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राग आधारित पद
सो जोगी जो या मनकूँ मारै, मनकूँ मार मनोरथ जारै- राग रामकली
सिव नगरी में आसण धारे, उलटि अगम विचारे रै।।त्रिवेणी तट लावै ताली, परम जोति निहारे रै।।
तुरसीदास
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नज़्म
होली की बहारें
मुँह जिस का चाँद का टुकड़ा हो और आँख भी मय की प्याली होबद-मस्त बड़ी मतवाली हो हर-आन बजाती ताली हो
नज़ीर अकबराबादी
सूफ़ी लेख
Krishna as a symbol in Sufism
तुराब के काव्य में कृष्ण के लौकिक तथा पारलौकिक अनेक प्रकार के रंग हैं । वह
बलराम शुक्ल
सूफ़ी लेख
क़व्वाली के इब्तिदाई साज़, राग ताल और ठेके
क़व्वाली के इब्तिदाई साज़ों की तफ़्सील किसी एक मज़मून या किताब से दस्तयाब नहीं होती, अलबत्ता
अकमल हैदराबादी
सूफ़ी लेख
क़व्वाली
क़व्वाली एक फ़न है या’नी एक सिंफ़-ए- मौसीक़ी जिसमें चंद ख़ुश-गुलू मुश्तरका तौर पर बा-ज़ाबता राग
अकमल हैदराबादी
सूफ़ी लेख
कबीरपंथी और दरियापंथी साहित्य में माया की परिकल्पना - सुरेशचंद्र मिश्र
माया के दो प्रधान-शास्त्र कामिनी एवं कनक है। नारी-प्रसंग एक ऐसा इन्द्रजाल है जो देवताओं तथा