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सवाल - विसाल-ए-मुमकिन-ओ-वाजिब बहम चीस्त

महमूद शबिस्तरी

सवाल - विसाल-ए-मुमकिन-ओ-वाजिब बहम चीस्त

महमूद शबिस्तरी

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    सवाल

    प्रश्न

    विसाल-ए-मुमकिन-ओ-वाजिब बहम चीस्त

    हदीस-ए-क़ुर्ब-ओ-बो'द-ओ-बेश-ओ-कम चीस्त

    ईश्वर और मनुष्य का आपस में मिल जाना क्या वस्तु है? निकट, दूर, अधिक और कम से क्या आशय है?

    जवाब

    उत्तर

    ज़े-मन ब-शिनो हदीस-ए-बे-कम-ओ-बेश

    ज़े-नज़दीकी तू दूर उफ़्तादी अज़ ख़्वेश

    मैं बिना किसी प्रकार के घटाव-बढ़ाव के तुझ से कहता हूँ, इसे सुन। तू स्वयं निकट होने के ही कारण अपने आप से दूर जा पड़ा है।

    चू हस्ती रा ज़ुहूरे दर अदम शुद

    अज़ आँ-जा क़ुर्ब-ओ-बो'द-ओ-बेश-ओ-कम शुद

    तुझको अपने इस अस्तित्व से क्या प्राप्त होता है? केवल भय और निराशा।

    क़रीब आनस्त कू रा अस्ल-ए-नूर-अस्त

    बईद आँ नीस्ती कज़ हस्त दुरुस्त

    तेरे सम्मुख तुझे छोड़कर और कोई भी वस्तु नहीं है, किन्तु तू आप ही सोच कि वास्तव में तू है कैसा।

    अगर नूरे ज़े-ख़ुद बर तू रसानद

    तुरा अज़ हस्ती-ए-ख़ुद वा रिहानद

    और मैं स्वतन्त्र हूँ। मेरा शरीर अश्व है और मेरी आत्मा इसका सवार है।

    चे हासिल मर तुरा ज़ीं बूद-ओ-नाबूद

    कज़ गाहीत ख़ौफ़ गह रजा बूद

    शरीर की लगाम आत्मा के हाथ में दे दी है। इसी कारण मुझ पर यह सब बन्धन डाले गये हैं।

    न-तरसद ज़ू कसे कू रा शनासद

    कि तिफ़्ल अज़ सायः-ए-ख़ुद मी-हरासद

    तू नहीं जानता कि यह सब कुछ अग्नि की पूजा करने के समान है। यह सारी विपत्तियाँ और ढिठाइयाँ केवल इसी जीवन के कारण है।

    न-मानद ख़ौफ़ अगर गर्दद रवान:

    न-ख़्वाहद अस्प-ए-ताज़ी ताज़ियानः

    हे ज्ञानवान्! तेरा जीवन क्षणिक है। इस पर भी तू अपने अधिकार प्रकट करता है।

    तुरा अज़ आतिश-ए-दोज़ख़ चे बाक अस्त

    कि अज़ हस्ती तन-ओ-जान-ए-तू पाक अस्त

    बता, तेरे वह अधिकार किस काम के हैं और उनका अस्तित्व भी क्या है? और वह तुझे कहाँ प्राप्त हुआ था?

    ज़े-आतिश ज़र्र-ए-ख़ालिस बर फ़रोज़द

    चु ग़शे नबूद अंदर चे सोज़द

    जिस मनुष्य का कोई अस्तित्व नहीं होता उसे अपने में भलाई अथवा बुराई किस प्रकार ज्ञात हो सकती है?

    तू-रा गैर अज़ तू चीज़े नीस्त दर-पेश

    व-लेकिन अज़ वजूद-ए-ख़ुद ब-यन्देश

    इन दोनों जहानों में तूने कभी किसी को क्षण भर के लिये भी सुखी होते देखा है?

    अगर दर ख़ेशतन गर्दी गिरफ़्तार

    हिजाब-ए-तू शवद आलम ब-यक बार

    किस मनुष्य की सब इच्छाएँ पूर्ण हुई हैं? और कौन सदैव एक ही समान रहा है?

    तुई दर दौर-ए-हस्ती जुज़्व-ए-साफ़िल

    तुई बा नुक्ता:-ए-वहदत मुक़ाबिल

    ईश्वरीय आज्ञा के अनुसार चलने वाले ही लोग शेष हैं और उसका भय सभी को लगता है।

    तअ'य्युन-हा-ए-आलम बर तू तारी अस्त

    अज़ आँ गोई चू शैताँ हम-चू मन कीस्त

    सभी स्थानों में ईश्वर को ही प्रत्येक कार्य का कर्ता-धर्ती मान और निर्धारित सीमा से आगे मत बढ़।

