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नवल नवाब खानखाना जू तिहारी त्रास भागे दसपति धुनि सुनत निसान की'गंग' कहै तिनहूं की रानी राजधानी छांड़ि फिरै बिललानी सुधि भूली खान-पान की
अमरपुर बास जहँ नहीं जम त्रास हैकाल का अमल बल नाहिं जावै
अजामील से ऊधरे जम त्रास हटानी होपुत्र हेतु पदवी दई जग सारे जानी हो
‘जीता’ पूरे गुरु बिना भेद न पावै दासचौरासी में जाय के भोगै बहुतक त्रास
सन्यासी बै-रागी तपसी तीरथ रटि रटि घावैआतम राम न जानहिं प्रानि तन कहँ त्रास दिखावै
संसय-सोक वहाँ नहि व्यापै नही काल कै त्रासहिआँ मदन-बन फूल रहे हैं आवे सोहं बास
सदा विलास त्रास नहि तन में भोग में जोग जगावैधरती पानी आकाश पवन में अधर मड़ैया छावै
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