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कलाम
सब का मर्जा’ बन गया है सब को ठुकराने के बा'दज़िंदगी पाई किसी ने तुम पे मर जाने के बा'द
कामिल शत्तारी
कलाम
क़ब्र ही तक साथ देंगे दोस्तान-ए-बे-रियादाब कर मिट्टी में सब प्यारे जुदा हो जाएँगे
ताहिर मोरादबादी
कलाम
सब कुछ है दफ़्न मुझ में वो ज़िंदा मज़ार हूँइस वास्ते मैं अपनी ख़ुदी पर निसार हूँ
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
कलाम
बा-वज़ू हो कर पिएँ सब मय-कदे में मिल के मुलहो रहे हैं एक रिंद ’आरिफ़-ओ-’आक़िल के क़ुल
बाक़ीर शाहजहांपुरी
कलाम
सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईंख़ाक में क्या सूरतें होंगी कि पिन्हाँ हो गईं