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ग़ज़ल
शहर में भी ख़ाक उड़ाती फिर रही हैं वहशतेंछोड़ वीराने 'मुज़फ़्फ़र' अब गली-कूचों में आ
मुज़फ़्फ़र वारसी
सूफ़ी कहानी
मज्नूँ और लैला की गली का कुत्ता- दफ़्तर-ए-सेउम
मज्नूँ एक कुत्ते की बलाऐं लेता था, उस को प्यार करता था और उस के आगे
रूमी
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ना'त-ओ-मनक़बत
किस चीज़ की कमी है मौला तिरी गली मेंमौला तिरी गली में 'उक़्बा तिरी गली में
अमजद हैदराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
सुन ऐ री सखी चल राज़ गली यसरिब का बसय्या आया हैनगरी-नगरी एक धूम मची यसरिब का बसय्या आया है
नसीर नियाज़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी
ग़ज़ल
औघट शाह वारसी
शे'र
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
बेदम शाह वारसी
मल्फ़ूज़
सोमवार के रोज़ माह-ए-ज़ीक़ा’दा 584 हिज्री को क़दम-बोसी का शरफ़ हासिल हुआ।अहल-ए-सफ़ा और दरवेशों का एक