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सूफ़ी कहानी
मज्नूँ और लैला की गली का कुत्ता- दफ़्तर-ए-सेउम
मज्नूँ एक कुत्ते की बलाऐं लेता था, उस को प्यार करता था और उस के आगे
रूमी
सूफ़ी कहानी
मज्नूँ और लैला की गली का कुत्ता-दफ़्तर-ए-सेउम
मज्नूँ एक कुत्ते की बलाऐं लेता था, उस को प्यार करता था और उस के आगे
रूमी
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शे'र
तिरे कूचे में क्यूँ बैठे फ़क़त इस वास्ते बैठेकि जब उट्ठेंगे इस दुनिया से जन्नत ले के उट्ठेंगे
मुज़्तर ख़ैराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
किस चीज़ की कमी है मौला तिरी गली मेंमौला तिरी गली में 'उक़्बा तिरी गली में
अमजद हैदराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
सुन ऐ री सखी चल राज़ गली यसरिब का बसय्या आया हैनगरी-नगरी एक धूम मची यसरिब का बसय्या आया है
नसीर नियाज़ी
ग़ज़ल
किस दिल-जले का कूचे में तेरे ग़ुबार थाहर ज़र्रा उस की ख़ाक का मिस्ल-ए-शरार था
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
कलाम
मुम्ताज़ अशरफ़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी
सूफ़ी लेख
अमीर खुसरो- पद्मसिंह शर्मा
कहते हैं कि नादिरशाह ने क्रुद्ध होकर जब दिल्ली में क़त्ल-ए-आम का हुक्म दिया और खु़द
माधुरी पत्रिका
क़िस्सा
क़िस्सा चहार दर्वेश
आख़िर मेरे शौक़ ने उस शहर तलक पहुँचाया। गली कूचे में बावला सा फिरने लगा। अक्सर