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कलाम
हया बदायूँनी
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सूफ़ी उद्धरण
काइनात का कोई ग़म ऐसा नहीं है जो आदमी बर्दाश्त न कर सके।
काइनात का कोई ग़म ऐसा नहीं है जो आदमी बर्दाश्त न कर सके।
वासिफ़ अली वासिफ़
पद
ककहरा - झझ्झा झलकत नूर जहूर हरष हिये में भई
झझ्झा झलकत नूर जहूर हरष हिये में भईनिरखा रबि उजियार द्वार पच्छिम गई
तुलसी साहिब हाथरस वाले
कलाम
वुफ़ूर-ए-शौक़-ए-मुज़्तर है कि उन को हाय क्या कहिएनबी कहिए मलक कहिए बशर कहिए ख़ुदा कहिए