Sufinama

सवाल - कुदामीन नुक़्त: रा नुत्क़-अस्त अनल-हक़

महमूद शबिस्तरी

सवाल - कुदामीन नुक़्त: रा नुत्क़-अस्त अनल-हक़

महमूद शबिस्तरी

MORE BYमहमूद शबिस्तरी

    सवाल

    प्रश्न

    कुदामीन नुक़्त: रा नुत्क़-अस्त अनल-हक़

    चे गोई हर्ज़ा बूद आँ रम्ज़-ए-मुत्लक़

    वे सदैव इन्हीं शब्दों का उच्चारण करते हैं और इन्हीं शब्दों पर उनका जीवन निर्भर है।

    जवाब

    जब तू अपने आपको रुई के समान धुन डालेगा तब धुनिया के समान यही शब्द ज़ोर ज़ोर से तुझ में से निकलेंगे।

    अनल-हक़ कश्फ़-ए-असरार-अस्त मुतलक़

    ब-जुज़ हक़ कीस्त ता गोयद अनल-हक़

    अभिमान के रुई को अपने कान से निकाल डाल और अद्वैत की आवाज़ को सुन।

    हम आँ ज़र्रात-ए-आलम हम-चू मंसूर

    तू ख़्वाही मस्त गीर-ओ-ख़्वाही मख़मूर

    ईश्वर की ओर से तेरे लिए सदैव यही आवाज़ रही है कि तू प्रलय का बाट क्यों जोह रहा है।

    दरीं तस्बीह-ओ-तहलील-अंद दायम

    ब-दीं मा'नी हम: हस्तन्द क़ायम

    तू ऐमन की घाटी में चला जा। वहाँ प्रत्येक वृक्ष तुझसे यही कहेगा कि ईश्वर मैं ही हूँ।

    अगर ख़्वाही कि बर तू गर्दद आसाँ

    व-इन-मिन-शैइन रा यक रह फ़रव ख़्वाँ

    एक वृक्ष का जब यह कहना कि ईश्वर मैं ही हूँ, ठीक है तब एक पवित्रात्मा का कथन क्यों सत्य हो।

    चू कर्दी ख़ेशतन रा पम्बः-कारी

    तू हम हल्लाज वार ईं दम बरआरी

    अपने आप को 'आप' कहना ईश्वर को ही शोभा देता है। इसके भीतर 'वह' का शब्द गुप्त है। परन्तु सन्देह और घमंड का चिह्न भी नहीं दिखलाई पड़ता।

    बर आवर पम्ब:-ए-पिंदारत अज़ गोश

    निदा-ए-वाहहिद-उल-क़हहार ब-नयोश

    ईश्वर के सामने द्वैत का चिन्ह भी नहीं पाया जाता। उसके सामने, मैं, हम और तू इत्यादि कुछ भी नहीं है।

    निदा मी-आयद अज़ हक़ बर दवामात

    चरा गश्ती तू मौक़ूफ़-ए-क़यामत

    मैं और तू इत्यादि में कोई भेद नहीं है। इकताई में किसी प्रकार का अन्तर होता ही नहीं है।

    दर आवर वादी-ए-ऐमन कि नागाह

    दरख़़्ते गोयदत इन्नी अनल्लाह

    जिस मनुष्य के हृदय से यह बातें दूर हो गईं, उसकी अन्तरात्मा से 'अहम् ब्रह्मास्मि' की आवाज़ निकलने लगती है।

    रवा बाशद अनल-हक़ अज़ दरख़़्ते

    चेरा न-बुवद रवा अज़ नेक-बख़्ते

    उसमें मिल जाने अथवा अन्तर्हित हो जाने का प्रश्न तब उठता है जब हृदय में अहंकार रहता है।

    परन्तु अहंकार को त्याग देने से बिल्कुल ईश्वर से साक्षात् होता है। एक मनुष्य था जो जीवन से पृथक हो गया। तो ईश्वर ही मनुष्य बना और मनुष्य ही ईश्वर में मिला।

    हर आँ कस रा कि अंदर दिल शके नीस्त

    यक़ीं दानद कि हस्ती जुज़ यके नीस्त

    फिर यह प्रतिबिम्ब है क्या? जब मैं अपने आप में मिला हूँ, मुझे नहीं ज्ञात होता कि मेरी छाया कैसी होगी।

    अनानियत बुवद हक़ रा सज़ा-वार

    कि हू ग़ैब-अस्त-ओ-ग़ायब वह्म-ओ-पिन्दार

    मेरे अतिरिक्त इस बन में कोई दूसरा नहीं है। फिर यह आवाज़ और ध्वनि क्या है?

