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Imdad Ali Ulvi's Photo'

इम्दाद अ'ली उ'ल्वी

1839 - 1901 | हैदराबाद, भारत

हैदराबाद के प्रसिद्ध सूफ़ी कवि

हैदराबाद के प्रसिद्ध सूफ़ी कवि

इम्दाद अ'ली उ'ल्वी का परिचय

उपनाम : 'उ'ल्वी'

मूल नाम : इम्दाद अ'ली

जन्म : 01 Jul 1839 | मुज़फ़्फ़रनगरी, उत्तर प्रदेश

निधन : 01 May 1901 | तेलंगाना, भारत

आपकी पैदाइश 17 जमादिउल-अव्वल 1255 हिज्री मुताबिक़ 29 जुलाई 1839 ई’स्वी को क़स्बा थाना भवन, ज़िला मुज़फ़्फ़रनगर में हुई।1869 ई’स्वी में आप हैदराबाद चले आए और 1874 ई’स्वी को हज़रत मिर्ज़ा सरदार बैग के दस्त पर बैअ’त हो गए और 1877 ई’स्वी को इजाज़त भी हासिल हो गई। हैदराबाद में आपका क़याम ज़्यादा-तर बल्दा फ़र्ख़ंदा बुनियाद, हैदराबाद में होता था| आपके मुरीदीन-ओ-मो’तक़िदीन हैदराबाद और मज़ाफ़ात-ए-हैदराबाद में ब-कसरत पाए जाते हैं| इम्दाद अ’ली के पिदर -ए-बुजु़र्ग-वार पीर-जी मीर नजात अ’ली (मुतवफ़्फ़ा 1856 ई’स्वी) हज़रत मौला अ’ली के फ़र्ज़न्द मुहम्मद अल-अकबर इब्न-ए-हनीफा की औलाद से हैं इसलिए उ’ल्वी कहलाए। इस सिलसिले के एक बुज़ुर्ग शाह अबू सई’द राज़ी ख़ुरासान से हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाए जिनकी छट्ठी पुश्त में शाह अ’ब्दूर्रज़्ज़ाक़ शाह अल-आ’लमीन झंझानवी बड़े अल्लाह वाले गुज़रे हैं जिनका विसाल 945 हिज्री में हुआ।मर्क़द-ए-पाक क़स्बा झंझाना में नीले रौज़ा के नाम से अब भी मौजूद है| इम्दाद अ’ली उ’ल्वी की पेशानी से बचपन ही से आसार-ए-बुजु़र्गी ज़ाहिर होने लगे थे।जो कोई आपको देखता बे-इख़्तियार सोचता ज़रूर ये बुजु़र्ग-ज़ादा आ’रिफ़-ओ-हादी बनेगा। एक मज्ज़ूब की निगाह-ए-असर ने इम्दाद अ’ली उ'ल्वी को उ’लूम-ए-ज़ाहिरी-ओ-बातिनी से आरास्ता-ओ-पैरास्ता कर दिया।उस ज़माना के दस्तूर के मुताबिक़ पहले क़ुरआन पाक ख़त्म किया फिर पिदर-ए-बुजु़र्ग-वार से फ़ारसी पढ़ी और मादरी ज़बान उर्दू में क़ाबलियत पैदा की। इस दरमियान तसव्वुफ़ की कुतुब भी आपके मुतालिआ’ में शामिल रही। हज़रत उ’ल्वी की फ़ह्म-ए-ज़का और तब-ए’-रिसा ने रग़्बत फ़रमाई और शेर-गोई का आग़ाज़ हुआ और ज़ौक़ देहलवी के तिल्मीज़ मुंशी एहसनुल्लाह ख़ान मुख़य्यर मेरठी से ख़्वाहिश-ए-इस्लाह की। अपना कलाम मुख़य्यर मेरठी को दिखलाया जिन्हों ने थोड़ी बहुत इस्लाह देकर फ़रमाया कि "ये सब उ’म्दा कलाम है। इब्तिदा में अ’ली तख़ल्लुस किया मगर उस्ताद-ए-सुख़न मुख़य्यर के मश्वरा पर उ’ल्वी इख़्तियार फ़रमाया जो मक़्बूल-ए-आ’म और ज़बान-ज़द-ए- ख़ास-ओ-आ’म है| अ’ल्वी कहते हैं ये है मुख़य्यर का फ़ैज़ अ’ल्वी ज़बान-ए-उर्दू जो बोलता हूँ वगरना थाना भवन का हूँ मैं, ज़िला मुज़फ़्फ़रनगर को देखो। इम्दाद अ’ली उ’ल्वी का इंतिक़ाल 11 मुहर्रमुल-हराम 1319 हिज्री मुवाफ़िक़ यकुम मई 1901 ई’स्वी को हुआ और आस्ताना हज़रत मिर्ज़ा सरदार बैग हैदराबाद में मद्फ़ून हुए।


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