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खा रहे हैं दरख़्त का सायाटहनियों से लगे हुए चेहरे
रिश्तेदार ख़ामोश खड़े देख रहे थे। शर्म से अपने हाथों से अपना जिस्म छिपाता हुआ, डर से दुबकता हुआ सूदख़ोर, तालाब के चारों तरफ़ कोई छिछली जगह ढूंढ रहा था। एक जगह वह बैठ गया। ऊपर से लटकती टहनियों को थामकर, डरते-डरते, अपने एक पैर का पंजा उसने पानी में डाला।"बाबा रे! यह तो बहुत ठंडा है!" वह बड़बड़ाया। घबराहट के मारे उस की आंखे बाहर निकली पड़ रही थी।
तब मैं मदद मांगूंगा और तुम क़ैदखाने का सबसे नज़दीक का रास्ता इख़्तियार करोगे।"ग़ुस्से से ख़ोजा
टहनियोंٹہنیوں
branches, twigs
Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
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