    जनाब-ए-हज़रत-ए-हक़ रा दुई नीस्त

    दराँ हज़रत मन-ओ-मा-ओ-तुई नीस्त

    इच्छा एक मिट जाने वाली वस्तु है और कार्य उसी से मिलकर बना है। फिर यह बतला कि वह इच्छा कहाँ थी और वह उत्पन्न किस प्रकार हुई?

    मन-ओ-मा-ओ-तु-ओ-ऊ हस्त यक चीज़

    कि दर वहदत न-बाशद हेच तमीज़

    जितने भी शरीर हैं जितने भी आकार हैं, वह सब लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई से मिलकर बने हैं।

    हर आँ कू ख़ाली अज़ ख़ुद चूँ ख़ला शुद

    अनल-हक़ अंदर-ओ-सौत-ओ-सदा शुद

    इनके मिटा देने से किसी प्रकार के अस्तित्व का बोध किस प्रकार होगा?, सारे संसार में केवल यही एक सार वस्तु है।

    शवद बा वज्ह-ए-बाक़ी ग़ैर हालिक

    यके गर्दद सुलूक-ओ-सैर-ओ-सालिक

    जब तू इसे समझ गया तो बस इसी के ऊपर अ’मल कर। चाहे तुम अपने को ईश्वर कहो चाहे परमेश्वर को ईश्वर, परन्तु वास्तविक बात यह है कि इस संसार में ईश्वर के अतिरिक्त किसी का अस्तित्व नहीं है।

    हुलूल-ओ-इत्तिहाद अज़ गैर खेज़द

    वले वहदत हम: अज़ सैर खेज़द

    तू अपने संशय को हृदय से दूर कर दे और अपने आप को मित्र बना ले, तू कोई दूसरा नहीं है।

    तअ'य्युन बूद कज़ हस्ती जुदा शुद

    हक़ शुद बंद: बंद: KHudaa शुद

    हुलूल-ओ-इत्तिहाद ईं जा मुहाल-अस्त

    कि दर वहदत दुई ऐ'न-ए-ज़लाल-अस्त

    वजूद-ए-ख़ल्क़-ओ-कसरत दर नुमूद-अस्त

    हर चे आँ मी-नुमायद ऐन-ए-बूद-अस्त

    तमसील

    बनेह आईन:-ए-अन्दर बराबर

    दरूँ बिनिगर ब-बीं आँ शख़्स-ए-दीगर

    यके रह बाज़-बीं ता चीस्त-ए-आँ अक्स

    ईन अस्त आँ पस कीस्त आँ अक्स

    चू मन हस्तम ब-ज़ात-ए-ख़ुद मुअ'य्यन

    नमी-दानम चे बाशद साय:-ए-मन

    अदम बा हस्ती आख़िर चूँ शवद ज़म

    न-बाशद नूर-ओ-ज़ुल्मत हर दो बाहम

    चू माज़ी नीस्त मुस्तक़बिल मह-ओ-साल

    चे बाशद गैर अज़ींं यक नुक़्त:-ए-हाल

    यके नुक़्तः अस्त वहमी गश्त: सारी

    तू रा नाम कर्दी नहर-ए-जारी

    जुज़ अज़ हक़ अंदरीं सहरा दिगर नीस्त

    ब-गो बा मन कि ता सौत-ओ-सदा चीस्त

    अरज़ फ़ानी-अस्त चू हर ज़ू मुरक्कब

    बगो के बूवद या ख़ुद कू मुरक्कब

    ज़े-तूल-ओ-अ'र्ज़ वज़ उमक़-अस्त अज्साम

    वजूदे चूँ पदीद आयद ज़े-ए'दाम

    अज़ींं जिन्स-अस्त अस्ल-ए-कार-ए-आलम

    चू दानिस्ती बयार ईमान-ओ-फ़ल्ज़म

    जुज़ अज़ हक़ नीस्त दीगर हस्ती अनल-हक़

    हुअल-हक़ गो गर ख़्वाही अनल-हक़

    नमूद-ए-वहमी अज़ हस्ती जुदा कुन

    बेगान: ख़ुद रा आश्ना कुन

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

    GET YOUR PASS
    बोलिए