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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
बैत
ज़े-दुश्मन शिनौ सीरत-ए-ख़ुद कि दोस्त
ज़े-दुश्मन शिनौ सीरत-ए-ख़ुद कि दोस्तहराँचे ज़ तू आयद ब चश्मश नकोस्त
सादी शीराज़ी
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सूफ़ी कहानी
एक दोस्त का हज़रत-ए-यूसुफ़ से मिलने आना और हज़रत-ए-यूसुफ़ का उस से हदिया तलब करना - दफ़्तर-ए-अव्वल
एक मेहरबान दोस्त किसी दूर मुल्क से आया और यूसुफ़-ए-सिद्दीक़ का मेहमान हुआ। चूँकि अपने को
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
पर्दा-ए-राज़ है ऐ दोस्त हर इंसाँ तेराकौन से दिल में कोई सर नहीं पिन्हाँ तेरा
शाह अकबर दानापूरी
सूफ़ी कहावत
रज़ा-ए-दोस्त बदस्त आर ओ दीगरां बग़ुज़ार
अपने दोस्त की इच्छाओं को पूरा करें, और दूसरों की इच्छाओं को छोड़ दें।
वाचिक परंपरा
फ़ारसी कलाम
आह ख़ुश बाशद कि बीनम बार-ए-दीगर रू-ए-दोस्तदर सुजूद आयम ब-मेहराब-ए-ख़म-ए-अबरू-ए-दोस्त
ज़ैबुन्निसा बेगम
ग़ज़ल
गुल-बदामाँ गुल सरापा गुल ही गुल है ख़ू-ए-दोस्तबल्कि वो गुल ही नहीं जिस में न हो ख़ुशबू-ए-दोस्त
महमूद आलम
ग़ज़ल
दिल की हर धड़कन पयाम-ए-दोस्त हो जाती है क्यागुफ़्तुगू अपनी कलाम-ए-दोस्त हो जाती है क्या