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शे'र
कहियो ऐ क़ासिद पयाम उस को कि तेरे हिज्र सेजाँ-ब-लब पहुँचा नहीं आता है तू याँ अब तलक
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
पद
सत्तर से सिन ज़ियादा गुज़रा अब कहियो क्या करना है
सत्तर से सिन ज़ियादा गुज़रा अब कहियो क्या करना हैग़फ़लत में गुज़रे ये दिन दिलदार अब आगे मरना है
कवि दिलदार
ना'त-ओ-मनक़बत
ऐ बाद-ए-सबा कमली वाले से जा के कहियो पैग़ाम मिराक़ब्ज़े से उम्मत बेचारी के दीं भी गया दुनिया भी गई
अल्लामा इक़बाल
राग आधारित पद
ठुमरी देश- ऊधो तुम कहियो मेरो जाय यही।
ऊधो तुम कहियो मेरो जाय यही।जाय रहे कुबरी के घर तुम हमरी सुध बिसरी।
उल्फत राय राजा मस्तपिया
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पद
जोगी के पद - जोगिया रे कहियो रे अदेस
जोगिया रे कहियो रे अदेसआऊँगी मैं नाहिं रहूँ रे कर जटाधारी भेस
मीराबाई
गूजरी सूफ़ी काव्य
'बाजन' जीव अमर अहे मुआ न कहियो कुए
'बाजन' जीव अमर अहे मुआ न कहियो कुएजो ऐ कोई मुआ कहे मुआ एही होए
शैख़ बहाउद्दीन बाजन
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
ऊधो! कहियो यह संदेस। लोग कहत कुब्जा-रस माते, तातें तुम सकुचौ जनि लेस।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
कृष्ण भक्ति सूफ़ी कलाम
कहियो मोरा संदेसा अरे गोकुल के जवय्यापहला संदेसा नगर सिन कहियो ओ दिन दूने बसय्या
मुज़्तर ख़ैराबादी
महाकाव्य
।। रसप्रबोध ।।
पकरि बाँह जिन कर दई बिरह सत्रु के साथ।कहियो री वा निठुर सों ऐसे गहियत हाथ।।1019।।
रसलीन
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
10 एक सँदेसड़ा कहियो म्हाँरे बालमा सों जाय 4 सोरठ11 अब हम भूलिया रे बीर 4 सोरठ
भारतीय साहित्य पत्रिका
पद
कब देखूं हरि दरसण तोरा, बिन दरसण जीव कलपै मोरा।।
तुम कहियो सुख सागर सांई, मिलो कृपा करि राम गुसांई।कहे नरीजनदास विचारा, तुम बिन को है राम हमारा।।
महात्मा नरीदास जी
सवैया
हर्गिज लाल किसी की नहीं सब हाफिज है तकसीर हमारी।
सो कहते न बनी कछू हाय करें अभ का ब्रजनारि गवाँरी।देखि चले सो सबे कहियो अब उद्धव जी तुम्हरे बलिहारी।।
हफ़ीजुल्लाह ख़ान
राग आधारित पद
मोहन बिरहा सताए रे राजा मोरा
काल कहियो तोका पार लगै हूँकाहे सुध बिसराए रे राजा मोरा
अब्र मिर्ज़ापुरी
राग आधारित पद
पिया बिन हमका कुछ न सुहाए
पिया बिन हमका कुछ न सुहाएपाने वाले बेर तनिक कहियो जाए