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मा आईन:-ए-जमाल-ए-यारेम

रूमी

मा आईन:-ए-जमाल-ए-यारेम

रूमी

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    मा आईन:-ए-जमाल-ए-यारेम

    नज़ीर-ए-बे-जमाल-ए-आँ निगरेम

    हम अपने यार के सौंदर्य का आईना हैं

    हम उस महबूब के कुरूप का नमूना हैं

    मुस्तग़रक़-ए-हुस्न-ए-आँ चुनानेम

    परवा-ए-जहान-ओ-जाँ न-दारेम

    हम उस के हुस्न में इस तरह मस्त हैं

    कि हमें अपनी जान की और संसार की कोई चिंता नहीं है

    मा ग़र्क़:-ए-बह्र-ए-बे-करानेम

    अज़ बह्र अगरचे बर किनारेम

    हम समुंदर से दूर हैं

    लेकिन अथाह समुंदर में डुबकी लगाए हुए हैं

    पिन्हाँ ब-हक़ीक़तेम अज़ अ'याँ

    दर एै'न-ए-अ'याँ ज़ुहूर दारेम

    लोग सत्य से दूर मा’लूम पड़ते हैं

    लेकिन वो सच्ची आँखों में प्रकट है

    बैरूँ ज़े-जेहात-ओ-दर-जेहातेम

    अफ़्ज़ूँ ज़े-शुमार-ओ-दर-शुमारेम

    हम दिशाओं से दूर हैं लेकिन दिशाओं के अन्दर भी हैं

    हमारी गिनती असंभव भी है और संभव भी

    दर हस्ती-ए-इ'श्क़ नीस्त गश्तेम

    वज़ हस्ती-ए-ख़्वेश याद-ए-नारेम

    हम ने इ’श्क़ के संसार का भ्रमण नहीं किया है

    हमको अपने अस्तित्व का कुछ भी ज्ञान नहीं है

    बे-'शम्स' चु शम्स नूर बाशेम

    बा-शम्स चु अब्र दर गु़बारेम

    स्रोत :
    • पुस्तक : नग़्मात-ए-सिमा (पृष्ठ 200)
    • प्रकाशन : नूरुलहसन मौदूदी साबरी (1935)

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