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सूफ़ी लेख
निर्गुण कविता की समाप्ति के कारण, श्री प्रभाकर माचवे - Ank-1, 1956
बुडाले प्राणी बहुसाल. गुंतली आशा पडली मोहजाल फासा.
भारतीय साहित्य पत्रिका
राग आधारित पद
राग ललित- सुमिर-सुमिर नर उतरो पार
मानपहारी तहां रत हैंआशा-तृष्णा भँवर परत हैं पांच हार
सहजो बाई
कुंडलिया
साधू सुमिरे राम, काम माया से नांही।
आशा बांध्या ना फिरै, बिचरै सहज सुभाय।रामचरण ऐसा जती, रामकृपा से पाय।।
रामचरन
शबद
साधो रे भाई घर-गृहस्थी दुखदाई ।
आशा, तृष्णा बहनें दोनों, यह गृहस्थी दुखदाई ।अहं पुरुष, कुबुध्दि नारी, पंच कुपूत उपजाई ।
स्वामी आत्मप्रकाश
पद
आत्मनिवेदन- रमइया मोरि पलक न लागै हो।
स्वाति बूंद चातक रटै, जल और न पीवै हो।घन आशा पूरै नहीं, तो कैसे जीवै हो।।
रामचरन
पद
भादों- मास भादों अति भयानक, गहगहे अति गाजहीं ।
जगत आशा कान कुल तजि, करौ हरि सों हेत रे ।मेटि के अघ ओघ जन के, आपनो कर लेत रे ।।
तुलसीदास (ब्रजवासी)
सूफ़ी लेख
उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में - मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी
जो मधुमास की टलियाँ का भेदी है मन में उस केफूल सुगंध की इस पतझड़ में भी आशा सब बाक़ी है
ज़माना
राग आधारित पद
होरी राग धनाश्री- मैं तो खेलूँ प्रभु के संग होरी रँग-भरी
व्याधा सब आशा जरीअमरलोक पाद फगुआ पाओ