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मुरीद का मकान ता’मीर करना और पीर का इम्तिहान लेना- दफ़्तर-ए-दोउम

रूमी

मुरीद का मकान ता’मीर करना और पीर का इम्तिहान लेना- दफ़्तर-ए-दोउम

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    रोचक तथ्य

    अनुवादः मिर्ज़ा निज़ाम शाह लबीब

    एक मुरीद ने नया घर बनाया, पीर घर देखने आए। पीर ने इम्तिहान की ख़ातिर अपने मुरीद से पूछा, रफ़ीक़ ये रौशन-दान तुमने क्यों बनाया।

    जवाब दिया इसलिए कि इस के ज़रीये से अंदर रौशनी आए। शैख़ ने फ़रमाया कि वो तो फ़र्अ’ है, अस्ल ग़रज़ ये होनी चाहिए थी कि इस ज़रीऐ’ से अज़ान की आवाज़ आए। रौशनी तो अपने आप ही जाती मगर नीयत वो करनी चाहिए जो तेरे लाएक़ हो।

    ये वो नुक्ता है जिसकी ता’लीम इस हदीस शरीफ़ में दी गई है कि आदमी के अ’मल का मदार उस की निय्यत पर होता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिकायात-ए-रूमी हिस्सा-1 (पृष्ठ 81)
    • प्रकाशन : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द) (1945)

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