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Sufinama

रसाँ यारब ब-सरकार-ए-मदीनः

हाजी वारिस अली शाह

रसाँ यारब ब-सरकार-ए-मदीनः

हाजी वारिस अली शाह

MORE BYहाजी वारिस अली शाह

    रसाँ यारब ब-सरकार-ए-मदीनः

    फ़िदा गर्दम ब-दरबार-ए-मदीनः

    ख़ुदा मुझे मदीने के सरकार के पास पहुँचा

    मैं मदीने के दरबार मैं ख़ुद को फ़िदा कर दूँगा

    मदीनः रश्क-ए-फ़िर्दौस-ए-बरीं अस्त

    कशम बरसर-ए-चु-गुल ख़ार-ए-मदीनः

    मदीना फ़िरदौस-ए-बरीं के लिए भी बा’इस-ए-रश्क है

    मैं फूल की तरह मदीने के काँटे को निकाल दूँगा

    ख़ुशा रोज़े कि चूँ बुलबुल नुमायम

    नवा संजी ब-गुलज़ार-ए-मदीनः

    वो क्या ही अच्छा दिन होगा जब मैं बुलबुल की तरह

    गुलज़ार-ए-मदीना में नवा-संजी करूँगा

    नमी-गोयम रसाँ यारब ब-जन्नत

    मगर हस्तम तलबगार-ए-मदीनः

    मैं ये नहीं कहता कि ख़ुदा मुझे जन्नत में पहुँचा दे

    अलबत्ता मैं मदीने का तलब-गार ज़रूर हूँ

    मसीहा आयद अज़ बहर-ए-इ'बादत

    कसे गर हसत बीमार-ए-मदीनः

    अगर कोई मदीने का बीमार हो तो

    मसीहा ’इयादत के लिए आता है

    शवम चूँ बर्दः-ए-ख़ुद-रा फ़रोशम

    रस्म गर सू-ए-बाज़ार-ए-मदीनः

    मैं ग़ुलाम बन कर ख़ुद को फ़रोख़्त कर डालूँ

    अगर मैं बाज़ार-ए-मदीना में पहुँच जाऊँ

    रसद पैहम मलक ज़ेर-ए-लेवाएश

    बर अफराज़द चू सालार-ए-मदीनः

    फ़रिश्ता मुसलसल उस के ’इल्म के नीचे पहुँचता है

    और सालार-ए-मदीना की तरह उसे बुलंद करता है

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