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स्वामी भगवानदास जी

स्वामी भगवानदास जी के दोहे

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प्रथम हि गुरु गोविन्द को, सुमरण सीस नवाइ।।

वाकपति गणपति सहित, कविजन भलो मनाइ।।

छपै छंद अरु सोरठा, अरिल रूप यह जान।

अति निर्मल वैराग्यतर, सार सार परमान।।

बालवेद मुकाम हैं, शुभ विप्रन को वास।।

तहाँ ग्रन्थ पूरन भयो, निर्मल धर्म विलास।।

स्वतः प्रकाश स्वरूप मम, वंदौं शीश निवाय।।

बुद्धि शुद्ध प्रकाश होय, विन्ध नाश सब जाय।।

यामै कछु धोखो नहीं, सत्य वचन परमान।

ईश्वर वाणी वेद है, कहयौ भाखि भगवान।।

थांन मक़ाम परमान ये क्षेत्रवास सु नाम

तहाँ ग्रंथ पूरण प्रगट जो भाखै भगवान

भाषा कृत टीका यहै, शत तीन्यूं परकास।।

दोहा सवैया चौपई, कुंडलि कवित्त विकास।।

पी पीयूष जीव जुगति सौं तजि अयुक्त अज्ञान

अखंड धार ज्यूँ तैल की सो अमृत परमान

अमृत धारा ग्रंथ ये कहियौ वेद प्रमान

अर्जुनदास प्रकासगुरु तत सेवग भगवान

अर्थ धर्म अरु काम पुनि त्याग पदारथ तीन

सो अधिकारी मोक्ष को महाज्ञान परवीन

यथाशक्ति वर्णन करो, मन की ममता खोय

कहत सुनत सुख ऊपजै, अरु परमारथ होय।।

यह कार्तिक महिमादि पुल, भक्ति धर्म परमान।।

रामकृष्ण की सुरति सों, भाखत है भगवान।।

मूल भर्तृशतक यह, एकै शत प्रमान।।

ओर पध जो बीस है, प्रस्तावी सो जान।।

ये संशय की ग्रन्थि है कही अल्प कर सोइ

गुरु शास्त्र प्रतीति नहिं निश्चय कछु होइ

भाषाकृत को नेम यह, सबै कहै भगवान।।

वैराग विशेषण है प्रगट, इष्ट निरंजन ग्यान।।

परंब्रह्म परमात्मा है परोक्ष पद जास

ग्यान अज्ञ प्रत्यक्ष को कीन्हौ ग्रंथ प्रकाश

मंगल रूप स्वरूप मम निजानन्द पद जास

लह्यौ मंगलाचरण ये सौहं हंस प्रकास

जीव ग्रन्थ बन्धन सही, कह्यौ मुक्ति को भेद।

परे उरे सुख एक है, यों भाषत है वेद।।

सत्रह सै अठाईसा सम्वत् संख्या जान

कातिग तृतिया प्रथम ही पूरण ग्रंथ प्रमान

जग के बंधन ज्ञान तैं मुक्त होन की आस

आस वास विस्वास तजि सो मुमुक्षु परकास

साधू संग प्रताप तैं श्री गुरु ग्यान प्रकाश

शुद्धनिरंजन ग्यान लहि कीन्हौ वचन विलास

देह बुद्धि सो अज्ञता, ब्रह्म बुद्धि सो ग्यान।।

अंजन रंजन ता नही, सो स्वरूप भगवान।।

किंकर कहिये तास को, सो अति कामी जानि।।

ज्यों राशभ वश राशभि, ज्यूँ सुनहि वस श्रानि।।

नारद मुनि पृथु सों कहै, विष्णु गये ता धाम।।

वृंदा रानी असुर की, जालंधरपुर नाम।।

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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