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ग़ज़ल
क़ौल-ओ-क़रार तेरी ख़ातिर से मानता हूँवर्ना ये झूटी बातें मैं ख़ूब जानता हूँ
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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ग़ज़ल
मुज़्तर ख़ैराबादी
सूफ़ी लेख
मसनवी की कहानियाँ -1
एक सब्ज़ा-ज़ार में चरिन्दों की शेर से हमेशा कश्मकश रहती थी चूँकि शेर चरिन्दों की ताक
ज़माना
ग़ज़ल
जिगर मुरादाबादी
फ़ारसी कलाम
दिल-ओ-जिगर नज़र-ओ-दीद: जान-ओ-तन हम: ऊस्तहर आंचे हस्त दरीं ख़िरक़:-ए-कोहन हम: ऊस्त
ग़ुलाम इमाम शहीद
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़ुश-ख़िसाल-ओ-ख़ुश-ख़याल-ओ-ख़ुश-ख़बर ख़ैरुल-बशरख़ुश-नज़्झ़ाद-ओ-ख़ुश-निहाद-ओ-ख़ुश-नज़र ख़ैरुल-बशर
शे'र
बाग़-ओ-बहिश्त-ओ-हूर-ओ-जन्नत अबरारों को कीजिए इनायतहमें नहीं कुछ उस की ज़रूरत आप के हम दीवाने हैं
निसार अकबराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
फ़ातिह-ए-ख़ंदक़ हुनैन-ओ-बद्र-ओ-ख़ैबर हैं 'अलीइफ़्तिख़ार-ए-मस्जिद-ओ-मेहराब-ओ-मिंबर हैं 'अली