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कुंडलिया
साईं अवसर के पड़े, को न सहै दुख द्वन्द।
साईं अवसर के पड़े, को न सहै दुख द्वन्द।जाय बिकाने डोम घर, वै राजा हरिचन्द।।
गिरिधर कविराय
होरी
फागुन समय सोहावन हो नर खेलहु अवसर जाय
फागुन समय सोहावन हो नर खेलहु अवसर जायये तन बालू मंदिर हो नर धोखे माया लपटाय
गुलाल साहब
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पद
चैत- चैत निरजीवै न कोई, जीव जम को ग्रास है ।
राम भजु मन पाय नर तन, बनो अच्छो दाव रे ।ऐसो अवसर खोय के, फिर मूढ़ गोता खाव रे ।।
तुलसीदास (ब्रजवासी)
पद
लगन लाग रही राम भजनसों
रामबिना मोहे चैन परे नहीं झूठी दिखावन धनसुतधामझूठे भाई-बंद लुगाई अवसर कोउ न आवे काम
देवनाथ महाराज
होरी
होरी होइ ऐ ननदिया की माती
अवसर पीटी याद करेगी कत फागुन कत होरी'नियाज़' कहा हो कल पछताए आज करो सो करो री
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
शबद
चेतावनी का अंग - लागो रंग झूठो खेल बनाया
साध संगति कीन्हे नहिं कबहीं साहब प्रीति न लायाकहैं 'गुलाल' ये अवसर बीते हाथ कछू नहिं आया