    अज़ आँ गोई मरा ख़ुद इख़्तियार अस्त

    तन-ए-मन मरकब-ओ-जानम सवार अस्त

    तू अपना हाल देख ले और फिर अपने हृदय से पूछ कि प्रतिष्ठा क्या वस्तु है।

    ज़माम-ए-तन ब-दस्त-ए-जाँ निहादंद

    हमाँ तकलीफ़ बर मन ज़ाँ निहादंद

    फिर यह सोच कि प्रतिष्ठा किसे प्राप्त होनी चाहिये।

    न-दानी कीं रह-ए-आतिश-परस्तीस्त

    हम: ईं आफ़त-ओ-शौमी ज़े-हस्तीस्त

    और कौन ऐसे मनुष्य हैं जो प्रतिष्ठित होने योग्य हैं। जिस मनुष्य का धर्म बल प्रयोग के अतिरिक्त कोई और वस्तु है, नबी के कथनानुसार वह अग्नि पूजक है।

    कुदामी इख़्तियार मर्द-ए-आक़िल

    कसे रा कू बुवद बिज़्ज़ात बातिल

    जिस समय तू नहीं था उसी समय तेरे कार्यों को उत्पन्न कर दिया था और तुझे एक विशेष काम के लिये चुन लिया था।

    चू बूवद तुस्त यकसर हम-चू नाबूद

    ब-गोई इख़्तियारत अज़ कुजा बूद

    बिना किसी कारण के परमेश्वर ने अपने आप एक आज्ञा दे डाली।

    कसे कू रा वजूद अज़ ख़ुद न-बाशद

    बज़ात-ए-ख़्वेश नेक-ओ-बद न-बाशद

    शरीर और प्राणों से पहले ही प्रत्येक मनुष्य के लिये एक एक कार्य निर्धारित कर दिया जाता है।

    कि रा दीदी तू अंदर हर-दो-आ'लम

    कि यक-दम शादमानी याफ़्त बे-ग़म

    एक मनुष्य ने सात लाख वर्ष तपस्या की पर उस पर भी उसके गले में धम्महीनता का तौक़ पड़ गया।

    कि रा शुद हासिल आख़िर जुमल: उम्मीद

    कि माँद अंदर कमाले ता बजा दीद

    दूसरे ने पाप और अपकर्म करके भी पवित्रता और ईश्वरीय प्रकाश को प्राप्त किया।

    मरातिब बाक़ि-ओ-अहल-ए-मरातिब

    ब-ज़ेर-ए-अम्र-ए-हक़ वल्लाह ग़ालिब

    जब उसने अपने इन कर्मों को त्याग देने की प्रतिज्ञा की तब उसने ईश्वर के प्रिय मनुष्यों की सूची में अपना नाम पाया।

    असर अज़ हक़ शनास अंदर हम: जाय

    ज़े-हद्द-ए-ख़्वेशतन बैरूं मेनह पाए

    सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह हुई कि यह दूसरा, ईश्वरीय आज्ञा को मानने पर भी क्षमा कर दिया गया, परन्तु वह पहला केवल मना कर देने ही के कारण क्षमा नहीं किया गया।

    ज़े-हाल-ए-ख़्वेशतन मी-पुर्स ईं क़दर चीस्त

    ज़े-आन-जा बाज़ वाँ काहिल क़दर चीस्त

    तेरे कार्यों का कहना ही क्या है, जो तो वर्णन ही में सकते हैं और उनकी गणना ही की जा सकती है। ईश्वर बिल्कुल लापर्वाह है। वह विचारों की बुराइयों से परे है।

    हर आँ कस रा कि मज़हब ग़ैर-ए-जब्र-अस्त

    नबी फ़र्मूद कू मानिन्द-ए-गब्र-ast

    मूर्ख! मनुष्य के आरम्भ में कौन सी ऐसी बात हो गई थीं जिसके कारण एक मुहम्मद बन गया और दूसरा शैतान।

    चुनाँ काँ गब्र यज़्दाँ अहरमन गुफ़्त

    हमी नादान-ए-अहमक़ मा-ओ-मन गुफ़्त

    जिस मनुष्य ने ईश्वर के सम्मुख किसी प्रकार की दलील पेश की उसकी आज्ञा के ग्रहण करने में आनाकानी की,

    ब-मा अफ़आ'ल रा निस्बत मजाज़ी-अस्त

    नसब ख़ुद दर हक़ीक़त लह्व-ओ-बाज़ी अस्त

    उसने गोया कई देवताओं के पूजक के समान उसे बुरा कहा। तुमसे किसी बात का उत्तर माँगना उसी को शोभा देता है।

    नबूदी तू कि फ़े'लत आफ़रीदन्द

    तू रा अज़ बह्र-ए-कारे बरगुज़ीदंद

    सेवकों का किसी प्रकार की आनाकानी करना अनुचित है? ईश्वर की ईश्वरता इसी में है कि वह सबसे बड़ा है। उसके कार्यों के कारण हो ही नहीं सकते।

    ब-क़ुदरत बे-सबब दाना-ए-बरहक़

    ब-इ'ल्म-ए-ख़्वेश हुक्मे कर्द: मुतलक़

    दया अथवा क्रोध परमात्मा को ही शोभा देता है। मनुष्य की भलाई केवल धैर्य धारण करने और ईश्वर के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने ही में है।

