिरा दिया

    तुम्हारे एहसान-ओ-करम से मैंने उस को दुबारा उठा लिया

    अज़ तराज़-ए-आस्तीनत नक़्श बर बंदद चमन

    ग़ुंचः रंगीनी गिरफ़्त अज़ रंग-ए-दामान-ए-शुमा

    चमन की रँगा-रँगी तुम्हारी आसतीन की रँगा-रँगी की मर्हून-ए-मिन्नत है

    तुम्हारे दामन के रँग से ग़ुँचों ने रँग पकड़ा है

    वाइ'ज़-ए-मिम्बर-नशीं बैअ'त ज़े रिनदानत कुनद

    ज़ोहद-ओ-ताअ'त सज्दः आरद पेश-ए-मस्तान-ए-शुमा

    मिंबर पर बैठने वाला वा’इज़ तुम्हारे रिंदों से बैअ’त करता है

    तुम्हारे मस्तों के सामने ज़ोहद-ओ-ताअ’त सज्दा किया करता है

    निग्हत-ए-गेसू-ए-मुश्कीं नाफ़हा रा मुश्क दाद

    बाग़ रा सैराब फ़र्मूद आब-ए-एहसान-ए-शुमा

    नाफ़े ने तुम्हारी ख़ुशबूदार ज़ुल्फ़ से ख़ुशबू पाई

    तुम्हारे एहसान के पानी ने बाग़ को सेराब किया

    मी-रवद हमराह ख़ून-ए-मन ब-हर शिरयान-ए-मन

    जौहर-ए-रूहस्त जाँ तेग़-ए-उ'र्यान-ए-शुमा

    मेरी शिरयानों में मेरा ख़ून साथ साथ दौड़ रहा है

    मेरी जान तुम्हारी तेग़ -ए-उ’र्यां मेरी रूह के लिए जौहर है

    कीस्त आँ गुल पैरहन 'अकबर' कि रख़्त-ए-तू दरीद

    ख़ैर बाशद चीस्त हाल-ए-जेब-ओ-दामान-ए-शुमा

    ‘अकबर’ आख़िर वो पैरहन-ए-गुल कौन है जिसने तुम्हारा सरमाया-एहयात

    मुंतशिर कर दिया? ख़ुदा ख़ैर करे, अब तुम्हारे जेब-ओ-गरीबाँ का क्या हाल है

    स्रोत :
    • पुस्तक : जज़्बात-ए-अकबर (पृष्ठ 1)
    • रचनाकार :शाह अकबर दानापुरी
    • प्रकाशन : आगरा अख़बार प्रेस आगरा (1915)
    • संस्करण : First

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