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Mirza Mazhar Jan-e-Janan's Photo'

मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ

1699 - 1781 | दिल्ली, भारत

दिल्ली के मा’रूफ़ नक़्शबंदी मुजद्ददी बुज़ुर्ग और मुमताज़ सूफ़ी शाइ’र

दिल्ली के मा’रूफ़ नक़्शबंदी मुजद्ददी बुज़ुर्ग और मुमताज़ सूफ़ी शाइ’र

मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ का परिचय

उपनाम : 'मज़हर'

मूल नाम : शमसुद्दीन हबीबुल्लाह

जन्म : 01 Mar 1699 | दिल्ली

निधन : 01 Jan 1781 | दिल्ली, भारत

मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ सादात-ए-अ’लवी में से हैं। आपका सिलसिला-ए-नसब मुहम्मद बिन हनफ़िया की वसातत से हज़रत मौला अ’ली से जा मिलता है। आपके वालिद मिर्ज़ा जान सुल्तान औरंगज़ेब आ’लमगीर के दरबार में साहिब-ए-मन्सब थे। 11 रमज़ान 1111 हिज्री या 1113 हिज्री मुवाफ़िक़ 1699 ई’स्वी को मलवा में पैदा हुए। जब मिर्ज़ा मज़हर की पैदाइश की ख़बर सुल्तान आ’लम-गीर को मिली तो उन्होंने कहा कि बेटा बाप की जान होता है चूँकि बाप का नाम मिर्ज़ा जान है, इसलिए हम ने उनके बेटे का नाम जान-ए-जान रखा लेकिन अ’वाम में जान-ए-जानाँ मशहूर हुआ। आपके वालिद मिर्ज़ा जान जो सिलसिला-ए-क़ादरिया में शाह अ’ब्दुर्रहमान क़ादरी के मुरीद थे, आपकी पैदाइश के बा’द दुनिया से किनारा-कश हो गए और बाक़ी उ’म्र फ़क़्र-ओ-क़नाअ’त में बसर की। आपके वालिद बुजु़र्ग-वार मिर्ज़ा जान ने आपकी ता’लीम के लिए निहायत एहतिमाम फ़रमाया। इब्तिदा में अपने वालिद-ए-माजिद से पढ़े। क़ुरआन-ए-पाक मआ’ तजवीद-ओ-क़िराअत क़ारी अ’ब्दुर्रहीम और इ’ल्म-ए-हदीस-ओ-तफ़्सीर हाजी मुहम्मद अफ़ज़ल सियालकोटी शागिर्द-ए-शैख़ अ’ब्दुल्लाह बिन सालिम मक्की से पढ़ी। इन उ’लूम के अ’लावा मिर्ज़ा मज़हर को दीगर फ़ुनून में भी काफ़ी महारत हासिल थी। बिल-ख़ुसूस फ़न्न-ए-सिपह-गरी में आपको इस क़दर महारत हासिल थी कि फ़रमाते थे कि अगर बीस आदमी तल्वारें खींच कर मुझ पर हमला करें और मेरे पास हाथ में सिर्फ़ एक लाठी हो तो एक आदमी भी मुझे ज़ख़्म नहीं पहुँचा सकता| मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ को सय्यद नूर मुहम्मद बदायूँनी से कम-उ’म्री में ही लगाव हो गया था| उन्हीं से बैअ’त हुए और इजाज़त भी हासिल हुई। सय्यद नूर मुहम्मद बदायूँनी के पीर हाफ़िज़ मुहम्मद हसन और उनके पीर यूसुफ़ुद्दीन सरहिंदी और उनके पीर ख़्वाजा मुहम्मद मा’सूम मुजद्ददी और उनके पीर-ओ-मुर्शिद मुजद्दिद अल्फ़-ए-सानी अहमद सरहिंदी हुए। मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ की ज़ात मुख़्तलिफ़ हैसियतों से बड़ी अहमियत की हामिल है। वो सिर्फ़ इस्लाह -पसंद सूफ़ी साफ़ी ही न थे बल्कि इ’श्क़-ए-हक़ीक़ी के तिल्समात के सालिक, फ़ारसी इंशा-ओ-शाइ’री में बुलंद मक़ाम के मालिक और उर्दू ज़बान के एक मुस्लिह और मुजद्दिद भी थे। उर्दू की सूफ़ियाना शाइ’री में चंद नाम अहमियत के हामिल हैं जिनमें ख़्वाजा दर्द देहलवी, ख़्वाजा रुकनुद्दीन इ’श्क़ अ’ज़ीमाबादी और मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ वग़ैरा सर-ए-फ़िहरिस्त हैं जो जमालिया की शाइ’री करते हैं और ज़बान भी निहायत आसान इस्ति’माल करते हैं जो हर किसी की समझ में आ जाए। मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ को ज़ई’फ़ी की उ’म्र में आधी रात कुछ ग़ुंडों ने 7 मुहर्रमुल-हराम 1195 हिज्री मुवाफ़िक़ 1781 ई’स्वी को तपंचा का ज़ख़्म लगाया और 10 मुहर्रमुल-हराम को वासिल बिल्लाह हुए और चितली-क़ब्र के पास अपनी ख़ानक़ाह में मद्फ़ून हुए।

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