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साखी
सेवक और दास का अंग - जा घट में साईं बसै सो क्यों छाना होय
जा घट में साईं बसै सो क्यों छाना होयजतन जतन करि दाबिये तौ उँजियारा सोय
कबीर
ग़ज़ल
ऐ मिरे माह-रू तिरी चश्म-ए-सितारा साँ के बा’दचाँद की दीद क्या करें रूयत-ए-कहकशाँ के बा'द
साएमा ज़ैदी
शे'र
लज़्ज़तें दीं ग़ाफ़िलों को क़ासिम-ए-हुशियार नेइ’श्क़ की क़िस्मत हुई दुनिया में ग़म खाने की तरह
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
लज़्ज़तें दीं ग़ाफ़िलों को क़ासिम-ए-हुशियार नेइ’श्क़ की क़िस्मत हुई दुनिया में ग़म खाने की तरह
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
दोहा
साईं का घर दूर है और साईं मन के तीर
साईं का घर दूर है और साईं मन के तीरसाईं से ब्यौहार करे 'औघट' वही फ़क़ीर
औघट शाह वारसी
ग़ज़ल
बुतान-ए-हश्र ताज़ा रँग भर दीं दाग़-ए-इस्याँ मेंमज़ा दे जाए मेरा दाग़-ए-इस्याँ मेरे दामाँ में