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ग़ज़ल
तू ने अपना जल्वा दिखाने को जो नक़ाब मुँह से उठा दियाहुई महव-ए-हैरत-ए-बे-खु़दी मुझे आईना सा बना दिया
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
शे'र
तू ने अपना जल्वा दिखाने को जो नक़ाब मुँह से उठा दियावहीं हैरत-ए-बे-खु़दी ने मुझे आईना सा दिखा दिया
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
शे'र
तू ने अपना जल्वा दिखाने को जो नक़ाब मुँह से उठा दियावहीं हैरत-ए-बे-खु़दी ने मुझे आईना सा दिखा दिया
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
सूफ़ी कहानी
बादशाह और कनीज़ - दफ़्तर-ए-अव्वल
सर-ए-राह एक लौंडी नज़र पड़ी कि देखते ही दिल-ओ-जान से उस का ग़ुलाम हो गया। मुँह
रूमी
सूफ़ी लेख
बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
शाह ’आलम-गीर सानी के क़त्ल के वाक़ि’आ ही पर नज़र डालो। देखो कि हिंदू मर्द तो