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सूफ़ी लेख
हज़रत ग़ौस ग्वालियरी और योग पर उनकी किताब "बह्र-उल-हयात"
हज़रत ग़ौस ग्वालियरी ने ग्वालियर में अपनी ख़ानक़ाह बनाई और उनका ज़्यादातर समय समाअ’ महफ़िलों में
सुमन मिश्र
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हिन्दुस्तानी तहज़ीब की तश्कील में अमीर ख़ुसरो का हिस्सा - मुनाज़िर आ’शिक़ हरगानवी
फ़रोग़-ए-उर्दू
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जिन नैनन में पी बसे दूजा कौन समाय
मेरी तरह उन्होंने भी क़दमबोसी की, हाथ जोड़ कर खड़े हुए और कहना शुरु किया- जब
सुमन मिश्र
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शम्स तबरेज़ी - ज़ियाउद्दीन अहमद ख़ां बर्नी
दीगर अँग्रेज़ी-दाँ ख़ुद्दाम की तरह बर्नी भी उन अंग्रेज़ी किताबों को मुतालआ’ में रखना ज़्यादा पसंद
ख़्वाजा हसन निज़ामी
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बाबा फ़रीद शकर गंज
कई आदमियों के ज़ख़्म-ख़ुर्दा सर और ज़रर-रसीदा आँखें उस रात के गुज़र जाने के बा’द कई
निज़ाम उल मशायख़
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हज़रत ख़्वाजा नूर मोहम्मद महारवी - प्रोफ़ेसर इफ़्तिख़ार अहमद चिश्ती सुलैमानी
‘गर गुल अस्त अंदेश-ए-तू गुल्शने’की तशरीह में फ़रमाया कि इस अंदेशा में सिर्फ़ जानने से काम
मुनादी
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कबीर दास
जम दरवजवा बांध जाले जावे पकराऐ जोगी तूने अपने दिन को नहीं रंगाया सिर्फ़ कपड़ा रंगा
ज़माना
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तज़्किरा-ए-फ़ख़्र-ए-जहाँ देहलवी
नमाज़-ए-सुबह की तकबीर हो रही थी। अल्हम्दुलिल्लाही वल-मिन्ना।नमाज़ में शरीक हो गया। उस दिन के बा’द
निसार अहमद फ़ारूक़ी
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शाह अकबर दानापुरी और “हुनर-नामा”
हो जो सर्वत तुम्हें मर्ग़ूब हुनर को सीखोलोग स्कूलों की ता’लीम के नतीजे में और अंग्रेज़ों
रय्यान अबुलउलाई
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बिहार में क़व्वालों का इतिहास
‘‘क़व्वालों में सबसे ज़्यादा नाम-वर ये चौकी गुज़री हालाँकि गाना उम्दा न था मगर तमामी पुराने
रय्यान अबुलउलाई
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सूफ़ी और ज़िंदगी की अक़दार
हम भूके हैं, नंगे हैं इसलिए हमारे नज़दीक इस्लाम की ता’लीम ये है कि ख़ूब मेहनत
ख़्वाजा हसन निज़ामी
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अभागा दारा शुकोह - श्री अविनाश कुमार श्रीवास्तव
साहित्य वृद्धि- दारा के आध्यात्मिक तथा दार्शनिक विचार नवीन न थे। आर्य ऋषि संस्कृत ग्रंथों में
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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अभागा दारा शुकोह
साहित्य वृद्धि- दारा के आध्यात्मिक तथा दार्शनिक विचार नवीन न थे। आर्य ऋषि संस्कृत ग्रंथों में