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पद
अंधा रे जग अंधा
अंधा रे जग अंधा।।ध्रु0।।साहेब से अपनी प्रीत छांडके, बेइमान हुवा बंदा ।।
माधव मुनीष्वर
शे'र
ढ़ूंढ़े असरार-ए-ख़ुदा दिल ने जो अंधा बन कररह गया आप ही पहलू में मुअ’म्मा बन कर
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
सूफ़ी कहानी
दूरबीँ-अंधा, तेज़ सुनने वाला बहरा, और दराज़-दामन नंगा - दफ़्तर-ए-सेउम
बच्चे बहुत से मन घड़त क़िस्से कहते हैं। उन कहानियों और पहेलियों में बहुत से राज़
रूमी
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राग आधारित पद
सब जग अंधा मैं कैसे को सुझाऊँ री
सब जग अंधा मैं कैसे को सुझाऊँ रीकहीं नबी मिलना कहीं नबी का जी
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-घड़ी घंटा(134) अंधा बहिरा गूँगा बोले गूँगा आप कहावे।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-घड़ी घंटा (134) अंधा बहिरा गूँगा बोले गूँगा आप कहावे।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
पद
बंदे भज गरीबनवाज
बंदे भज गरीबनवाज ।।ध्रु0।।मैं तो बंदा जिकिरकु अंधा, इस दुनिया में निकाज निकाज ।।
माधव मुनीष्वर
पद
विडंबना -संतो भाई भूल्यो कि जग बौरानो, यह कैसे करि कहिये।
वह अदृष्ट सूझै नहिं तनिकौ, मनमें रहै रिसानी।अंधहिं अंधा डगर बतावत, बहिरहि बहिरा बानी।
बाबा किनाराम
पद
बंधन से मुक्ति -हँसा रे बाझन मोर याहि घरा, करबों मैं कवनि उपाय।
यह संसार सकल है अंधा, मोह मया लपटाय।बीरू भक्ति भयो हंसा सुख, सागर चल्यो है नहाय।।
बीरू साहब
दोहरा
जागा गुरु जो डूबना चेला काय तिराना
जागा गुरु जो डूबना चेला काय तिरानाअंधे अंधा ठेलिया दोऊ कूअ पराना