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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
दिल में दर्द-ए-शह-ए-कौनैन की दौलत है बड़ीहूँ तो नादार मैं लेकिन मिरी क़ीमत है बड़ी
मुनव्वर बदायूँनी
सूफ़ी लेख
हज़रत महबूब-ए-इलाही ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी के मज़ार-ए-मुक़द्दस पर एक दर्द-मंद दिल की अ’र्ज़ी-अ’ल्लामा इक़बाल
सूफ़ीनामा आर्काइव
कलाम
दिल जिगर को आश्ना-ए-दर्द-ए-उल्फ़त कर दियाइक निगाह-ए-नाज़ ने सामान-ए-राहत कर दिया
अब्दुल हादी काविश
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शे'र
गुज़र जा मंज़िल-ए-एहसास की हद से भी ऐ 'अफ़्क़र'कमाल-ए-बे-खु़दी है बे-नियाज़-ए-होश हो जाना
अफ़क़र मोहानी
शे'र
गुज़र जा मंज़िल-ए-एहसास की हद से भी ऐ 'अफ़्क़र'कमाल-ए-बे-खु़दी है बे-नियाज़-ए-होश हो जाना
अफ़क़र मोहानी
ग़ज़ल
क्यूँ कर मैं ख़ाक डालूँ सोज़-ए-दिल-ए-तपाँ परमानिंद-ए-शम्अ' मेरा कब हुक्म है ज़बाँ पर
ख़्वाजा मीर दर्द
ग़ज़ल
है एहसास-ए-ख़ुदी सब को कोई मोमिन हो या काफ़िरचला सब पर तिरा जादू पढ़ा सब ने तिरा मंतर
मयकश अकबराबादी
शे'र
दर्द-ए-दिल अव्वल तो वो आ’शिक़ का सुनते ही नहींऔर जो सुनते हैं तो सुनते हैं फ़साने की तरह
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
दिल-रुबाई की हक़ीक़त मेरे दर्द-ए-दिल में हैहुस्न अगर पूछो तो मेरी फ़ितरत-ए-कामिल में है
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
इक बसीत-ए-एहसास इक शौक़-ए-नुमायाँ चाहिएइ'श्क़ की नब्ज़ों में रक़्स मौज-ए-तूफ़ाँ चाहिए
अख़तर अ’लीगढ़ी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
आशिक़ाँ रा दर्द-ए-दिल बिसयार मी-बायद कशीददाग़-ए-यार-ओ-गु़स्स:-ए-अग़यार मी-बायद कशीद