ना'त-ओ-मनक़बत
ना’त हज़रत मुहम्मद (PBUH) की शान में लिखे गए कलाम को कहते हैं। ना’त को हम्द के बा’द पढ़ा जाता है। मनक़बत किसी सूफ़ी बुज़ुर्ग की शान में लिखी गयी शायरी को कहते हैं। हम्द और ना’त के बा’द अक्सर क़व्वाल जिस सूफ़ी बुज़ुर्ग के उर्स पर क़व्वाली पढ़ते हैं उनकी शान में मनक़बत पढ़ी जाती है।
हिन्दुस्तान के मुमताज़ सूफ़ी और अमीर ख़ुसरो के पीर-ओ-मुर्शिद
मस्नवी मख़ज़नुल-असरार, ख़ुसरौ शीरीं और लैला मज्नूँ के मुसन्निफ़
बेदम वारसी के उस्ताद-ए-मोहतरम और अबुल-उ’लाई सिलसिले के एक मशहूर अकबराबादी शाइ’र