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सूफ़ी लेख
गुजरात के सूफ़ी कवियों की हिन्दी-कविता - अम्बाशंकर नागर
जो हर अर्ज सो ज़र्रा जान।तल तल फिरै अजैमन क्षात।
भारतीय साहित्य पत्रिका
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दकनी सूफ़ी काव्य
अर्जी पोंचावे हुज़ूर नामदेव लाया नज़र
अर्जी पोंचावे हुज़ूर नामदेव लाया नज़रइसके बावे क्या मजकूर करो अर्जी अर्ज बेगो
गोंडा
पद
प्रेमालाप के पद तनक हरी चितवौजी मोरी ओर
उभी ठाड़ी अर्ज करत हूँ अर्ज करत भयो भोर'मीराँ के प्रभू हरि अविनासी देस्यूँ प्राण अकोर
मीराबाई
शबद
बिरह और प्रेम का अंग - मितऊ मड़ैया सूनी करि लो
‘धरमदास’ ये अर्ज करतु हैसार सब्द सुमिरन दै गैलो
महात्मा धनी धर्मदास जी
दोहरा
तोड़ी, चलता तिताला- अर्ज़ करूँ हूं इतनी मैं, या कुतबल-अक़्ताब
अर्ज़ करूँ हूं इतनी मैं, या कुतबल-अक़्ताब“शाहे-आलम” की दीजिये जो इच्छा है शिता
शाह आलम सानी
ग़ज़ल
यह अर्ज़ करूं हूं अब, या ख़्वाजा मुईनुद्दीं!दो मेरी मुरादें सब, या ख़्वाजा मईनुद्दीं!
शाह आलम सानी
भजन
यसरिब के बिराजी करतार के प्यारे
'इब्राहीम' तोसे अर्ज करत हैकलिमा कहत है वो तुमरे सहारे
नवाब इब्राहीम अ'ली
भजन
मक्के के बासी मदीने बिराजे
'इब्राहीम' ये ही अर्ज करत हैदोनों जगत में रखो मोरी लाजे