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कलाम
जवानी ख़्वाब की सी बात है दुनिया-ए-फ़ानी मेंमगर ये बात किस को याद रहती है जवानी में
सीमाब अकबराबादी
कलाम
ग़म-ए-दुनिया ग़म-ए-हस्ती ग़म-ए-उल्फ़त ग़म-ए-दिलकितने 'उन्वान मिले हैं मिरे अफ़्साने को
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
दुनिया है ये अंदाज़-ए-शबिस्ताँ कोई दिन औरअच्छा तो फिर इक ख़्वाब-ए-परेशाँ कोई दिन और
सीमाब अकबराबादी
कलाम
कहाँ हो तुम चले आओ मोहब्बत का तक़ाज़ा हैग़म-ए-दुनिया से घबरा कर तुम्हें दिल ने पुकारा है
बह्ज़ाद लखनवी
कलाम
दुनिया भी मिली है ग़म-ए-दुनिया भी मिला हैवो क्यूँ नहीं मिलता जिसे माँगा था ख़ुदा से
रा'ना अकबराबादी
कलाम
ख़ुद पर्दा में छुप बैठे हैं और दुनिया को हैरानी हैहैं चारों जानिब ढूँढ रहे मख़्लूक़ हुई दीवानी है
मुहर्रम अली चिश्ती
कलाम
यही इक आरज़ू रहती है बेकल दिल की दुनिया मेंकि गुम हो जाऊँ 'एहसाँ' जल्वा-ए-जान-ए-तमन्ना में