शौक़-ए-तू दर रोज़-ओ-शब दारम दिला
शौक़-ए-तू दर रोज़-ओ-शब दारम दिला
इश्क़-ए-तू दारम ब-पिन्हाँ-ओ-मला
ऐ महबूब दिल मैं दि न रात तेरी आरज़ू करता हूँ
मुझे पोशीदा और ऐ’लानि या तुझसे ही इ’श्क़ है
जाँ ब-ख़्वाहम दाद मन दर कू-ए-तू
गर मरा आज़ार आयद या बला
अगर मुझ पर कोई मुसीबत या बला उतरे तो
मैं तुम्हारे कूचे में अपनी जान दे दूँगा
इश्क़-ए-तू दारम मियान-ए-जान-ओ-दिल
मी-देहम अज़ इश्क़-ए-तू हर-सू सला
मैं जान और दि ल तुम पर नि छावर करता हूँ
मैं तुम्हारे इ’श्क़ में हर तरफ़ से आवाज़ लगा रहा हूँ
या ख़ुदावंदा रक़ीबाँ रा ब-कुश
या मरा दर याद कुन मस्त-ए-हला
ऐ ख़ुदा! या तो रक़ीबों को तू मेरी राह से हटा दे
या तू मुझे अपनी याद में मस्त-ओ-बे-ख़ुद कर दे
जाम-ए-मन दारद शराब-ए-यार ख़ुद
मेहरबाँ कुन बर मन व हम मुब्तला
मेरा जाम मेरे यार की शराब से लबरेज़ है
मुझ पर इ’नायत फ़रमा और मुझे उस का ख़ूगर बना दे
ऐ चसा कज़ तू अगर ख़्वाहम लिक़ा
गर कुनी आरे मकुन हरगिज़ तू लआ
मैं अगर तेरा आ’शिक़ हूँ तो बुराई क्या है
तू हर्गिज़ अपनी ज़बान पर लफ़्ज़ ‘नहीं’ मत लाना
ऐ 'अली' तू फ़र्रुख़ी दर शहर-ओ-कू
देह ज़-इश्क़-ए-ख़्वेश्तन हर-सू सला
ऐ ‘अ’ली’ तू शहर और गली कूचा में शाद-ओ-ख़ुर्रम है
तू हर जगह अपने इ’श्क़ का ऐ’लान कर दे
- पुस्तक : ख़ुम-ख़ानः-ए-तसव्वुफ़ (तज़्किरः-ए-औलिया-ए-हिन्द-ओ-पाकिस्तान कलाँ) (पृष्ठ 16)
- रचनाकार : ज़ुहूरुलहसन
- प्रकाशन : ताज पब्लिशर्स दिल्ली (1981)
- संस्करण : 2nd Edition
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