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सूफ़ी उद्धरण
मौत का वक़्त बहुत सख़्त है। इस की मिसाल ऐसी है, जैसे किसी काँटेदार पेड़ पर कपड़ा डाल कर खींचा जाए और वह तार-तार हो जाता है। यही हालत रूह की है, जब निकलती है तो हर रग खिंच जाती है।
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
शे'र
बना कर कुफ़्र को आईना सूरत देख ईमाँ कीसनम की शक्ल में जल्वा-कुनाँ अल्लाह ही अल्लाह है
वतन हैदराबादी
सूफ़ी उद्धरण
मैं जानता हूँ, तू पहला है, तू आख़िरी है। मेरे दिल में इस से बढ़ कर कोई ख़याल नहीं। दानाई और अक़्ल में मुझ से बढ़ कर कोई नहीं। बुल्हा! वो कौन है जो मुस्तक़िल है?
बुल्ले शाह
सूफ़ी उद्धरण
सूफ़ी वह नहीं, जो चिल्ला खींचे, अकेले में इबादत करे, बल्कि वह है, जो ख़ुद को मिटा दे।
सूफ़ी वह नहीं, जो चिल्ला खींचे, अकेले में इबादत करे, बल्कि वह है, जो ख़ुद को मिटा दे।
सय्यदना अमीर अबुलउला
ग़ज़ल
चली अब गुल के हाथों से लुटा कर कारवाँ अपनान छोड़ा हाए बुलबुल ने चमन में कुछ निशाँ अपना