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निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
जन्नत-उल-फ़िरदौस से बेहतर है जा-ए-ग़ौस-ए-पाकख़ुल्द में रिज़वाँ भी करता है सना-ए-ग़ौस-ए-पाक
अज्ञात
ना'त-ओ-मनक़बत
मेरा का’बा-ए-तमन्ना दर-ए-पाक-ए-मुस्तफ़ाईमेरी ज़िंदगी का हासिल उसी दर की जब्हा-साई
बह्ज़ाद लखनवी
ना'त-ओ-मनक़बत
दिल-रुबा है किस क़दर शान-ए-जमाल-ए-ग़ौस-ए-पाकहै जहाँ शैदा-ए-हुस्न-ए-बे-मिसाल-ए-ग़ौस-ए-पाक
शकील बदायूँनी
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ना'त-ओ-मनक़बत
इक इक वली रहीन-ए-करम ग़ौस-ए-पाक काहै सब की गर्दनों पे क़दम ग़ौस-ए-पाक का
पीर नसीरुद्दीन नसीर
ना'त-ओ-मनक़बत
आँखों में मेरी मिस्ल-ए-नज़र ग़ौस-ए-पाक हैंदिल है मिरा सदफ़ तो गुहर ग़ौस-ए-पाक हैं
शाह अकबर दानापूरी
ना'त-ओ-मनक़बत
ऐ ज़ात-ए-पाक-ए-’आली या-पीर-ए-ग़ौस-ए-आ’ज़ममक़बूल-ए-ला-यज़ाली या-पीर-ए-ग़ौस-ए-आ’ज़म
नियाज़ वज़िरबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
कोई जा कर रसूल-ए-पाक से मेरी ख़बर कर देग़म फ़ुर्क़त में उठता है पत्थर का जिगर कर दे
अज्ञात
ना'त-ओ-मनक़बत
नूर-ए-ख़ुदा हैं पाक-ए-मोहम्मद ख़ालिक़ के दिलदारसल्ले-'अला हैं हर दो जग में नबियों के सरदार
इलाह बख़्श ख़ाँ
फ़ारसी कलाम
मकीन-ए-अ’र्श-ए-मुअज़्ज़म जनाब-ए-मुनइ'म-ए-पाकफ़रोग़-ए-ताले’-ए-आदम जनाब-ए-मुनइ'म-ए-पाक
शाह मोहसिन दानापुरी
ना'त-ओ-मनक़बत
जिन के भी दिल में होती है उल्फ़त ग़ौस-ए-पाक कीवो अपना लेता है हर पल सीरत ग़ौस-ए-पाक की
शारिक़ रब्बानी
ना'त-ओ-मनक़बत
मैं मुक़तदी भी हूँ मैं ही सफ़-ए-इमाम में हूँफ़ना-ए-ज़ात-ए-अ’ली हूँ अ’जब मक़ाम में हूँ