Sufinama
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इब्राहीम आजिज़

1834 - 1882 | शैख़पुर, भारत

उर्दू और फ़ारसी का अ’ज़ीम शाइ’र

उर्दू और फ़ारसी का अ’ज़ीम शाइ’र

इब्राहीम आजिज़ का परिचय

उपनाम : 'आजिज़'

मूल नाम : मोहम्मद इब्राहीम

जन्म :शैख़पुर, उत्तर प्रदेश

निधन : शैख़पुर, उत्तर प्रदेश, भारत

इब्राहीम आ’जिज़ 1250 हिज्री मुताबिक़ 1834 ई’स्वी में शैख़पुर में पैदा हुए। उन्होंने मुख़्तसर ज़िंदगी पाई और सिर्फ़ 48 साल की उ’म्र में काएनात-ए-सिफ़्ली का तमाशा देखकर आ’लम-ए-अर्वाह का सफ़र किया | आपका वतन शैख़पुर है जो क़स्बा सिकंदरपुर ज़िला' बलिया से दो कोस पर वाक़े’ है। आप वहीं दफ़्न हुए। आपका तअ’ल्लुक़ शैख़पुर के शुयूख़ सिद्दीक़ीयुन्नसब से है| आपका नाम मौलवी मुहम्मद इब्राहीम आ’जिज़ है। तख़ल्लुस ’आ’जिज़’ इंतिख़ाब फ़रमाया। इब्तिदाई ता’लीम-ओ-तर्बियत अपने वालिद बुजु़र्ग-वार से हासिल की। शादी के बाद जौनपूर जाकर उ’लूम-ए-मोतदाविला हासिल किया। आपके वालिद शैख़ ख़िसाल एक मुर्ताज़ सूफ़ी बुज़ुर्ग थे। आबा-ओ-अज्दाद में अक्सर हज़रात आ’लम-ए-फ़क़्र-ओ-तज्रीद के बादशाह थे। इस मुनासबत से आ’जिज़ मौरूसी सिफ़ात-ए-दरवेशाना की तस्वीर थे। इब्राहीम आ’जिज़ को अपने हम-अ'स्र सूफ़ियों की सोहबत का शरफ़ हासिल था। उनके हम-अस्र सूफ़ी मौलाना अ’ब्दुल अ’लीम आसी सिकंदरपुरी थे जो आख़िर में क़ुतुब-ए-ज़माना भी हुए और उनके बिरादर-ए-अ’म्म-ज़ाद मौलाना वकील अहमद और मौलाना बख़्शिश अहमद क़ाज़ीपुरी और मौलाना वाजिद अ’ली चंदेरी पाया के आ’लिम और अक्सर आपके हम-दर्स भी थे। शे’र-ओ-सुख़न से अज़ली मुनासिबत थी और “तब्अ’-ए-मौज़ूँ हुज्जत-ए-फ़र्ज़ंदी -ए-आदम बूद” के मिस्दाक़ थे। उर्दू और फ़ारसी में आपका एक दीवान जो उन्होंने मुरत्तब किया था एक ख़ास दोस्त की ना-फ़हमी की वजह से ज़ाए’ हो गया लेकिन एक अ’र्सा के बा’द किर्म-ख़ुर्दा हालत में मिला जिसको बड़ी कोशिशों और काविशों से तब्अ’ के लाएक़ बना दिया गया। उस दीवान से कुछ ग़ज़लें इस वेब-साइट पर भी फ़राहम की गई हैं| चूँकि उनके ज़माना में फ़ारसी का रिवाज मुल्क में रू-ब-ज़वाल था। सरकारी दफ़ातिर से फ़ारसी को उठा लिया गया था कुछ मख़्सूस लोगों ने उसकी नब्ज़ को बाक़ी रखा था और इंशा-पर्दाज़ी, सुख़न-फ़हमी और शे’र-गोई के ज़रिआ’ उसको ज़िंदा रखा था उनमें इब्राहीम ‘आ’जिज़’ का नाम सर-ए-फ़िहरिस्त था। फ़ारसी शे’र-ओ-सुख़न में उन्होंने ‘हाफ़िज़’ और ‘सा’दी’ का ततब्बोअ’ किया। सूफ़ी मश्रब थे इसलिए अश्आ’र इरादात-ए-क़ल्बी का आईना हैं। ना’त निहायत शेफ़्तगी से लिखे हैं। ख़यालात की पाकीज़गी और ज़बान की सफ़ाई भी हद दर्जा है। अश्आ’र में जिद्दतए-तख़य्युल और जिद्दत-ए-तशबीह दाद तलब है ।

 


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