जंगली शाह वारसी के दोहे
नूर का रंग भरावा के घट में हर हर पर छप्पर कोरी
प्रेम की बूँद पड़ी जा के मुख पर तन-मन भयोसः पूरी
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कलमः कह सब सर धुनें जाका और न छोर
वारिस का मुख देख के सब चितवैं वही ओर
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere