कलाम
सूफ़ियाए किराम के लिखे हुए ज़्यादा-तर अशआर कलाम के ज़ुमरे में ही आता है और उसे महफ़िल समाव के दौरान भी गाया जाता है।
1743 -1817
फ़ुलवारी शरीफ़ के पुर-गो शो’रा में इम्तियाज़ी हैसियत रखने वाले एक अ’ज़ीम सूफ़ी शाइ’र