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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
सबात-ए-दिल हमी जोई दरून-ए-गुम्बद-ए-गर्दाँअज़ आँ बेहूदा सरगर्दां चुनाँ गर्दून गर्दानी
हकीम सनाई
नज़्म
मेरे बिछड़े हुए हमदम मेरे देरीना हबीब
ब-हर-अंदाज़ सँवरता हूँ मगर बे-मा'नीन ख़यालों में तसलसुल न इरादों में सबात
बज़मी वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
चलते चलते रुक चुकी थी जबकि नब्ज़-ए-काएनातनौ’-ए-इंसानी की थी हर इक तमन्ना बे-सबात
नख़्शब जार्चवि
ग़ज़ल
ताज-ए-ख़िर्मन से मुक़र्रर दस्तूर-ए-अंजुम-गीरी तिरीरौशन तिरे रुख़्सार से सरा-ए-बे-सबात है
अहमद अब्दुल रहमान
ना'त-ओ-मनक़बत
उसी की ज़ात से क़ाएम सबात-ए-’अज़्मत-ए-इंसाँउसी की ज़ात से दाइम हयात-ए-मिल्लत-ए-बैज़ा