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फ़ना बुलंदशहरी

- 1986 | कराची, पाकिस्तान

हिंद-ओ-पाक के मक़बूल-ए-ज़माना शाइ’र

हिंद-ओ-पाक के मक़बूल-ए-ज़माना शाइ’र

फ़ना बुलंदशहरी का परिचय

उपनाम : 'फ़ना'

मूल नाम : हनीफ़ मोहम्मद

जन्म :बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश

निधन : 01 Nov 1986 | अन्य, सऊदिया अरबिया

आ’रिफ़ाना शाइ’री के हवाले से माज़ी-क़रीब के बहुत ज़्यादा मक़्बूल शाइ’र फ़ना बुलंदशहरी हैं। फ़ना उत्तर प्रदेश के शहर बुलंदशहर में पैदा हुए। फ़ना बुलंदशहरी, क़मर जलालवी के शागिर्द और मा’रूफ़ शाइ’र थे। उनका हक़ीक़ी नाम हनीफ़ मुहम्मद था| "मेरे रश्क़-ए-क़मर एक ग़ज़लिया क़व्वाली है जिसको फ़ना बुलंदशहरी ने लिखा है। मशहूर गुलूकार नुसरत फ़त्ह अ’ली ख़ान ने उस क़व्वाली की आहंग-साज़ी की है। सबसे पहले 1988 ई’स्वी में लोग उस से आश्ना हुए। उस के बा’द उनके भतीजे राहत फ़त्ह अ’ली ख़ान ने कई बार मौसीक़ी की मजालिस में उस की नग़्मा-सराई की मेरे रश्क़-ए-क़मर, तू ने पहली नज़र, जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया बर्क़ सी गिर गई, काम ही कर गई, आग ऐसी लगाई मज़ा आ गया फ़ना बुलंदशहरी को सिलसिला-ए-अबुल-उ’लाइया के बुज़ुर्ग फ़क़ीर नक़ीबुल्लाह शाहजहाँगीरी से बैअ’त का शरफ़ हासिल था। उन्होंने अपने पीर-ओ-मुर्शिद की शान में भी मंक़बत के अश्आ’र कहे हैं।


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