    मुक़द्दर गश्त: पेश अज़-जान-ओ-अज़-तन

    बराए हर यके कार-ए-मुअ'य्यन

    मनुष्य को प्रतिष्ठा केवल इसीलिये नही प्राप्त होती है कि वह अधिकारी बनता है। परन्तु वह मनुष्य प्रतिष्ठित हो जाता है जिसका अधिकार में कोई भाग नहीं है।

    यके मक़्सद हज़ाराँ साल: ताअ'त

    बजा-आवुर्द गर्दन तौक़-ए-ला'नत

    मनुष्य स्वयं अपने प्रति किसी प्रकार की भलाई नहीं कर सकता और फिर ईश्वर उससे भलाई अथवा बुराई के विषय में प्रश्न करेगा।

    दिगर अज़ मासियत नूर-ओ-सफ़ा दीद

    चू तौब: कर्द नाम-ए-इस्तिफ़ा दीद

    उसका यहाँ पर अपना कोई अधिकार नहीं है। उसे केवल कार्य करने की आज्ञा मिली है। बेचारे मनुष्य का अ’जीब हाल है। वह स्वतन्त्र और परतंत्र दोनों ही है।

    अजब-तर आँ-कि ईं अज़ तर्क-ए-मामूर

    शुद अज़ अलताफ़-ए-हक़ मर्हूम-ओ-मग़्फ़ूर

    इसको अत्याचार कदापि नहीं कह सकते। वरन् इसे न्याय और ज्ञान कह सकते है। यह ज़बर्दस्ती नहीं कही जा सकती है। इसके विपरीत हम इसे दया और भलाई के नाम से पुकार सकते है।

    मर आन दीगर ज़े-मनहा गश्त: मलऊँ

    ज़हे फे'ल-ए-तू बे-चन्द-ओ-चे-ओ-चूँ

    तुझको इसीलिये धर्मग्रन्थों का अध्ययन करने की आज्ञा दी गई है कि तू अपने वास्तविक रूप को पहचान ले।

    जनाब-ए-किब्रयाई ला-यज़ाली अस्त

    मुनज़्ज़ह अज़ क़यासात-ए-ख़याल अस्त

    जब तू ईश्वरीय आज्ञानुसार चलने लगेगा, उस समय बीच में से निकल जाएगा।

    चे बूद अंदर अज़ल मर्द-ए-ना-अहल

    कि ईं गश्त: मोहम्मद-ओ-आँ अबू-जहल

    और अहंकार को बिल्कुल छोड़ देगा। हे त्यागी! उस समय तू ईश्वर को पाकर मालामाल हो जाएगा।

    कसे कू बा ख़ुदा चून-ओ-चरा गुफ़्त

    चू मुशरिक हज़रतश रा ना-सज़ा गुफ़्त

    प्रिय पुत्र! जा ईश्वर की आज्ञानुसार कार्य करना प्रारम्भ कर दे। अपना शरीर उसको अर्पण कर दे और वह जो कुछ करता है उसमें प्रसन्न रह।

    वरा ज़ोहद कि पुर्सद अज़ चे-व-चूँ

    न-बाशद ए'तिराज़ अज़ बंद: मौज़ूँ

    ख़ुदावन्द-ए-हम: दर किब्रियाईस्त

    इल्लत लायक़-ए-फे'ल-ए-ख़ुदाईस्त

    सज़ावार-ए-ख़ुदाई लुत्फ़-ओ-क़हर-अस्त

    व-लेकिन बंदगी दर शुक्र-ओ-सब्र-अस्त

    करामत आदमी अज़ इज़तरारीस्त

    आँ कू रा नसीब-ए-इख़्तयारी-अस्त

    न-बूद: हेच चीज़श हरगिज़ अज़ ख़ुद

    पस आँगह पुर्सदश अज़-नेक-ओ-अज़-बद

    नदारद इख़्तियार गश्त: मामूर

    ज़हे मिस्कीं कि शुद मुख़्तार-ओ-मजबूर

    ज़ुलम-अस्त ईं कि ऐ'न-ए-इ'ल्म-ओ-अ'दलस्त

    जौर-अस्त ईं कि महज़-ए-लुत्फ़-ओ-फ़ज़लस्त

    बशर अज़ ज़ाँ सबब तकलीफ़ कर्दंद

    कि अज़ ज़ात-ए-ख़ुदश तारीफ़ कर्दंद

    चू अज़ तकलीफ़-ए-हक़ आजिज़ शवी तू

    ब-यक-बार अज़ मियाँ बैरूं रवी तू

    ब-कुल्लीयत रिहाई याबी अज़ ख़्वेश

    ग़नी गर्दी ब-हक़ मर्द-ए-दरवेश

    ब-रौ जान-ए-पिदर तन दर क़ज़ा देह

    ब-तक़दीरात-ए-यज़दानी रज़ा देह

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