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कलाम
हर नक़्शा किस से हक़ के सिवा मुम्किनात काहर फ़र्द है जहाँ में आईना ज़ात का
मिर्ज़ा मोहम्मद अली फ़िदवी
कलाम
वो हक़ के साथ राबिता-ए-दिल नहीं रहामज्ज़ूब उस लक़ब ही के क़ाबिल नहीं रहा
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
दीद-ए-जमाल-ए-हक़ हुई हुस्न-ए-निगार देख करबन गए बुत-परस्त हम सूरत-ए-यार देख कर
शब्बीर साजिद मेहरवी
कलाम
आशिक़ पढ़न नमाज़ पिरम दी जैं विच हरफ़ न कोई हूजेहा केहा नीत न सक्के उथ दर्दमंद दिल ढोई हू
सुल्तान बाहू
कलाम
दर्शन सिंह
कलाम
न हर्फ़-ए-हक़ न वो मंसूर की ज़बाँ न वो दारन कर्बला न वो कटते सरों के नज़्राने
पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
ख़ुदी से बे-ख़ुदी में आ जो शौक़-ए-हक़-परसती हैजिसे तू नीस्ती समझा है ऐ ग़ाफ़िल वो हस्ती है
अमीर मीनाई
कलाम
जुनून-ए-आगही हूँ शोरिश-ए-हक़्क़-ए-सदाक़त हूँमैं 'इरफ़ान-ए-मोहब्बत हूँ मैं तूफ़ान-ए-मसर्रत हूँ
धर्म सरूप
कलाम
बीत गया हंगाम-ए-क़यामत रोज़-ए-क़यामत आज भी हैतर्क-ए-तअल्लुक़ काम न आया उन से मोहब्बत आज भी है