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कबीर जी का समय डाक्टर रामप्रसाद त्रिपाठी, एम. ए., डी. एस्-सी.
चौदहवीं शताब्दी के मध्यकाल में कबीर का जन्म मानने से वे पीपा जी के समकालीन हो
हिंदुस्तानी पत्रिका
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हज़रत शाह फ़रीदुद्दीन अहमद चिश्ती
आपके वंश में हज़रत शाह फ़रीदुद्दीन अहमद चिश्ती जैसे प्रसिद्ध सूफ़ी चौदहवीं सदी हिज्री में हुए,
रय्यान अबुलउलाई
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हिन्दी साहित्य में लोकतत्व की परंपरा और कबीर- डा. सत्येन्द्र
अभिप्राय यह है कि इस युग में नये काव्यरूपों की उद्भावना हुई जिसमें से एक रूप
भारतीय साहित्य पत्रिका
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सय्यद शाह शैख़ अ’ली साँगड़े सुल्तान-ओ-मुश्किल-आसाँ - मोहम्मद अहमद मुहीउद्दीन सई’द सरवरी
सूफ़ीनामा आर्काइव
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जौनपुर की सूफ़ी परंपरा
जौनपुर को फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने सन 1361 में अपने चचेरे भाई मुहम्मद बिन तुग़लक़ उ’र्फ़
सुमन मिश्र
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हज़रत बाबा फ़रीद के ख़ुलफ़ा
शैख़ जमाल ने अपने पीर-ओ-मुर्शिद के हयात में ही विसाल फ़रमाया।उनकी ख़ादिमा जो उम्मुल-मोमिनीन के नाम
ख़लीक़ अहमद निज़ामी
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हज़रत ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन मुनव्वर निज़ामी
पहली का चाँदहज़रत जमाल हान्स्वी का विसाल बाबा साहिब के सामने ही हो गया था।उनकी एक
मुनादी
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कबीर जीवन-खण्ड- लेखक पं. शिवमंगल पाण्डेय, बी. ए., विशारद
कबीर रामानन्द स्वामी के शिष्य थे। रामानन्द जी रामानुज के (जो कि वैष्णव संप्रदाय के प्रवर्तक
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
दूसरे दिन क़ुतुब साहब की लाठ, ‘अलाई दरवाज़ा , इमाम-ए-ज़ामिन के मक़बरे, भीम की छटंकी, कड़वे
मिर्ज़ा फ़रहतुल्लाह बेग
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रामावत संप्रदाय- बाबू श्यामसुंदर दास, काशी
हिंदी साहित्य का इतिहास तीन मुख्य कालों में विभक्त किया जा सकता है- प्रारंभ काल, मध्य